Sunday, 30 October 2016

भारत की संप्रभुता की रक्षा में मिडिया की भूमिका भाग 2

भारतीय संप्रभुता की सुरक्षा में मीडिया की भूमिका : भाग -2
*पाकिस्तान की चुनौती*

पी के सिद्धार्थ
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पिछले भाग में मैंने प्रश्न उठाया था कि भारत की संप्रभुता पर कौन-सा खतरा आ गया है जिसका संकेत मीडिया-सम्मलेन के आयोजकों ने दिया है?

वास्तव में यह खतरा नहीं, खतरे हैं। जो सबसे पहला खतरा ध्यान में आता है वह पाकिस्तान और चीन की ओर से उपजने वाला खतरा। लेकिन 'खतरा' शब्द की थोड़ी व्याख्या यहाँ अपेक्षित है। अगर हम पर व्यक्तिगत रूप से कोई खतरा आ गया है, ऐसा हम कहते या मानते हैं, तो इसका अर्थ अनिवार्य रूप से यह नहीं होता कि हमारी जान या हमारे अस्तित्व पर ही खतरा है। यह खतरा हमारे यहाँ चोरी का, हमारे जमीन या मकान के हड़प लिए जाने का या हमारे घायल किये जाने का भी हो सकता है। इसी प्रकार, भारत की संप्रभुता पर खतरे का यह अर्थ अनिवार्यतः नहीं कि भारत फिर से परतंत्र हो जायेगा। लेकिन खतरे को कम कर के ही क्यों आँकें? हम क्यों नहीं इस पर भी विचार करें कि क्या यह भी संभव हो सकता है?

मैंने अपने एक पहले पोस्ट में जिक्र किया था कि जैसे व्यक्तियों का चरित्र होता है, वैसे देशों का भी एक चरित्र होता है। भारत, पाकिस्तान और चीन के अपने-अपने चरित्र हैं। इस चारित्रिक भेद से हम सभी कमोबेश वाकिफ हैं। लेकिन आवश्यक नहीं कि इस विषय में पूर्ण मानसिक स्पष्टता हममें से सभी को प्राप्त हो ही गयी हो। या इस विषय में हमें स्मारित किये जाने की जरुरत नहीं हो।

अभी तक पाकिस्तान को ऐसा नेतृत्व नहीं मिल पाया जो इसे समझदारी और सभ्य आचरण के रास्ते ले जा सके, जो इसकी जनता को विकास और अमन-चैन दे सके, और उसे एक सभ्य पड़ोसी बना सके। कल को पाकिस्तान का चरित्र बदल सकता है, अगर इसे समझ-बूझ वाला सैनिक और राजनितिक नेतृत्व मिलता है।  लेकिन आज की उसकी सचाई यही है की वह एक बर्बर चरित्र का राष्ट्र है, जो न केवल दुनिया भर में आतंकवाद के मुख्य पोषक के रूप में जाना जाता है, बल्कि उसी चरित्र के परिणाम स्वरूप स्वयं भी बर्बर आतंक का शिकार है। वहां के नागरिक रात-दिन खौफ में जीते हैं, और अमन-चैन की दुआ मांगते हैं। सर्व विदित है कि पाकिस्तान ने अपने एक मददगार देश अमरीका के खिलाफ आतंकवाद में संलिप्त दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को अपने यहाँ छुपा रखा था, जिसका सफाया सर्जिकल स्ट्राइक कर, और पाकिस्तान की संप्रभुता को भंग कर, अमेरिका को करना पड़ा।

पाकिस्तान की सेना न केवल बर्बर चरित्र की है बल्कि अपने-आप में एक सम्प्रभु सत्ता भी है, जो वहां के राजनीतिक नेतृत्व के अधीन नहीं रहती बल्कि राजनीतिक नेतृत्व को अप्रत्यक्ष रूप से अपने अधीन रखती है। राजनीतिक नेतृत्व जानता है कि सेना के विचारों की अनदेखी करने से सेना जियाउल हक़ या  जेनेरल मुशर्रफ की तरह फिर सत्ता पलट कर खुद शासन की बागडोर संभाल लेगी। अतः पाकिस्तानी सेना का नेतृत्व युद्ध की स्थिति में, यहाँ तक कि बिना युद्ध के भी, सहसा भारत पर नाभिकीय प्रहार कर उसे अभिभूत या ओवरपावर कर सकती है। अगर दिल्ली पर संसदीय सत्र के दौरान नाभिकीय प्रहार हो गया तो एक साथ सारे मंत्री और सांसद शेष हो जाएंगे और देश की संप्रभुता को अंजाम देने वाला पूरा तंत्र, जिसमे सेना के प्रमुख और उच्चतम न्यायलय भी शामिल हैं, निरस्त हो जायेगा।

हम नागरिक के तौर पर यह जानते हैं कि भारत और भारतीय लोग प्रकृति से राम-भरोसे, या जिसे अंग्रेजी में  कॉम्प्लेसेंट कहते हैं, उस प्रकार के होते हैं। आपदा-प्रबंधन के अधिकांश प्रसंगों ने बार-बार इस चरित्र का खुलासा किया है। जिस प्रकार की परम आपदा का जिक्र हमने किया, उस प्रकार की आपदा से निबटने के लिए हमारी सरकार ने क्या प्रबंध किये होंगे, यह हम समझ सकते हैं। कई पाठक निश्चित रूप से मेरे द्वारा प्रस्तुत संभावना-चित्र को तत्काल अनावश्यक भय-विपणन या दुःस्वप्न बता कर दिलो-दिमाग को अमन-चैन की गोली खिला कर नींद से सो जाने का इंतजाम कर लेंगे क्योंकि वे किसी भी कीमत पर 'मेन्टल पीस' चाहते हैं। वे यह भूल जाएंगे कि आतंकवाद के जरिये जो प्रॉक्सी वॉर या छद्म युद्ध पाकिस्तान लगातार लड़ता रहा है, उसके अंतर्गत एक बार वह वही कोशिश कर चुका है, जिसकी परिवर्धित संभावना का चित्रण मैंने ऊपर किया। यानी हमारी संदद पर संसद- सत्र के दौरान ही सशस्त्र अनाभिकीय आक्रमण हो चुका है। अगर वह आक्रमण हमारे सुरक्षा बलों के जवानों ने जान देकर असफल नहीं कर दिया होता तो क्या हश्र हुआ होता? और हमें यह भी जानना चाहिए की नाभिकीय आक्रमण के लिए पाकिस्तानी सीमा पार से मिसाइल दागा जाना अनिवार्य नहीं है (हालाँ कि वह भी संभव है)। यह भी आतंकवादियों के माध्यम से कार-बम या मानव-बम के माध्यम से कराया जा सकता है। ध्यान रहे कि नाभिकीय तकनीक, और वेपन्स ऑफ़ मास डिस्ट्रक्शन की प्रकृति, बर्ट्रेंड रसेल ने  'कॉमन सेन्स ऐंड न्यूक्लियर वॉर फेयर' नामक पुस्तक जब लिखी थी, तब से काफी आगे बढ़ चुकी है, मगर कॉमन सेन्स अभी भी इस मामले में उतना ही प्रासंगिक है।

अर्थात अगर दिल्ली पर अप्रत्याशित नाभिकीय प्रहार के साथ-साथ चीन के साथ मिल कर कुछ और बैक-अप फॉलो-अप  तैयारी पाकिस्तान ने कर ली तो भारत की संप्रभुता के सम्पूर्ण अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसलिए इस खतरे पर सोचने और इस खतरे के प्रति देश और राजनितिक सत्ता-केंद्रों, सेना, अन्य सुरक्षा बलों, और रक्षा-वैज्ञानिकों को जागरूक करने में मीडिया की क्या भूमिका बनती है, यह चिंतन का एक विषय होना चाहिए। (क्रमशः)

पी के सिद्धार्थ
30 अक्टूबर, 2016

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