गोविंदाचार्य से मेरी तीसरी मुलाकात
पी के सिद्धार्थ
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गोविन्द जी से मिलने मैं ग्रीन पार्क मेट्रो स्ट्रेशन के पास गुलमोहर एन्क्लेव पहुँचता हूँ जहाँ कल फोन पर मुलाकात करनी तय हुई थी। टैक्सी उस घर के सामने रुकती है जिसका नंबर उन्होंने कल दिया था। 10 से 10.30 के बीच मैं पहुंचूंगा, ऐसा मैंने बताया था। 10.20 में मैं टैक्सी से उतर कर सामने के दरवाजे की ओर बढ़ता हूँ। दरवाजे में ताला लटक रहा है। किसी से पूछता हूँ तो बताया जाता है कि बगल के दरवाज़े से जाया जा सकता है। ऊपर जाने की सीढ़ियों वाले गलियारे में वह बगल वाला दरवाज़ा दिखता है जिसके ऊपर वही मकान नंबर लिखा है। मैं दरवाजे के सामने खड़ा होता हूँ। मगर इसमें भी ताला बंद है, और बड़े अक्षरों में लिखा है, 'डेंजर, 440 वोल्ट'। हड्डियों की तस्वीरें भी बनी हैं। "गोविन्द जी तो एक सौम्य और मधुर इंसान हैं, फिर यहाँ 440 वोल्ट की नोटिस क्यों लगी है?", मैं हैरान हूँ!
मैं उन्हें SMS करता हूँ कि मैं पहुँच चूका हूँ। फिर बगल के पार्क में जा कर बैठ जाता हूँ, और प्रतीक्षा करता हूँ। 10.45 में लौट कर फिर देखता हूँ तो ताले पूर्ववत लगे हुए हैं। मैं तब उन्हें फोन करता हूँ। वे पीछे के दरवाजे से निकल कर आते हैं और बैठक में ले जाते हैं। वास्तव में वे 10 बजे ही पहुँच कर मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। SMS उन्होंने देखा नहीं।
यह घर वास्तव में उनके एक वकील सहयोगी का है जिन्होंने मुख्य द्वार दूसरी और रखा है। गोविन्द जी अकेले ही हैं, इसलिए अच्छी चर्चा की संभावना दिखती है।
गोविन्द जी को मेरे साथ 1974 की पहली और अभी छह महीने पहले की दूसरी मुलाकात का स्मरण हैं।
"गोविन्द जी, जहाँ तक मैं जानता हूँ आपने अपने-आप को भाजपा से अलग कर लिया है।", मैं शुरुआत करता हूँ।
"सही सुना आपने।"
"और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से भी दूरी बना कर स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं।"
"मैं उनके स्ट्रक्चर में नहीं हूँ। भावना मिलती है। जिन संगठनों के साथ काम करता हूँ, उनमें एक संघर्षात्मक है, दूसरा रचनात्मक। संघर्षात्मक संगठन का नाम है, 'राष्ट्रीय स्वाभिमान मंच' जिसे बासव राज पाटिल जी देखते हैं। रचनात्मक संगठन का नाम है 'भारत विकास संगम'। इसे जो देखते हैं उनका भी नाम बासव राज पाटिल ही है। वे राज्य सभा के सदस्य हैं", गोविन्द जी बताते हैं।
"इस वक्त हममें से प्रत्येक अलग-अलग मुद्दों पर अलग-अलग काम कर रहे हैं। इसलिए पूरी तरह प्रभावी नहीं हो रहे। देश में बड़े परिवर्तन नहीं हो पा रहे। हमें थोडा पुनर्विचार करने की जरुरत है। इसके लिए हमें किसी एकांत स्थान में दो दिन पूरी टीम के साथ बैठ कर थोडा मंथन करने की जरुरत है। अभी हाल में मैं और स्वामी अग्निवेश की टीम के 10-12 लोग गुडगाँव के भेलपा आश्रम में दो दिन रहे। साथ रह कर विमर्श और चिंतन किया। बहुत उपयोगी रहा यह मंथन!", मैं उन्हें सूचित करता हूँ।
गोविंद जी थोड़े शंकित दीखते हैं।
"स्वामी अग्निवेश? मगर अन्ना आंदोलन में उनकी भूमिका तो संदिग्ध रही! हमें ऐसे लोगों को साथ ले कर चलना चाहिए जिन पर भरोसा किया जा सके", गोविन्द जी कहते हैं।
"गोविन्द जी, इस समय देश में ऐसा कौन है जिसमे कोई दोष नहीं निकाला जा सके? मैंने भी स्वामी अग्निवेश की एक रेकॉर्डिंग् उस समय सुनी थी। जुबान के ऐसे स्खलन कई लोगों से हो जाया करते हैं, या हो सकते हैं। उन्होंने उस समय जो कहा, उसका अगर पुनर्मूल्यांकन बाद के इतिहास के आलोक में किया जाय तो थोड़ा भिन्न अनुभव भी हो सकता है। फिर मेरे विचार से किसी का मूल्यांकन होलिस्टिकलि होना चाहिए, यानि उसके सम्पूर्ण कृतित्व को ले कर होना चाहिए। किसी एक बात को ले कर किसी की सारे जीवन की साधना को नकारना उचित नहीं। अब मोदी जी के सारे जीवन का मूल्यांकन क्या एक 27 साल की लड़की की जासूसी करवाने के प्रसंग को केंद्र बना कर करना वाजिब हैं? या नेहरू का आकलन सिर्फ उनके चरित्र के एक पहलु, जिसे उनके पी एस मथई ने उजागर किया, की रौशनी में करना उचित है? आजकल कुछ बुद्धिजीवी गांधी द्वारा अपने काम-भाव के परिक्षण को लेकर एक सार्वजनिक तौर पर किये गए प्रयोग को केंद्र बना कर उनकी सारी उपलब्धियों को एक सिरे से ख़ारिज करने पर तुले रहते हैं।
आज देश की टोकरी में जितने आम हैं सभी पर कोई-न-कोई दाग लोगों को दिखता है। सवाल है की सभी आमों को उठा कर फ़ेक दिया जाय या उनका प्रयोग देश के पोषण के लिए किया जाय।"
"नहीं, नहीं, उनका प्रयोग होना ही चाहिए।", गोविन्द जी स्वीकार करते हैं।
"अभी तेज बारिश हो रही है। देश को बचाना है इस अन्याय, भ्रष्टाचार और गरीबी की खूनी बारिश से। अभी तो हमें छाता लाल हो ता हरा या भगवा, यह भी देखने का समय नहीं है। सभी छाते इस देश को मिल कर इस दुर्द्धर्ष बारिश से बचाने में लग जाने चाहिए", मैं विनम्रतापूर्वक कहता हूँ और गोविन्द जी सर हिला कर अनुमोदन करते हैं।
इस वक्त एक ऐसी लोकहित याचिका उच्चतम न्यायलय में हम दाखिल करने जा रहे हैं, जो सीधे भ्रष्टाचार पर नहीं मगर उस उदर पर प्रहार करेगी जहाँ से भ्रष्टाचार की पैदाइश होती है। आपको मैंने पिछली बार इस योजना से अवगत कराया था। मेरे साथ मल्लिका साराभाई और श्याम बेनेगल इसमें पिटीशनर बनने को तैयार हो गए हैं। आप भी पिटीशनर बनें तो अच्छा हो। एक कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख को भी मैं मना रहा हूँ ताकि लेफ्ट और राइट दोनों इस युद्ध में शरीक हों, और देश को एक होकर युद्ध करने का सन्देश जाये। (क्रमशः)
पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल
13 अक्टूबर, 2016
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