'राष्ट्रीय संप्रभुता की सुरक्षा में मीडिया की भूमिका'
पी के सिद्धार्थ
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पिछले हफ्ते निकट भविष्य में होने वाले दो अलग-अलग सम्मेलनों में भाग लेने का आमंत्रण मिला - एक, वर्ल्ड गवर्नमेंट के लिए बनाये गए विश्व संघ के संविधान के अंतिम ड्राफ्ट पर चर्चा के लिए होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन के लिए, और, दूसरा, मीडियाकर्मियों के एक सम्मलेन के लिए जो 'राष्ट्रीय संप्रभुता की सुरक्षा में मिडिया की भूमिका' पर होने जा रहा है।
पहला कॉन्फरेंस इस पर विचार करेगा की वर्तमान राष्ट्रों की 'संप्रभुता' को कैसे एक वैश्विक संसद, वैश्विक न्यायपालिका, वैश्विक प्रशासकीय तंत्र, वैश्विक पुलिस आदि के माध्यम से सीमित किया जाय, और दूसरा सम्मलेन प्रथमदृष्ट्वा इस मुद्दे पर है कि राष्ट्रीय संप्रभुता को कैसे सुरक्षित रखा जाय, और इस सुरक्षा में मीडिया की क्या भूमिका हो। यहाँ मैं दूसरे सम्मेलन के सन्दर्भ में कुछ बातें करना चाहूँगा।
पहले हम यह समझ लें कि कोई भी संघीय राज्य, जैसे भारत या अमेरिका, न तो वैधिक रूप से, न राजनीतिक रूप से पूरी तरह सम्प्रभु हुआ करता है। भारत का उदाहरण लें : कुछ ऐसे विषय हैं जिनपर सिर्फ राज्य ही कानून बना सकते है, केंद्र नहीं। राजनीतिक रूप से भी सत्ता और संप्रभुता राज्यों और केंद्र के बीच विभाजित है। लेकिन यह सही है कि यह संप्रभुता-विभाजन आतंरिक है, और बाहरी नियंत्रण से, औपचारिक तौर पर, भारत मुक्त हो कर एक सम्प्रभु राष्ट्र है। लेकिन यह विचार अब व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के नियंत्रण के लिए, पर्यावरण को विनाश से बचाने के लिए, देशों के बीच नाभिकीय और अन्य युद्ध रोकने के लिए, और पूर्ण सामरिक निःशस्त्रीकरण आदि द्वारा विश्व शांति लाने के लिए वैश्विक संघीय सरकार बनाकर विभिन्न राष्ट्रों की संप्रभुता को सीमित करने की जरूरत है, न कि वर्तमान संप्रभुता की पूर्ण सुरक्षा करने की।
जाहिर है कि उपर्युक्त विचार से मिडिया कॉन्फरेंस के विद्वान आयोजक भी अवगत और सहमत होंगे। लेकिन शायद वे यह महसूस कर रहे होंगे कि आज भारत की संप्रभुता को कहीं-न-कहीं ऐसा खतरा उत्पन्न हो गया है, जो उस वांछनीय खतरे से भिन्न है जो एक वैश्विक संघ या वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ नेशंस के बनने से उत्पन्न होगा। और इस अवांछनीय और भिन्न खतरे से देश को बचाने में मीडिया की क्या भूमिका हो सकती है, यह पत्रकारों द्वारा मिल-जुल कर सोचने का विषय है। शायद इसीलिए यह सम्मलेन बुलाया गया है। अगर ऐसा है तो यह एक अत्यंत स्वागत-योग्य कदम है, और आयोजक इसके लिए बधाई के पात्र हैं।
मगर भारत की संप्रभुता पर यह अवांछनीय खतरा कौन-सा है? (क्रमशः)
पी के सिद्धार्थ
29 अक्टूबर, 2016
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