स्वामी अग्निवेश के आश्रम में तीसरा और अंतिम दिन : अंतिम कड़ी।
www.pksiddharth.in
www.suraajdal.org
www.bharatiyachetna.org
जब नेतृत्व विकास और अन्य सम्बद्ध उद्देश्यों के लिए स्वामी अग्निवेश ने आश्रम के उपयोग की सहमति दी और उसे उद्यम का राष्ट्रीय मुख्यालय बनाने तक का प्रस्ताव दे दिया, तो यह उनकी सदाशयता का मैंने पर्याप्त प्रमाण माना। लेकिन अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई थी।
मैं : स्वामीजी, आपका प्रस्ताव उत्तम है, मगर कल जो कुछ प्रस्तुतियाँ आपलोगों ने देखीं वे काफी नहीं थीं। एक तो आपलोग समय की कमी के कारण सिर्फ ट्रेलर देख पाये, मगर आप सभी को पूरी बात गंभीरता से समझने के लिए पूरी प्रस्तुति देखनी चाहिए। मगर वह पूरी प्रस्तुति भी पर्याप्त नहीं होगी जब तक आप गीता धाम का वह फ्लायर नहीं देखेंगे जो आप सबों को अभी दिया गया है।
लोग ध्यान से गीता धाम का वह संक्षिप्त फ्लायर देखते और पढ़ते हैं। उसमें वानप्रस्थियों का समाज सेवा के लिए जो प्रयोग गेरुए परिधान में गीता धाम में करने का प्रस्ताव है, उसे देख कर स्वामी जी कहते हैं : "वाह, यह तो हम बहुत दिनों से करने की सोच रहे थे!"
मैं : आज स्थिति यह है कि न केवल नेता भ्रष्ट हो गए हैं, उन्होंने कई प्रकार से गांव गांव में जनता को भी भ्रष्ट और अकर्मण्य बना दिया है। लोग काम कर के समृद्ध नहीं बनाना चाहते, वे सब कुछ खैरात में पाना चाहते हैं। गरीबी दूर करने के लिए उन्हें दिए गए मार्गदर्शन के अनुसार काम करना पड़ेगा, मेहनत करनी पड़ेगी। वे ऐसा कुछ नहीं करना चाहते।
यानि आप उनकी गरीबी दूर करने में तब तक सक्षम नहीं होंगे जबतक उन्हें भिक्षुक से फिर से एक सामान्य इंसान नहीं बनाया जायेगा।
स्वामी अग्निवेश : कैसे होगा यह?
मैं : इसके लिए धर्म की सकारात्मक शक्ति का प्रयोग अभी तत्काल एकमात्र बिकल्प है। आतंकवाद धर्म की नकारात्मक शक्ति का उदहारण जरूर है, मगर साथ ही धर्म की शक्ति अभी भी बनी हुई है, इसका भी वह प्रमाण है।
मोहम्मद अजहाउद्दीन : मगर आपका ब्रोशर देख कर शंका होती है। आप गांव गांव में गीता धाम बनाना चाहते हैं?
मैं : केवल गीता धाम नहीं, यथा योग्य इस्लामिक संस्कृति केंद्र, बौद्ध संस्कृति केंद्र आदि भी, जहाँ समुदायों के अपने अपने धर्म ग्रंथों के सकारात्मक संदेशों के माध्यम से सत्य अहिंसा पर आधारित इंसान बनाया जा सके।
रही शंका की बात तो मंदिर-मस्जिद तो रोज ही गांव-गांव में बन रहे हैं जो आदमी को इंसानियत नहीं सिखा रहे, सिर्फ ऊपरी कर्मकांड या नफरत सिखा रहे हैं। हमारे केंद्र तो इंसानियत और सच्ची आध्यात्मिकता सिखाएंगे। फिर शंका क्यों?
राम मोहन राय : बिना धर्म को बीच में लाये हम ये केंद्र क्यों नहीं बना सकते? गरीबी दूर क्यों नहीं दूर कर सकते।
मैं : लोग बना रहे हैं। सफलता नहीं मिल रही कार्यक्रम को तेजी से दूर-दूर तक फ़ैलाने में। आप बिना धर्म को बीच में लाये एक गरीबी निवारण केंद्र बनाइये। मैं सहयोग करूँगा। लेकिन मैं खुद वह नहीं करूँगा क्योंकि वह सेल्फ-सस्टेनिंग नहीं होगा डोनर एजेंसियों से पैसे ले कर होगा। गांव-गांव के लिए पैसे कौन डोनर-एजेंसी देगी?
स्वामी अग्निवेश : मगर इस केंद्र को कोई न्यूट्रल-सा और नाम क्यों नहीं देते?
मैं : आप सुझाईये।
स्वामी अग्निवेश : सोचूंगा। ...(गीत धाम फ्लायर को गौर से देखते हुए) यह ऊपर क्या लिखा है.. "ऑल फेथ काउंसिल फॉर अलिवियेशन ऑफ़ स्पिरिचुअल ऐंड मटेरियल पॉवर्टी" ..?
मैं : जी! इस काउंसिल का काम है सभी धर्मों के माध्यम से उनके धर्मावलंबियों की आध्यात्मिक और आर्थिक गरीबी दूर करना। आज धर्म गरीबी दूर नहीं कर रहे, गरीबी बढ़ा रहे हैं।
गीता धाम, इस्लामिक संस्कृति केंद्र, बौद्ध संस्कृति केंद्र या मसीही संस्कृति केंद्र का मॉडल बिलकुल एक जैसा होगा। सिर्फ धर्मग्रंथों का फर्क होगा।
चूँकि धर्मस्थल होंगे ये, इसलिए इनके लिए जमीन और संसाधन गांव-पंचायत में अधिक आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे। मुझे आठ-दस जगह से जमीन के ऑफर मिल चुके। 50 वर्ष से ऊपर के वानप्रस्थी लोग अपनी इच्छा से सेवा देंगे। अतः इन केंद्रों को डोनर एजेंसी से फंड ले कर नहीं चलाना पड़ेगा।
गीता धाम में एक गीता मंदिर होगा जहाँ लोग गीता-तुलसीरामायण सुनेंगे, ध्यान करेंगे, चैतन्य के भक्ति नृत्य करेंगे। वहां मूर्तियां नहीं होंगी इसलिए लड्डू और माला चढाने के लिए धक्कम-धुक्की नहीं होगी। लोग आराम से बैठ कर धर्म के भीतरी तत्त्वों को हृदयंगम कर सकेंगे।
गीता मंदिर के एक ओर सम्पूर्ण शिक्षा केंद्र होगा जो एक प्रेक्षागृह होगा, जहाँ दीवार पर लगी बड़ी एल ई डी टीवी के माध्यम से खेती से लखपति फ़िल्म-श्रंखला और अन्य सभी प्रकार की शिक्षा दी जा सकेगी। इनमें हिंदी- अंग्रेजी शिक्षा की पूरी शिक्षामाला फिल्में तैयार हो चुकी हैं।
दूसरी ओर एक रोजगार केंद्र होगा जो तीन वर्षों में उन सभी की गरीबी दूर करने की गारंटी लेगा जो गीता धाम में नित्य आया करेंगे। गरीबी इस केंद्र के माध्यम से तीन वर्षों में कैसे दूर होगी, इस फ़िल्म का ट्रेलर कल आप देख चुके हैं। यह गरीबी निवारण योजना बहुत शोध, अनुभव और चिंतन-मनन के बाद तैयार की गयी है।
स्वामी आर्यवेश : गीता ही पर इतना जोर क्यों?
मैं : वेद विशद हैं। फिर उनमें ज्ञान कम, स्तुतियाँ और कर्मकांड ज्यादा हैं। वे बहुत महंगे भी हैं। उपनिषद भी अनेक हैं। उनमें भी ज्ञान अभी नेबुलस फॉर्म में हैं। गीता छोटी-सी पुस्तक है, सर्वत्र सुलभ है, सस्ती है - अनुवाद सहित दस रुपयों में भी मिल जाती है। जो कुछ ज्ञान वेदों और उपनिषदों में है वह गीता में एकत्र मिल जाता है। इसलिए गीता पर जोर! ऐसा कौन है जो गीता और रामचरितमानस नित्य पढ़े या सुने और इंसान न बने! दस में आठ तो बन ही जाएंगे!
मोहम्मद अज़हरुद्दीन : मगर हिन्दू मुसलमान सभी के लिए एक ही केंद्र नहीं बन सकता?
मैं : अभी इतनी चेतना गांवों में विकसित नहीं हुई है। हिन्दू धर्मस्थल हुआ तो मुसलमान नहीं जाएंगे; मुस्लिम धर्मस्थल हुआ तो हिन्दू नहीं जाएंगे। सबके लिए एक धर्म स्थल होगा तो कोई नहीं जायेगा। वैसे कुछ दिनों के बाद आप जो चाहते हैं, वैसे प्रयोग भी जरूर किये जाएंगे। सफल होंगे तो आगे बढ़ा जायेगा।
लेकिन गीता धाम के रोजगार केंद्रों में सभी धर्मों के लोग जाना चाहेंगे। इसके सम्पूर्ण शिक्षा केंद्रों में भी। इसी प्रकार इस्लामिक संस्कृति केंद्रों के रोजगार केंद्रों और सम्पूर्ण शिक्षा केंद्रों में सभी धर्म के लोग जा कर लाभ उठाना चाहेंगे।
देखिये, जो शक्य है, हम वही करना चाहेंगे। युग की हवा देख कर काम मैं तो नहीं करना चाहता। गांधी ने धर्म की शक्ति का प्रयोग कर उतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया। लोग आलोचना करते रहे। वे सुन कर इग्नोर करते रहे। गांधी ने राम-धुन से अपनी सभाएं शुरू कीं। लोगों ने अलोचना की। उन्होंने अपना पथ नहीं छोड़ा। उनसे अधिक मुसलमानों का पक्ष किसने लिया? इसी लिए उनकी हत्या भी हुई। मुझे आज के दिग्भ्रांत बुद्धिजीवियों से मार्गदर्शन नहीं लेना, हवा में नहीं बहना। मुझे धर्मों - सभी धर्मों - की सकारात्मक ऊर्जा को लेकर लोगों को इंसान बनाना है। बस! इसमें आप सब का सहयोग चाहूँगा!
पी के सिद्धार्थ
22 सितम्बर, 2016
No comments:
Post a Comment