गोविंदाचार्य से मेरी तीसरी मुलाकात - भाग 2
पी के सिद्धार्थ
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गोविन्द जी की एक बहुत बड़ी विशेषता है कि वे एक बहुत अच्छे श्रोता भी हैं। उनमें सुनने का बहुत धैर्य रहता है। इसलिए वे मुझे सुनते जा रहे हैं।
मैं : मेरे विचार से आपको अपनी पूरी टीम के साथ किसी एकांत स्थान में एक रिट्रीट में जाना 2 दिनों के लिए चाहिए और मुझे भी उसमें उपस्थित रहने जा मौका देंगे तो अच्छा रहेगा।
गोविन्द जी : लेकिन इसका अर्थ लोग यह लगा सकते हैं कि आप अपने विचार उनपर थोपने की कोशिश करेंगे।
मैं : यह कोई मोनोलॉग तो होगा नहीं। दोनों पक्ष अपने-अपने विचारों और कार्यों से एक दूसरे को अवगत कराएंगे। विचार थोपने का सवाल कहाँ उठता है? फिर संयुक्त कार्य-योजना बन सकती है।
गो : आपने यह कहा कि स्वामी अग्निवेश की रिट्रीट में आपने चार तरह की फिल्में दिखलायीं। मुझे वे फिल्में दे सकते हैं?
मैं : एक फ़िल्म 'खेती से लखपति' की पहली वोल्यूम मेरे पास है। छोड़ जाता हूँ। बाकी उस रिट्रीट में दिखाऊंगा।
गो : देखता हूँ। तबतक मैं हमारी टीम के 13 या 14 मुख्य लोगों के नाम और व्हाट्सऐप नंबर आपको भिजवाता हूँ।
मैं : मैं हफ्ते में चार-पांच दिन किसी न किसी विषय पर एक पोस्ट लिखता हूँ और बहुत सारे लोगों को ब्रोडकास्ट करता हूँ। अगर आप सहमति दें तो किसी ब्रोडकास्ट ग्रुप में उन सभी को डाल दूँ ताकि मेरे विचारों से वे तब तक परिचित होते रहे। वे भी मुझे अपने लेख या विचार भेज सकते हैं ताकि एक दूसरे को समझने की प्रक्रिया शुरू हो सके।
इस बीच गोविन्द जी के आप्त सचिव और एक सहयोगी वकील साहब भी हमारे बीच आ चुके हैं। गोविन्द जी अपने आप्त सचिव को यह निर्देश देते हैं कि वे गोविन्द जी से परामर्श कर 13-14 मुख्य सहयोगियों के नाम नंबर मुझे उपलब्ध करा दें।
गो : मैं यह भी चाहूँगा कि स्वामी अग्निवेश से आपकी जो चर्चा हुई उसके विवरण मुझे भेज दें।
मैं : जरूर भेजूंगा।
मेरे, गोविन्द जी और वकील साहब के बीच कुछ और बातें भी होती हैं। फिर एक सकारात्मक भाव के साथ हमारी मुलाकात का अंत होता है।
पी के सिद्धार्थ
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