Friday, 28 October 2016

इंसान और पशु पक्षी भाग 9

इंसान और पशु-पक्षी : भाग 9

पी के सिद्धार्थ
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(शेरों से जोई की मीटिंग के बाद)

अभी खूंखार जंगली शेरों से अपनी मुलाकात के सदमे से पूरा उबर नहीं पाया हूँ। अगली मीटिंग कहीं मगरमच्छों से न करा दे यह सनकी मैनिमल, यह डर बना हुआ है। जानवरों का क्या ठिकाना! कब उनका जानवरपना जग जाये!

जोई धीरे-धीरे धरती पर उतरने लगता है।

मैं नीचे देखता हूँ। यह तो एक शहर लग रहा है! दिन का समय है, लोग उड़ते हुए कुत्ते को देख लेंगे तो हंगामा मच जायेगा। किसी ने फ़ोटो खींच ली और मनेका गांधी को भेज दी तो एक जानवर की पूंछ के साथ ज्यादती करने के लिए वे मेरे ऊपर मुकदमा भी कर सकती हैं।

मैं : जोई, ये तुम क्या कर रहे हो, दिन का समय है, शहर में न उतरो।", मैं जोई से कहता हूँ।

जोई : समझ रहा हूँ। मैं शहर से हट कर एक बड़े राजनीतिक नेता के फार्म हाउस में उतारूँगा। शहर के लोग नहीं देख पाएंगे। उस फार्म हाउस में पेड़ों का अच्छा झुरमुट है। वहां पिंजरों में चिड़ियों का एक बहुत अच्छा कलेक्शन है। वहां मैं चिड़ियों से बातें करने कभी-कभी आता हूँ। एक साथ इतने तरह के पक्षियों का संग्रह कहीं और देखा नहीं। जरा चिड़ियों को हेलो कर के निकलते हैं।

मैं : संभल कर, शहर के ऊपर से न निकलो।

जोई शहर से किनारे हो कर निकलता हुआ फार्म हाउस में उतरता है। यहाँ जंगल-जैसा पेड़ों का एक झुरमुट है। लेकिन लगता है फार्म हाउस के मैदान में कोई बड़ी मीटिंग चल रही है, क्योंकि लाउडस्पीकर की आवाज़ें आ रही हैं।

"दोस्तो, मजदूरों का शोषण दुनिया भर में इसलिए होता रहा क्योंकि वे कमजोर हैं, संगठित नहीं। उन्हें इज्जत नहीं मिलती क्योंकि वे शारीरिक श्रम करते हैं, और शारीरिक श्रम करने वालों की इज्जत नहीं की जाती है। न केवल मजदूर, बल्कि जो भी वर्ग कमजोर है उसका शोषण होता है। औरतों का भी बहुत शोषण हुआ है। वह भी इसीलिए क्योंकि औरतें मर्दों से कमजोर होती हैं।

इसलिए, अगर शोषण से मुक्त होना है तो देश के मजदूरों एक हो, दुनिया के मजदूरों एक हो!"

मैं : जोई, ये कौन भाषण दे रहा है?

जोई : ये कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (टी) के राष्ट्रीय महासचिव हैं, कामरेड नायर। चलो मैं तुम्हें उनके दर्शन कराता हूँ।

जोई मुझे झुरमुट के किनारे ले जाता है। वहां डाइनिंग हॉल है जिसकी खिड़की झुरमुट की और खुलती है। लगता है कार्यक्रम ख़त्म हो चुका है, क्योंकि कामरेड नायर और कुछ दूसरे कामरेड डाइनिंग टेबुल पर आकर बैठ जाते हैं।

कामरेड नायर का वार्तालाप झुरमुट में सुना जा सकता है। हम पेड़ों की आड़ ले कर उनकी बातें सुनते हैं।

कामरेड नायर : लाओ भाई, बटर चिकेन, मटन, बेकन सब लगाओ, नान, पुलाव -  सब जल्दी लगाओ।

मैं जोई को, और जोई मुझे देखता है।

जोई : ये कामरेड अभी-अभी सही ही कह रहे थे कि जो वर्ग कमजोर होता है, असंगठित होता है, उसका शोषण करना मनुष्य की प्रकृति होती है। इनकी प्रकृति भी तो यही लग रही है।

मैं : कैसे?

जोई : जानवर इंसान से कमजोर होता है, और संगठित नहीं होता इसीलिए तो ये कामरेड उनका शोषण कर रहे हैं। अगर चिकेन, बकरे और सूवर संगठित हो कर नारे लगाते हुए जुलुस निकाल सकते और पुरजोर विरोध करते तो क्या इंसान उन्हें इतनी आसानी से मार कर उनका मांस खा पाते?

"बात तो सही है!", इतनी दूर तक तो अबतक मैंने सोचा ही नहीं। शायद कामरेड नायर ने भी नहीं सोचा हो। लेकिन सोचने लायक बात है।" मैं चिंतनशील हो जाता हूँ।

मैं : मैं कामरेड नायर के पास तुम्हारा सवाल जरूर रखूँगा।

जोई : विल्फ्रेड इसीलिए मैनिमल तैयार करने में लगे हैं कि कल को ये भी जुलुस निकाल कर इंसानों के जुल्म का विरोध कर सकें। अन्याय का विरोध नहीं कर चुप रहना मौत को निमंत्रण देने के बराबर होता है।

मगर अभी यहाँ हमारा रुकना सुरक्षित नहीं है। आज यहाँ काफी चहल-पहल है। ये लोग झुरमुट की ओर चिड़ियों की प्रदर्शनी देखने अगर आ गए तो बंटाधार हो जायेगा। चलो, निकल चलते हैं। मगर कामरेड नायर से आज मुझे एक अच्छा नारा मिल गया है - 'दुनिया के जानवरो, एक हो!' थैंक यू, कामरेड! और कामरेड, अगर आप श्रम की गरिमा की बात करते हो तो बैलों द्वारा खेतों में हज़ारों वर्षों से किये गए श्रम को याद करना, आपके धोबी के गधों द्वारा हज़ारों वर्षों से आपके कपड़े ढोने में की गयी मशक्कत का स्मरण करना, ऊंटों द्वारा रेगिस्तानों आदमियों और सामानों को ढोने में की जा रही मेहनत को भी न भूलना, और फिर सोचना कि क्या इन जानवरों को उनके श्रम के लिए तुमने उचित आदर दिया?

"कितना चिंतनशील और पर्सेप्टिव है यह जानवर", मैं सोचता हूँ। "और कितनी सही बातें कर रहा है!"

जोई और मैं फिर किनारे से हो कर अपनी आकाश यात्रा पर निकल पड़ते हैं।

पी के सिद्धार्थ
28 अक्टूबर, 2016

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