Sunday, 16 October 2016

इंसान और पशु-पक्षी भाग 4

इंसान और पशु पक्षी : भाग 4

पी के सिद्धार्थ
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मैं और जोई आकाश मार्ग से उड़े जा रहे हैं। सहसा जोई मुझे ले कर एक मंदिर में उतर जाता है। मैं चाँद के प्रकाश में देख सकता हूँ कि यह एक जैन मंदिर है। जोई मंदिर की ऒर मुख कर पीछे के पैर पीछे और आगे के पैर आगे फैलाकर बिलकुल लंबा हो जाता है, जैसे साष्टांग प्रणाम कर रहा हो। फिर अपने पैर समेट कर वह मुझसे मुखातिब होता है।

जोई : पशु-पक्षी जिस धर्म को सबसे अधिक आदर देते हैं, वह जैन धर्म है। पशु-पक्षियों के प्रति इतना आदर और रक्षा-भाव किसी दूसरे धर्म में नहीं। ये लोग शाम को ही भोजन कर लेते हैं ताकि अंधकार में कीड़े-मकोड़े गलती से भोजन के साथ अंदर न चले जाएं। इनके संत मुख पर सफ़ेद पट्टियां बांध कर रखते हैं ताकि सांस के माध्यम से कोई छोटे जीव इनके अंदर प्रवेश कर क्षतिग्रस्त न हों।

वास्तव में भारत में पैदा हुए लगभग सभी धर्म पशुओं को बहुत आदर और प्रेम देते हैं। जितने ऐसे पशु-पक्षी हैं जिन्हें मनुष्यों ने अन्धविश्वास या उनसे होने वाले खतरों के कारण नुकसान पहुँचाना  शुरू किया उन सभी की रक्षा करने के लिए हिन्दू ऋषियों ने किसी-न-किसी देवी या देवता का वाहन या संगी बना दिया।

"जैसे?", मैं पूछ कर उसके ज्ञान की परीक्षा लेता हूँ। मुझे यह भान हो रहा है कि जोई जानवरों के अंतर्राष्ट्रीय संगठन का महासचिव बनने की क्षमता रखता है।

जोई : जैसे उल्लू को लक्ष्मी की सवारी बना दी: सांप को भगवान शिव के गले में लपेट दिया ताकि लोग साँपों को भी जीने दें और मारने से कतराएं। नागपंचमी-जैसे पर्व बना कर नाग-पूजा का विधान बना दिया। जिस पशु ने आदमी की अब तक सबसे ज्यादा मदद की - अपना दूध पिला कर - उसे माँ का दर्जा दे कर उसका ऐसा आदर किया कि ऐसा उदहारण कहीं पूरी दुनिया में नहीं मिलता।

मैं : ("जानवरों को इतना आदर दिया, मगर मनुष्यों के एक वर्ग को उनकी मदद और सेवा के बदले आदर क्यों नहीं दे पाये ये हिन्दू?", मैं मन-ही-मन सोचता हूँ।) मगर वैदिक कर्मकांड और यज्ञ में कभी-कभी पशुबलि भी तो हिंदुओं ने दी।

जोई : कुछ दिन वैदिक काल में यह परंपरा रही, मगर उसका विरोध भी हुआ, और वह रुक भी गयी।

मैं : मगर दुर्गा-काली के मंदिरों में तो अभी भी पशु-बलि चलती ही है।

जोई : इसे हिन्दूधर्म पर हम जानवर एक काला धब्बा मानते हैं। इसीलिए तो मैं तुम्हें सबसे पहले जैन-मंदिर में लाया।

...और तुमने 2011 की भारत की जनगणना के परिणाम देखे?

मैं : कौन-से परिणाम?

जोई : कि भारत में किस धर्म के लोग 70 साल से अधिक सबसे बड़ी संख्या में जीते हैं?

मैं : याद नहीं आ रहा। मगर तुम इतना ज्ञान कैसे रखते हो? तुम्हारे पास बुद्धि और सोच  की उच्चतम कोटि की जीन्स हैं, यह तुमने बताया। मगर थिंकिंग या इंटेलिजेंस की जीन्स तुम्हें बिना पढ़े-लिखे इतनी सूचनाएं तो नहीं दे सकतीं!

जोई : मेरे दिमाग में चिप्स लगायी गईं जो मुझे ऑनलाइन समाचारपत्रों और विकिपीडिया से जोड़ कर रखती हैं। मेरे एक ब्रेन-चिप में पूरी इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका और इनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना इंस्टॉल्ड हैं।

इस जानवर को देखते-सुनते मेरी हैरानी लगातार बढ़ती ही जा रही है। यह कमबख्त तो मुझसे भी अधिक इन्फर्मेशन अपने दिमाग में कैरी करता है!

मैं : तो 2011 की जनगणना के परिणाम क्या बताते हैं लंबे जीवन के बारे में?

जोई : कि जैन लोगों के बीच भारत में सबसे अधिक सेप्टुअजेनेरियन्स हैं?
वह कुछ देर चुप रह कर मेरी ओर ऐसी निगाह से देखता है जैसे भांप रहा हो कि मैंने उसके द्वारा प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द का मतलब समझा या नहीं समझा।

मैं : मगर इससे क्या निष्कर्ष निकलता है कि जैनियों में सबसे ज्यादा सत्तर वर्ष से ऊपर के लोग हैं?

जोई : यही कि जो पशु-पक्षियों का मांस नहीं खाते वे, बाकी परिस्थितियों के सामान रहने पर, मांसाहारियों की अपेक्षा अधिक दिन जीते हैं। जैन लोग सबसे अधिक शाकाहारी होते हैं, और इसीलिए लंबा जीते हैं।

मैं  भी जैन मंदिर में नतमस्तक होता हूँ। महात्मा महावीर और अन्य जैन तीर्थंकरों के प्रति मेरी अगाध श्रद्धा उमड़ती है।

जोई मुझे आकाश मार्ग से फिर एक चर्च में ले जाता है। हम चर्च के प्रांगण में उतरते हैं।

मैं : अब मुझे इस चर्च में क्यों ले आए, जोई?

जोई : यह सामान्य चर्च नहीं है। यह सेवेंथ डे अड्वेंटिस्ट्स चर्च है।

मैं : सुना नहीं कभी।

जोई : यह ईसाइयत की एक शाखा है। बाइबिल में शाकाहार के लिए समर्थन साधारणतः नहीं पाया जाता। मगर 19वीं सदी में एक महिला ईसाई पैगम्बर हुईं एलन वाइट। उन्हें एक दिन ईश्वर ने यह ज्ञान प्रकट किया कि पशु-मांस मनुष्य के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं है। यह उसे शारीरिक रूप से बीमार करता हैं, बौद्धिक और नैतिक रूप से कमजोर करता है और नीच पाशविक वृत्तियों को जगाता है। इसीलिए इस चर्च के अनुयायी ईसाई मांस-मछली नहीं खाते। एक सर्वेक्षण में यह सामने आया कि ईसाइयों के बीच सबसे लंबी उम्र इसी चर्च को मानने वालों की होती है।

मैं : बुद्ध के बारे में तुम्हारा क्या विचार है, जोई?

जोई : बुद्ध के ह्रदय में जानवरों के लिए अपार करुणा थी। मगर एक घटना ने बाद में बुद्ध के कुछ अनुयायियों को मांस खाने का बहाना दे दिया। बुद्ध एक ही बार खाते थे। वह भी भिक्षा में मिला हुआ भोजन। अपनी दोनों हथेलियों को जोड़ कर कटोरा बनाते थे और जितना उसमें अटता था उतना ही खाते थे।  एक दिन उनके इस कटोरे में किसी ने भिक्षा में मांस डाल दिया। लोग साधारणतः उन्हें निरामिष भोजन ही भिक्षा में देते थे, और बुद्ध मांस खाने की सोच भी नहीं सकते थे। मगर उन्होंने उस दिन भिक्षुक का धर्म समझ कर वह मांस खा लिया। हम जानवरों की निगाह में उन्होंने बड़ी भूल कर दी। उन्हें उस दिन भूखे रह जाना चाहिए था। इस दृष्टान्त का गलत मतलब निकाल कर कुछ बौद्ध सम्प्रदाय के लोग यह मानने लगे कि अगर जानवर को उन्होंने नहीं मारा, और उनके लिए ही वह जानवर नहीं मारा गया, तो उसका मांस खाया जा सकता है।

मैं : और मुसलमानों के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?

जोई :  ह्म्म्म्म! (जोई थोडा चिंतित और भयभीत दिखता है।) उनके भी जानवरों के बारे में वे ही ख्याल हैं जो दूसरे सेमेटिक धर्मों के हैं : जानवर आदमी के खाने-पीने के लिए ही ईश्वर ने बनाये हैं। मगर मुसलमानों से जानवर सबसे ज्यादा भयभीत रहते हैं।

मैं : क्यों?
(क्रमशः)

पी के सिद्धार्थ
17 अक्टूबर, 2016

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