इंसान और पशु-पक्षी (भाग 8)
पी के सिद्धार्थ
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(जंगल में शेरखान के साथ मीटिंग)
जोई : शेरखान, आप अपनी लंच खा लें तो हम मीटिंग शुरू करें?
शेरखान : जरूर! खत्म ही है, चलो शुरू करते हैं...(शेरखान अपने शिकार का बच खुचा अंश गटक कर डकार लेता है, फिर थोड़ी गंभीर मुद्रा में बैठ जाता है।)
शेर खान : मुद्दा यह था कि हम दुनिया के ज्यादातर लोगों की यह धारणा कैसे दूर करें कि जानवरों में आत्मा नहीं होती, इसलिए उनकी क़ुरबानी देने या उन्हें खाने-पकाने में कोई हर्ज़ नहीं।
मैं : क्या मतलब? कौन कहता है कि जानवरों में आत्मा नहीं होती?
शेरखान : सारे सेमेटिक धर्म और उनपर आँख मूंद कर विश्वास करने वाले यही मानते हैं - यानि यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इसलाम धर्म। यह बड़ा अजीब विचार है! उनके अनुसार जानवर स्वर्ग या नर्क नहीं जाते, क्योंकि उनमें आत्मा ही नहीं होती। इनमें से कुछ तो पहले यह भी मानते थे कि औरतों में भी आत्मा नहीं होती! हम जानवरों में इंटेलिजेंस, भावनाएं सभी कुछ तो है, भले ही इंसानों से कम हो! हमारे शरीर में भी दिल, जिगर, किडनी, स्नायुतंत्र, फेफड़े, मस्तिष्क की संरचना आदि सभी कुछ तो मनुष्यों जैसी ही है, कम-से-कम हममें से कुछ स्पीसीज में। हम भी इंसानों की तरह ही लालची होते हैं। फिर क्यों यह मान्यता है कि मनुष्यों में आत्मा होती है, मगर जानवरों में नहीं होती? हमें भी ख़ुशी होती है, और हमें भी पीड़ा होती है!
"उस इंसान को भी तो पीड़ा हुई होगी जिसे तुम अभी खा रहे थे! मगर तुम भी तो उसकी पीड़ा नहीं समझ रहे! बिलकुल इंसानों की तरह!", मैं मन ही मन सोचता हूँ मगर यह बात शेरखान को कहना इस वक्त खतरे से खाली नहीं।
जोई : बर्ट्रेंड रसेल ने इसीलिए, इन्हीं बेतुकी और अस्वीकार्य बातों के चलते, उस धर्म को त्याग दिया जिसमें वे पैदा हुए थे। उन्होंने अपनी किताब 'व्हाई आई एम नॉट अ क्रिस्चन' में लिखा कि यह निहायत बेतुकी बात है कि कुत्ते में आत्मा नहीं और आदमी में है। अगर है तो दोनों में है, नहीं है तो दोनों में किसी में भी नहीं।
मैं : धर्मो, ईश्वरदूतों और पैगम्बरों की कई बेतुकी बातों से लोगों को बचाने के लिए वैज्ञानिक चेतना और क्रिटिकल थिंकिंग को पाठ्यक्रम के माध्यम से स्कूलों-कॉलेजों में प्रसारित करने से ही इस तरह के अंधविश्वासों से लोगों को मुक्ति मिल पायेगी। लेकिन कुछ बेतुकी और गलत बातों के कारण समूचे धर्म का त्याग भी मुझे उचित नहीं लगता। कुछ कंकड़ों के चलते पूरे चावल को ही फेंक देना भी शायद उचित नहीं। कंकड़ों को चुन कर निकाल देना, और फिर चावल का उपयोग करना एक बेहतर विकल्प लगता है, अगर वह चावल खाने योग्य है।
जोई : विल्फ्रेड का मकसद यह था कि जब हर मुख्य स्पीसीज में कुछ आदमी की तरह सोचने वाले जीव के जोड़े तैयार हो जाएंगे, और उनके संयोग से सोचने वाले जींस के साथ नए बच्चे पैदा होंगे, तो बड़ी संख्या में इंसानों की पशु-विरोधी गतिविधियों का विरोध करने वाले समर्थ और इंटेलिजेंट पशु-समूह खड़े हो कर मनुष्यों से अपनी रक्षा करने के तरीके निकाल पाएंगे। आज विल्फ्रेड के प्रयासों से काफी मैनिमल्स उन जीवों में तैयार हो गए हैं जिन्हें मनुष्य क़ुरबानी या भोजन के लिए प्रयोग में लाता है।
शेरखान : सिर्फ अपनी रक्षा? हुंह! यह विल्फ्रेड की मंशा होगी!हमारी नहीं! मैनिमल्स की उचित संख्या होते ही हम मनुष्यों पर आक्रमण कर उन्हें तहस-नहस कर देंगे, खत्म कर देंगे। उनकी संख्या ही कितनी है? सिर्फ 740 करोड़! और हमारी संख्या कितनी है, जोई, कोई अनुमान?
"यहाँ भी वही हाल!", मैं सोचता हूँ। "जितना पावर, उतना ही कम ज्ञान और उतना ही कम दिमाग लगाने की प्रवृत्ति!"
जोई : एक शोध के अनुसार एक एकड़ में 12.4 करोड़ से भी ज्यादा कीड़े मकोड़े होते हैं, यह वैज्ञानिकों ने ही शोध कर निकाला है। सिर्फ पालतू पशुओं या लाइवस्टॉक की अनुमानित संख्या चौबीस सौ करोड़ से भी ज्यादा है, यानि मनुष्यों का साढ़े तीन गुना। इसमें सिर्फ चिकेन या मुर्गियों की संख्या ही 1800 करोड़ है। लेकिन दुनिया में सबसे अधिक कीड़े-मकोड़े हैं - एक एकड़ में 12.4 करोड़!
मैं इस मैनिमल कुत्ते की स्मृति पर हैरान हूँ। "यह तो जाकिर नायर का शागिर्द लग रहा है! कहीं नायर की तरह आंकड़े फेंक तो नहीं रहा?", मैं सोचता हूँ।
मैं : तुम्हारे आंकड़ों का श्रोत जोई?
जोई : लाइवस्टॉक के बारे में फ़ूड ऐंड ऐग्रिकल्चर ओर्गेनाइज़ेशन।
मैं : और धरती पर जानवरों की कुल संख्या ?
जोई : गणितशास्त्री कंप्यूटर विशेषज्ञ पशु अधिकार क्रियावादी ब्रियान टोमासिक के अनुसार 20 क्विंटिलियन।
शेरखान : इसका मतलब?
जोई : 20 बिलियन बिलियन!
शेरखान कन्फ्यूज़्ड और अवसादग्रस्त दिखता है, वैसे ही जैसे भारत में कम पढ़े-लिखे मंत्री पढ़े-लिखे ब्यूरोक्रेट्स की कुछ बातों को नहीं समझ पाने पर अपनी प्रतिष्ठा की हिफाज़त करने के लिए पूछ भी नहीं पाते और बात समझ भी नहीं पाते और अंततः फ़ाइल में मजबूर हो कर प्रस्ताव पर दस्तखत कर देते हैं।
"वही हाल यहाँ भी!", मैं फिर सोचता हूँ, "जितना अधिक पावर, उतना ही कम दिमाग, उतना ही कम ज्ञान!"
शेरखान : अच्छी संख्या में मैनिमल्स तैयार हो कर अगर अन्य जानवरों को नेतृत्व प्रदान कर दें तो 740 करोड़ मनुष्यों का सफाया तो एक दिन में हम जानवर कर दें! गुर्रर्रर! कीड़े मकोड़े ही चाहें तो एक साथ आक्रमण कर इंसानों को ख़त्म कर दें।
"अल बगदादी शेर खान से मिल कर बहुत खुश होगा", मैं सोचता हूँ। "इसकी सोच बगदादी से काफी मिलती है!"
शेर खान : फिर हमें एक दिन तो दुनिया का सबसे स्वादिष्ट भोजन मिलेगा - मनुष्यों का मांस! अहा, क्या सुन्दर दिन होगा वह!
शेर खान की बात सुन कर बाकी शेर मेरी ओर ललक भरी दृष्टि से देखते हैं। मैं हनुमानचालीसा का पाठ मन ही मन करना शुरू कर देता हूँ और चर्चा को गलत दिशा में जाता देख हस्तक्षेप करता हूँ।
मैं : शेर खान, फिर तो वही गलती हो गयी जो इंसान कर रहे हैं। दुनिया सभी की हैं, सभी को यहाँ रहना चाहिए। बायो-डाइवर्सिटी जरूरी है न!
जोई : शेर खान, हम कुछ मैनिमल्स की एक मीटिंग रखें जिसमें पशुओं से जुड़े और मुद्दों पर भी गंभीर चर्चा हो। तब विस्तार में बातें करेंगे। अभी हमें इजाज़त दो!
जोई मुझे लेकर ऊपर उठता है और कोई 20 फीट ऊपर पेड़ पर बैठ जाता है।
जोई : शेर खान, तुम तो मैनिमल हो, यानि आधे आदमी हो गए हो। इंसानों में आज कल जेंडर जस्टिस की बात बहुत चल रही है। थोडा तुम भी समझो। मैंने सुना है की नर शेर बड़े आलसी होते हैं, सिर्फ बैठे ही रहते हैं, और सारा काम मादा शेरनी से ही कराते हैं। यहां तक कि उसके लिए शिकार कर के पशु लाना और बच्चों का पालन पोषण और रक्षा भी शेरनी ही करती है। यह अच्छी बात नहीं है। मनुष्यों में आज बिहार के अलावा दुनिया में कहीं भी नर मानव इस तरह के आलसी नहीं होते कि खुद पड़े रहें और स्त्री बहार-भीतर के सारा काम दिन-रात करती रहे।
शेरखान उठ कर जोई की शरारत समझ कर मुस्कुराता हुआ गुर्राता है, और उसपर लपकने की मुद्रा बनाता है, मगर दो शेरनियां उसे ढेर कर देती हैं। इधर जोई मुझे ले कर फिर आकाश में हो लेता है। मैं समझ गया हूँ कि आज जोई ने चतुराई के साथ एक तीर से दो गंभीर शिकार किये हैं। मगर मैं असहाय हूँ। अगर उसका गला दबाने की कोशिश करता हूँ तो छूट का नीचे गिर जाऊंगा!
पी के सिद्धार्थ
26 अक्टूबर, 2016
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