इंसान और पशु-पक्षी : भाग 7
पी के सिद्धार्थ
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(समुद्र तट पर कुछ मैनिमल और मैं वार्ता कर रहे हैं।)
जोई : दोस्तो, सुबह होने वाली है। अब यहाँ इंसान जमा होने लगेंगे। इसलिए फिर मिलते हैं। आगे जंगल में एक मीटिंग भी होने वाली है, विल्फ्रेड के मैनिमल शेरखान के साथ। शेरखान अपने दोस्तों के साथ हमारा इन्तजार कर रहे होंगे। अभी चलते हैं। शुभ दिन!
डॉल्फ़िन वापस पानी में चली जाती है। गाय और खरगोश भी वापस हो लेते हैं। जोई और मैं फिर आकाश यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
जमीन के लोगों को दृष्टिगोचर नहीं हो इसके लिए हम काफी ऊंचाई पर उड़ रहे हैं। चारों तरफ बादल हैं। फिर जोई एक घने जंगल में उतरता है। जहाँ हम लैंड करते हैं, वहां कई शेर इकट्ठे हैं। कई शेर हमारी ओर देख कर गुर्राते हैं। कुछ हमारी और लपकने की भी मुद्रा बनाते हैं। ईश्वर द्वारा भेजा गया अत्यंत स्वादिष्ट लंच सामने देख कर उनकी राल टपकती साफ दिख रही है। मगर शेर खान उन्हें हमारी और बढ़ने से रोकता है। शेर खान खुद एक इंसान को मार चुका है, और उसका लंच कर रहा है।
शेर खान : जोई और सिद्धार्थ जी, आपका स्वागत है।
मैं इतने सारे शेरों को देख कर उत्साहित नहीं हूँ। गीता के कई श्लोक मस्तिष्क में आ-जा रहे हैं, विशेष कर वे श्लोक जो मृत्यु के समय सुने-सुनाये जाते हैं : नैनं छिदंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः.. अर्थात आत्मा को शस्त्र छेद नहीं सकते, आग जला नहीं सकती....
ये श्लोक तो यही बताते हैं कि आत्मा कभी मरती नहीं है, और तुम आत्मा हो, शरीर नहीं। शरीर के नष्ट होने की चिंता क्यों करते हो?
मगर भाई, इन शेरों के पंजे इस शरीर को छेद कर तहस-नहस कर देंगे, और इनके भूखे पेटों की आग मिनटों में इस शरीर को भस्म भी कर देगी। ये मैं जानवरों की भलाई के चक्कर में कहाँ फंस गया। अभी तो भारतीय सुराज दल बना कर भारत को गर्हित राजनीतिज्ञों के चंगुल से बचाने का जो संकल्प ले रखा है, वह संकल्प बिना इस शरीर के कैसे पूरा होगा! पहले इस शरीर को इन शेरो के चंगुल से तो बचाऊँ!
फिर एक महात्मा का प्रसंग याद आता है जिनके सामने आते ही जंगल में शेर और अन्य जंगली जानवर अहिंसक हो कर शांत हो जाते थे, क्योंकि उन्हें वे महात्मा गीता का एक श्लोक सुनाते थे और स्वयं भी ह्रदय से महसूस करते थे - ममैवांशो जीवलोके जीव भूतः सनातनः... अर्थात सभी जीवों में एक ही परमेश्वर का अंश आत्मा के तौर पर बैठा हुआ है। यानि शेर और अन्य जानवर भी ईश्वर के ही अंश हैं, वे बस मायावश अपना ईश्वरत्व भूल गए हैं, जैसे कि इंसान भी भूल गया है। उन महात्मा के यह ह्रदय से याद करने और जंगली जीवों को ऐसी ही भाव-तरंगें प्रेषित करने से वे शेर और अन्य जानवर शांत हो कर मित्रतापूर्ण व्यवहार करने लगते थे। शायद भक्तमाल में पढ़ा था।
मैं भी मन-ही-मन वह श्लोक याद कर भाव-तरंगें शेरो तक प्रेषित करने की कोशिश में लग जाता हूँ कि शायद उनके अंदर सद्बुद्धि जगे, और मेरा और जोई को अपना लंच या डिनर बनाने का विचार वे त्याग दें।
शेर खान : सिद्धार्थ जी, आप डरें नहीं। जोई हमें सन्देश भेज चुका है कि आप जानवरों का भला करना चाहते हैं। इसलिए यहाँ के जानवर आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। मैं विल्फ्रेड का तैयार किया हुआ मैनिमल हूँ। मैं सोच सकता हूँ, इंसानों की भाषा में बोल भी सकता हूँ। ये जो दूसरे शेर हैं वे जानवर हैं, मगर मैंने उनकी भाषा में उन्हें समझा दिया है कि आपको और जोई को नुकसान नहीं पहुंचाएं।
मैं : लेकिन तुम तो एक इंसान को खा रहे हो। क्या यह वाजिब है?
शेर खान : इसमें क्या खराबी है? सिद्धार्थ जी हमारी फ़ूड हैबिट्स पर टिप्पणी कर हमारी भावनाओं को आहत न करें। कौन क्या खाता है इसपर कोई टिपण्णी नहीं करनी चाहिए, यह विल्फ्रेड के एक दोस्त ने विल्फ्रेड से तब कहा था जब विल्फ्रेड ने उसे जानवर खाने से मना किया था।
'ऐसा ही तो मेरे भी एक मांसाहारी मित्र ने मुझसे कहा था, जब मैंने मांसाहार पर प्रतिकूल टिपण्णी की थी', मैं मन ही मन सोचता हूँ।
(क्रमशः)
पी के सिद्धार्थ
25 अक्टूबर, 2016
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