Tuesday, 1 November 2016

जे पी और मैं भाग 1

जे पी और मैं
(भाग - 1)

पी के सिद्धार्थ
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मेरे पारिवारिक स्रोतों के अनुसार श्री जयप्रकाश नारायण के पिता का नाम श्री हरखू दयाल था। वे बिहार में सरकार के नहर विभाग में डेपुटी कलक्टर स्तर के एक अधिकारी थे। उनकी बहन की शादी बिहार के ही आरा जिला के केवटिया गांव के श्री बाँके बिहारी से हुई थी। इन दोनों के चार पुत्र और एक पुत्री हुई। इन्हीं में एक थे मेरे पितामह श्री बजरंग प्रसाद सिन्हा, जिन्होंने उत्तर बिहार में सीवान नामक स्थान में वकालत का पेशा अपनाया। जीवन के अंतिम चरण में वे पटना चले आए और वहां उन्होंने कुछ दिनों तक पटना हाई कोर्ट में भी वकालत की। 1971 में पटना में अपना मकान भी बना, और उसी मकान में मेरे माता-पिता, मैं और मेरे भाई-बहन भी दादा-दादी के साथ रहने लगे। 'जे पी' या श्री जयप्रकाश नारायण, जिन्हें बाद में 'लोकनायक' की उपाधि से भी नवाजा गया, मेरे पितामह के ममेरे भाई रहे।

जे पी भी पटना में ही रहते थे। उनका मकान, जिसे चरखा समिति के नाम से अधिक जाना जाता था, हमारे घर से कोई 4 किलोमीटर पर स्थित था, जो पटना जैसे छोटे शहर में बड़ी दूरी ही मानी जाती थी। इसलिए बहुत जल्दी-जल्दी आना-जाना नहीं हुआ करता था। बीच-बीच में मेरे पिता जी उन्हें देख आया करते थे।

1974 के आंदोलन के पूर्व परिवार में जे पी से अधिक मैं उनकी पत्नी प्रभावती जी की चर्चा सुना करता था क्योंकि मेरा कोई संवाद मेरे पिता और बाबा (पितामह) से नहीं हो पाता था। कुछ ऐसी ही परंपरा थी हमारे घर में, या हर घर में उस समय। दादा जी की प्रकृति भी बहुत बात-चीत करने वाली नहीं थी। मगर मैं अपनी दादी से काफी घनिष्ट था, और उनसे प्रभावती जी की कहानियां सुन कर तो उस समय ऐसा ही लगता था जैसे जे पी से भी बड़ी शख्सियत वे ही थीं।
(क्रमश:)

पी के सिद्धार्थ
14 सितम्बर, 2016

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