Saturday, 8 October 2016

इंसान और पशु पक्षी - भाग 2

इंसान और पशु-पक्षी - 2
डॉ डाना क्रेम्पिल्स के निःस्वार्थ पशुप्रेम के संस्मरण।

पी के सिद्धार्थ,
8252667070
www.bharatiyachetna.org
www.suraajdal.org
www.pksiddharth.in

वर्ष - 2007 । स्थान - रांची।  मेरे पशुप्रेमी पुत्र प्रियदर्शी एक दिन दो नवजात खरगोश ले कर आये। उन्हें घर की घोषित नीति का पता था कि यहाँ पेट (pet) नहीं रखना क्योंकि हम उसकी उचित देख-भाल समय के अभाव के कारण नहीं कर सकेंगे। मगर दो सुन्दर खरगोशों को देख कर मेरे पुत्र से रहा नहीं गया। वे घोषित नीति के विरुद्ध खरगोश ले आये, यह बता कर कि न तो इनके पालन-पोषण में समय खर्च होता है, न पैसे। बाद में मैंने पाया कि यह सत्य नहीं था। मैं पशु-पक्षियों के विषय में कोई विशेष जानकारी या दिलचस्पी नहीं रखता था। लेकिन जब खरगोश आ ही गए तो उन्हें घर में रहने देने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं बचा। घर में वे यहाँ-वहां फुदकते फिरते थे। उनका नामकरण भी हो गया - जूनी और डुई। जूनी लड़का था और डुई लड़की। कभी-कभी फुदकते हुए मेरी स्टडी में आ कर मेरी गोद में भी ये बैठ जाते थे। उनमें से डुई बहुत चतुर थी। जब भी किचन में कोई नहीं रहता तो दबे पांव किचेन से चुरा कर पिछवाड़े बागान में छुप कर गाजर कुतरना उसका मुख्य धंधा था।

जल्दी ही मैंने पाया कि वे दो से चार, फिर दर्जनों की संख्या में घर के पीछे के बागान में घूम रहे थे। इतना तेज प्रजनन-चक्र तो मैंने देखा नहीं था! न कभी सुना था! मैं अवाक था!

उनके लिए लोहे की जाली का घेरा देकर एक आवासीय परिसर भी बना दिया गया जिसमें उन्होंने मिट्टी कोड़ कर भूगर्भ में अपना सुरंगों से भरा घर भी बना लिया। शाम होते ही वे अपने आवासीय परिसर में आ जाते, और रात्रि में उनकी सुरक्षा के लिए उनके आवासीय परिसर को बंद कर दिया जाता था।

एक दिन एक खरगोश गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। उसके मुख के अग्र भाग में 'माइट्स' ने आक्रमण कर दीमक की तरह जकड़ लिया। वह बड़ा उदास और दुखी रहने लगा। मैंने पाया कि सारा परिवार गंभीर चिंता में था कि कैसे उसे रोगमुक्त किया जाय और कैसे उसकी उदासी दूर की जाय। जब मोहल्ले के पशु-चिकित्सक से निदान नहीं हो पाया तो जानवरों के सरकारी हस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी बुलाये गए। उन्होंने भी खरगोश को देख कर दवाएं लिखीं। मगर उनसे भी बात नहीं बनी। इस बीच इंटरनेट पर जा कर दुनिया भर में मेरे पुत्र द्वारा जो सन्देश छोड़े गए उनके कारण अमेरिका के मियामी विश्वविद्यालय की बायोलॉजी की एक प्राध्यापिका डाना क्रेम्पिल्स संपर्क में आयीं, जो डाइरेक्टर ऑफ अन्दरगैजुएट स्टडीज़ थीं।  वे पशु-चिकित्सक तो नहीं लगीं मगर उनके कहने पर खरगोश की बीमारी के लक्षण और चित्र उन्हें भेजे गए। उन्होंने दवाइयाँ बताईं। उसके बाद लगातर वे ईमेल पर संपर्क में बनी रहीं और खरगोश की खबर लेती रहीं। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ यह सब देख-सुन कर। उन्हें कोई आर्थिक या अन्य लाभ नहीं हो रहा था।  हज़ारों मील दूर बैठी वे  अपना इतना ध्यान और समय लगा रही थीं एक अदना-से जीव को रोग और पीड़ा से मुक्त करने के लिए!

पूंजीवाद का स्टिरियोटाइप लें तो 'ग्रीड' या आर्थिक लाभ ही मुख्य प्रेरक शक्ति होती है इस व्यवस्था में मनुष्यों की, ऐसा कुछ लोग मानते हैं। मगर यहाँ कौन-सी 'ग्रीड' थी, मैं नहीं समझ पा रहा था। मैंने कुछ दिनों पूर्व यह भी पढ़ा था कि बुद्ध ने दया और करुणा की भावना को मनुष्यों के परे जाकर पशु-पक्षियों तक विस्तारित किया, मगर ईसा की करुणा के पात्र सिर्फ मनुष्य ही रहे; पशु-पक्षियों तक उनकी करुणा विस्तारित नहीं हो सकी। बाइबिल ने तो यह कह कर एक घातक पशु-विरोधी सन्देश भी छोड़ दिया कि ईश्वर ने सारी दुनिया और हर एक अन्य जीव को मनुष्य के भोग और उपयोग के लिए ही बनाया है। इस कथन को ईसाई मांसाहार के पक्ष में उद्धृत करते रहे हैं। मेरे कई ईसाई मित्रों के अनुसार जानवर तो मनुष्य द्वारा खाये जाने के लिए ही ईश्वर ने बनाये।

और यहाँ एक महिला थी जो ईसाई भी थी और पूंजीपति अर्थव्यवस्था का अंग भी। मगर यह तो इंसान और सिर्फ इंसान ही लग रही थी! शायद यह उसकी शिक्षा और उसका स्वविवेक था जो उसे अपने मजहब और अर्थव्यवस्था के लक्षणों से ऊपर उठ कर सिर्फ और सिर्फ इंसानियत का मजहब अपनाने को प्रेरित कर रहा था । डाना का व्यवहार तो शुद्ध मानवीय संवेदना पर आधारित था ! इसमें कोई तर्क नहीं था, सिर्फ शुद्ध-बुद्ध उदात्त मानवीय संवेदना थी!

मैंने निश्चय ही डाना से इंसानियत का यह पहलू सीखा कि एक छोटे-से जीव की जान बचाने में भी इंसान को अपनी सारी कूबत लगा देनी चाहिए, क्योंकि हर जीव की जिंदगी और पीड़ा का मोल होता है। अपने पुत्र से भी मैंने इस प्रसंग में यही सीखा। उसकी संवेदना, चिंता और प्रयासों का भी मैं लगातार साक्षी बना हुआ था। मैंने चुटकी लेने के लिए प्रियदर्शी से पूछा कि फ्लोरिडा की उस कन्या की उम्र क्या है, पता करो। विवाहित है या अविवाहित? तुम दोनों अच्छे पशुप्रेमी हो, मिल-जुल कर दुनिया के पशु-पक्षियों का काफी भला कर सकते हो! ईमेल पर जानवरों के इलाज़ के अलावा और भी बातें किया करो तो अच्छा रहेगा! वह समझ गया कि उसकी खिंचाई हो रही थी। डॉ डाना एक वरीय प्राध्यापिका थीं, यह मुझे पता था।

खरगोश डाना की दवाइयों से ठीक हो गया। लेकिन जल्दी ही एक दूसरे खरगोश के पिछले दोनों पैर एक बिल्ली के आक्रमण से नाकाम हो गए और वह अगले दोनों पैरों से शरीर को घसीट-घसीट कर बड़ी मुश्किल से खिसक रहा था। उसकी बेबसी और पीड़ा देख कर वाकई हमें भी बहुत पीड़ा हो रही थी। फिर डाना से संपर्क किया किया गया। उन्होंने कहा कि पैरों को ठीक करने के लिए अब कुछ नहीं किया जा सकता था। मगर उसके लिए एक वाकिंग-एड उपकरण बना कर उसकी मदद चलने-फिरने में की जा सकती थी। तब नेट पर बहुत सारे मॉडल देख कर दो छोटे-छोटे चक्कों वाला एक उपकरण बनाया गया जिसे खरगोश की कमर के पिछले हिस्से में इस प्रकार बाँधा गया कि उसके शरीर का पिछला हिस्सा थोडा उठ गया और अगले दो पैरों के बूते आसानी से वह खरगोश आगे बढ़ने लगा, और पिछले पैरो  की कामचलाऊ जगह उन चक्कों ने ले ली।

यह मनुष्य से इतर जो जीव हैं उनकी जान और उनकी पीड़ा की कीमत बारीकी से समझने का यह मेरा पहला अवसर था। मैंने डाना को और अपने पुत्र को मन-ही-मन इस नयी सीख के लिए ह्रदय से धन्यवाद दिया।

पी के सिद्धार्थ
8 अक्टूबर, 2016

No comments:

Post a Comment