स्वामी अग्निवेश के आश्रम में चिंतन शिविर का तीसरा और अंतिम दिन। (भाग 1)
पी के सिद्धार्थ
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आज चिंतन-शिविर का अंतिम दिन है। विगत दिन के मैरेथन सत्र के बाद आज लोग थोड़े आराम से हैं। 11 बजे सत्र शुरू होता है। उच्चतम न्यायलय के वकील और जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता भाई राम मोहन राय की तबियत ठीक नहीं है, फिर भी वे भेलपा आश्रम गोष्ठी में भाग लेने आ गए हैं।
स्वामी जी, जो शांत चित्त से बैठे हैं, चुप्पी तोड़ते हैं।
स्वामी अग्निवेश : कल बहुत नेगेटिव वातावरण था। पता नहीं क्यों! आज पॉज़िटिव वातावरण लग रहा है...
...मैंने कल रात काफी सोचा कल की चर्चा पर। मुझे भी लग रहा है कि सबसे जरुरी मुद्दा है गरीबी दूर करना। गरीबी दूर होने से बहुत सारी समस्याओं का अपने आप अंत हो जायेगा! नशाखोरी भी कम हो जायेगी! नशा मुक्ति आंदोलन छोड़ कर अब इसी मुहीम में लगने की जरुरत है। खास कर खेती से लखपति कार्यक्रम से किसानों की गरीबी दूर करने के मुहीम में।
स्वामीजी की बात सुनकर मैं आश्चर्य चकित रह जाता हूँ। सत्य कहने का साहस जुटाना एक कठिन काम है। मगर सत्य को स्वीकार करना उससे भी अत्यंत कठिन! खास कर तब जब सत्य हमारी अपनी ही चिर-स्वीकृत मान्यताओं के विरुद्ध हो!
जिस नशा-मुक्ति आंदोलन की शुरुआत स्वामीजी ने ही मेरे जानते अभी साल भर पूर्व सर्व धर्म संसद की गोष्ठी में दिल्ली के कांस्टिच्यूशन क्लब में खुद की थी, और जहाँ उस अवसर पर मैं भी संयोग से उपस्थित था, उसी को छोड़ने का विचार, एक नए कार्यक्रम के पक्ष में!
मैं : नहीं स्वामीजी, शराब भी गरीबी के कारकों में से एक है शराबबंदी का अभियान भी चलता रहना चाहिए।
...रही बात गरीबी-निवारण की तो उसके लिए या तो हमें सत्ता में आना होगा, योजना को व्यापक और व्यवस्थित रूप से कार्यान्वित करने हेतु, या फिर देश के सभी मुख्य रचनाधर्मी नेतृत्वकर्ताओं को एक प्लैटफॉर्म पर आना होगा, और गांव-गांव के लिए सुप्रशिक्षित नेतृत्वकर्ता तैयार करने होंगे। तभी व्यापक स्तर पर यह कार्यक्रम गैरसरकारी पहल के अंतर्गत गांव-गांव में चल पायेगा।
स्वामी अग्निवेश : मैं अपना यह तीन एकड़ का आश्रम प्रयोग और प्रशिक्षण आदि के लिए उपलब्ध कराने को तैयार हूँ।
रितुपर्णा : यहाँ लीडरशिप विकास के लिए लगातार कार्यक्रम चलाये जा सकते हैं। हमारे पास प्रोजेक्टर है। मगर अन्य उपकरण नहीं हैं।
स्वामी अग्निवेश : वे सब आ जाएंगे। मगर यहाँ एक टीम को तो लगातार रहना पड़ेगा। रोटेशन से ही रहें लोग, मगर यहाँ लोगों को रहना तो पड़ेगा। रितुपर्णा जी तैयार हैं रहने को, मगर दो लोग कम-से-कम और उनके साथ आश्रम में रहने पड़ेंगे।
...पहले एक कोर कमिटी बन जाये। रितुपर्णा जी उसकी संयोजक बन जाएं।
रितुपर्णा : मैं यहाँ साल में छह महीने रहूंगी, मगर संयोजक मनोहर मानव बनेंगे। (कुछ बहस के बाद मनोहर मानव अपनी मानवीयता दिखाते हुए तैयार हो जाते हैं।)
9 आदमियों की एक कोर-कमिटी आश्रम में होने वाले कार्यक्रमों की योजना और कार्यान्वयन के लिए गठित कर दी जाती है, जो हर महीने मिलने की कोशिश करेगी, यह तय होता है। (क्रमशः)
पी के सिद्धार्थ
22 सितम्बर, 2016
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