Thursday, 8 December 2016

The Maneater of Manatu part 1

द मैन ईटर ऑफ़ मनातू (भाग 1)

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

अपने पुलिस करियर में कई जिलों में पदस्थापित रहा। इनमें अन्य जिले अगर कहानी थे तो तत्कालीन बिहार का पलामू जिला एक उपन्यास था। इसमें कई स्तरों पर सामानांतर चलती हुई कहानियां थीं, और अनेक अलग-अलग चरित्र या किरदार थे। एक और मदन कृष्ण वर्मा, हजारीलाल शाह, परमेश्वरी दत्त झा, पूरन बाबू जैसे चरित्र थे तो दूसरी और इनके ठीक विपरीत अनोखे चरित्र भी थे।

इन्हीं अनोखे चरित्रों में एक थे मनातू के मउआर जो 'मैन ईटर ऑफ़ मनातू' के नाम से प्रसिद्ध थे। पलामू आने के बाद इनके नाम से परिचित हुआ। यह भी पता चला कि इनपर 'मैन ईटर ऑफ़ पलामू' के नाम से एक प्रसिद्ध डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म भी बन चुकी थी।

एक खबर थी कि मउआर कभी एक बाघ को पिजड़े में रखा करते थे, और किसी ने विद्रोह किया या इनके विरोध में कोई बुरा काम किया तो उसे बाघ के पिजड़े में डाल दिया जाता था। शायद ये खबरें इनके पिता जी के सम्बन्ध में थीं, मगर ज़माने के फर्क के बावजूद जनधारणा में कुछ उसी प्रकार के खूंखार सामंती चरित्र वर्तमान मउआर भी माने जाते थे। मैंने सारी कहानियों का सत्यापन तो नहीं किया, मगर यह तो समझ गया कि पलामू में नक्सलवाद के कारकों में ऐसे सामंती चरित्र निश्चित रूप से थे। पलामू के कई सामंतो के पूर्व इतिहास से तो ऐसी कहानियां भी जुडी थीं कि जब जंगल में गरीब औरतें लकड़ी लाने जाती थीं तो उनमें से कुछ को निर्वस्त्र कर के कुछ सामंती तत्त्व उनकी अवमानना और प्रतारणा भी करते थे। पुलिस और प्रशासन तथा राजनीति में दबदबा रखने वाले इन सामंतों के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं होती थी। इस तरह के अपमान का बदला लेने की भावना भी नक्सली पैदा करने के कारकों में एक हुई।

इसलिए, अगर नक्ससलवाद पर नियंत्रण करना था तो सामंती तत्त्वों पर कार्रवाई जरुरी थी।

अतः मैंने मनातू के प्रभारी डी एस पी से कहा कि मउआर पर कार्यवाई करने के विधानसम्मत कारण तलाशें। दो-चार दिनों में ही डी एस स पी ने बताया की मउआर के एक पुत्र पर एक गंभीर आपराधिक आरोप था, और उसपर एक वारंट भी लंबित था।

जब लंबे समय तक अपराधी फरार रहता है तो कुछ विहित प्रक्रियाएं पूरी कर उसके घर की 'कुर्की-जब्ती' की जा सकती है। अतः मैंने कुर्की-जब्ती के आदेश दिए। मगर शीघ्र ही मुझे अहसास हुआ कि स्थानीय थानेदार  इतना साहस नहीं जुटा पायेगा कि मउआर के घर पहुँच कर उनके घर के सारे सामान जब्त कर सके। वह कुछ कागज़ी प्रक्रियाएं पूरी कर मामले को रफा-दफा कर लेगा। इसलिए मैंने डी एस पी को कहा कि मैं खुद कुर्की- जब्ती करने चलूँगा। डी एस पी ने कहा कि ऐसा तो कभी हुआ नहीं कि कोई एस पी यह कार्य करे; यह तो दारोगा का ही काम है। मैंने कहा की दारोगा ही करेगा, मगर मेरी उपस्थिति में।

अब तक मउआर साहब से मेरी मुलाकात नहीं थी। मैं और डी एस पी मनातू थाने पहुंचे और थानेदार को ले कर मउआर के यहाँ पहुंचे और उनके घर का एक-एक सामान, यहाँ तक कि रसोई के सारे बर्तन भी कुर्क कर लिए। दो पुरानी विंटेज गाड़ियां भी बाहर खड़ी थीं। उन्हें भी जब्त कर लिया गया।

लोगों ने बताया कि यह पहली बार हुआ था कि पुलिस मउआर के घर में घुसी थी। अतः प्रतिक्रिया की आशा की जा सकती थी। मगर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कोई गोली नहीं चली। वास्तव में मउआर परिवार का कोई सदस्य घर में नहीं मिला। जाहिर है कि पुलिस से ही उन्हें पहले ही खबर मिल गयी होगी। (क्रमशः)

पी के सिद्धार्थ
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