Wednesday, 7 December 2016

मदन कृष्ण वर्मा : एक स्मरणीय सामाजिक व्यक्तित्व भाग 3

मदन कृष्ण वर्मा : एक स्मरणीय सामाजिक व्यक्तित्व (भाग 3)

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

मैंने मदन बाबू से यह विचार साझा किया कि मैं चाहता था कि नक्सलियों की धर-पकड़ के ऑपरेशन 'अग्निदूत' के साथ-साथ एक रचनात्मक ऑपरेशन भी चलाया जाय जो उन कारणों का निदान करे जिनके कारण नक्सलवाद बढ़ रहा है। इसे अभियान 'देवदूत' का नाम दिया जाय। इस नए अभियान के अंतर्गत कई भाग हों, जिनमें एक हो लोक न्यायपीठ का गठन, जो गंभीर भूविवादों के स्थल पर जा कर दोनों पक्षों से बातचीत कर, और गांव के लोगों की गवाही लेकर, आततायी की न्याय भावना को जगाने की कोशिश करे, ताकि वह पीड़ित की जमीन स्वेच्छा से बिना न्यायालय में गए वापस कर दे। लोक न्यायपीठ में 5 सदस्य हों और उनमें कम-से-कम एक सदस्य कोई सेवानिवृत्त जज हो। मैंने मदन बाबू से मैंने इस लोक न्यायपीठ का अध्यक्ष बनने का आग्रह किया। वे सहमत हो गए। हम लोगों ने मिल-जुल कर 3 अन्य स्वच्छ छवि के सामजिक लोगों को इस न्यायपीठ में शामिल किया और एक एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज को भी। लोक न्यायपीठ के उपयोग के लिए एक वाहन भी पुलिस-लाइन में अलग रखा गया, और सार्जेंट मेजर को यह निर्देश दिया गया कि जब भी मदन बाबू मांग करें, यह वाहन उनकी टीम को उपलब्ध कराया जाय ताकि वे अविलंब विवाद स्थल पर जा कर मामले का निबटारा कर सकें। फिर पुलिस की और से उन्हें ऐसे गंभीर भूविवादों की सूचना दी जाने लगी जिनके विषय में पुसिल को ऐसी आशंका होती थी कि यहाँ खून-खराबा होने की संभावना थी।

मदन बाबू की अध्यक्षता में इस लोक न्यायपीठ ने पलामू के कई गंभीर भूविवादों का निबटारा कर पीड़ितों को उनकी जमीन वापस दिलवाई। इन मामलों में सबसे अधिक जाना जाने वाला मामला था तत्काल संसद सदस्य के परिवार द्वारा आदिवादियों की जमीन वापस कराने का मामला। आदिवासियों के पुजारी - पाहन-बैगा - की जमीन अहस्तांतरणीय हुआ करती थी, मगर एम पी महोदय के परिवार ने उच्चाधिकारियों पर दबाव डाल कर वह जमीन सरकारी तौर पर हस्तांतरित भी करा ली थी, जो नितांत गैरकानूनी था। उस जमीन को आदिवासियों को वापस कराने के लिए 3000 नक्सलियों ने धावा बोल कर चेतावनी के हैंडबिल आदि छोड़े थे। वहां बालूमाथ थाना में मदन बाबू की अध्यक्षता में लोक न्यायपीठ ने सैकड़ों ग्रामीणों के बीच विवादित भूमि पर बैठ कर पंचायती की, और एम पी साहब के परिवार ने वह भूमि आदिवासियों को वापस की, जिसके बाद वहां उस भूमि का कब्जा तत्काल उस भूमि पर आदिवासी मूल भूस्वामियों द्वारा हल चलवा कर उन्हें दे दिया गया। अख़बारों ने सुर्ख़ियों में यह समाचार हल चलाने के चित्रों के साथ छापा।

इस प्रकार अहिंसक तरीके से मदन बाबू और उनकी न्यायपीठ ने अत्यंत कष्ट कर बिलकुल अवैतनिक तौर पर अनेकों गंभीर भूविवाद निबटा कर दर्जनों खून-खरबों से जिले को बचा लिया।

पी के सिद्धार्थ
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