द मैन ईटर ऑफ़ मनातू : भाग 3
मैन-ईटर टर्न्स मैन-बेनीफैक्टर
नर-भक्षी बना नर-हितकारी
पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल
जब मउआर ने मेरे टेबुल पर अपना कागज फैलाया तो मैंने पाया कि यह गांवों का नक्शा था। मेरा आधा टेबुल उस नक़्शे से भर गया। देवव्रत जी ने भी उस नक़्शे को हैरत से देखा।
"देखिये सिद्धार्थ साहब, यह नक्शा। मेरे अधिकार में 5000 एकड़ जमीन है", कह कर मउआर ने मुझे वे गांव दिखाना शुरू किया जहाँ-जहाँ वे जमीनें थीं। फिर उन्होंने कहा, "ये पाँच हज़ार एकड़ जमीनें मैं आपको देता हूँ। आप जिसे चाहिए दे दीजिये। मुझे यकीन है, आप सही लोगों को देंगे।"
"शुक्रिया मउआर साहब। मगर यदि आपने ये जमीनें गरीबों में खुद बाँट दी होतीं तो नक्सलवादी आपके पीछे इस कदर हाथ धो कर नहीं पड़े होते", मैंने कहा।
"मुझसे मेरी सम्पति कोई जबरदस्ती बंदूक दिखा कर नहीं ले सकता। उसी की कोशिश ये करते रहे हैं", मउआर ने कहा।
मैंने मउआर साहब को चाय पिलाई और कुछ देर की चर्चा के बाद ससम्मान विदा किया। उन्हें छोड़ने बाहरी द्वार तक आया। लौट कर कलक्टर साहिबा को फोन लगाया, और उन्हें उस बात की सूचना देते हुए यह आग्रह किया कि वे जमीनों को गरीबों-भूमिहीनों में तुरंत बंटवाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें। इससे नक्सलवाद के नियंत्रण में मदद मिलेगी। मोहतरमा ने कहा कि उनके पास जमीन की शिनाख्त और माप-तौल करने वाले कर्मियों की बहुत कमी थी, और यह काम तुरंत होने की कोई गुंजाइश नहीं थी। इतनी जमीन बांटने में 5 से 10 साल लग सकते थे।
मैं निराश नहीं हुआ। मैंने स्वयंसेवी संस्थाओं की एक बड़ी गोष्ठी बुलाई और उन्हें यह दायित्व दिया कि वे भूमिहीन लाभुकों का चयन कर उन्हें इन जमीनों पर काबिज करें। स्थानीय थानेदारों को इसमें मदद करने का निर्देश दिया कि इस प्रक्रिया की निगरानी करें और सहयोग करें।
चूँकि यह सारी घटना एक पत्रकार के सामने घटित हुई इसलिए अगले दिन मउआर के इस स्वैच्छिक भूमि-दान की खबर अख़बारों में सुर्ख़ियों में आई जिसका नक्सलवादियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। बाद में जब एक बड़े नक्सलवादी नेता श्री कामेश्वर बैठा संसद सदस्य बने और 20 वर्षों बाद उनसे पलामू सर्किट हाउस में उनसे पहली बार मुलाकात हुई तो उन्होंने इस जमीन वितरण का हवाला देते हुए बताया की उस वक्त उनके नक्सली साथियों ने आकर उनके सामने बंदूकें पटक दी थीं, यह कहते हुए कि अब बन्दूक उठाने की क्या जरुरत है जब प्रशासन खुद वे ही काम करने लगा है जिसके लिए वे लड़ रहे थे। तब बैठा जी ने उन्हें यह बुद्धि दी थी कि यह चार दिनों की चांदनी है, और कुछ दिनों बाद सारा मामला यथावत हो जायेगा।
बाद में कलक्टर महोदया ने मेरी ए सी आर में यह प्रतिकूल टिपण्णी लिखी कि श्री सिद्धार्थ रेवेन्यू कानून नहीं जानते, और अपना काम छोड़ कर रेवेन्यू मममलों में अनावश्यक हस्तक्षेप करते रहते हैं, और लोगों को जमीन बांटने जैसे काम करते हैं जो उनका काम नहीं है।
लेकिन इस प्रसंग ने मेरी उस धारणा की पुष्टि की कि हर मनुष्य के भीतर गहरे कहीं अच्छाई और दिव्यता होती ही है, जिसके जग जाने पर वह दानव से देव बन सकता है। दुमका में हज़ारों सालों से अपराध को अपना पेशा बना कर रखने वाले एक क्रिमिनल ट्राइब के साथ किये गए मेरे पूर्व के प्रयोगों ने इसे पहले ही सिद्ध किया था।
पी के सिद्धार्थ
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