जलपुरुष राजेंद्र सिंह के तरुण भारत आश्रम में दो दिन : भाग 3
पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल
मैं लंच के लिए पहुंचा तो सब्जी निकाली। दूर से देखने में हरे बीन्स की सब्जी लगी। लेकिन जब नजदीक से देखा तो मोटी हरी मिर्च की सब्जी थी। मैं हैरान रह गया क्योंकि शुद्ध मिर्च की सब्जी कभी देखी-सुनी-खायी नहीं थी। मैंने आदर के साथ सब्जी को वापस उसके कंटेनर में रखा। राजस्थान की एक बड़ी विशेषता है वहां की मीठी तहजीब भरी जुबान। इतनी तीखी मिर्च खा कर इतनी मीठी जुबान! यह एक संयोग था, या कोई कार्य-कारण सम्बन्ध भी है? अगर है, तो मिर्च की सब्जी हरयाणा और बिहार के कुछ क्षेत्रों में भी खानी शुरू करनी चाहिए। फिर राजस्थान में बेरंग मरुभूमि क्षेत्र बहुत है। मगर वहां की पोशाक में अद्भुत रंग होते हैं। पहले दिन छत पर जब पहुंचा तो मुझे एकदम ललछौंह साफा (पगड़ी) पहनाया गया। मैं पहले से ही सवा छह फुट का हूँ। साफा पहन कर सात फुट का हो गया। ये तो पंजाब के लंबे-से इब्राहिम भाई थे जिन्हें एक पूरी साड़ी जैसे लंबे कपडे को एक सुदर्शन शैली के शाही साफे में तब्दील करना आता था। इस साफे के साथ मेरी जो फोटो प्रसारित हुई तो जीवन में पहली बार मुझे कॉंप्लिमेंट्स प्राप्त हुईं। जिन्हें अभी तक नहीं मिली हों, उन्हें राजस्थानी पगड़ी ट्राई करनी चाहिए। शायद सफलता मिले। महासचिव कमलेश कुमार गुप्ता को विशेष रूप से मैंने राजशथानी साफा ट्राई करने की सलाह दी है।
आश्रम के सभी कर्मचारियों-अधिकारियों को मैंने मृदुभाषी और सद्व्यवहारी पाया। आश्रम में 125 लोग ठहरे थे मगर व्यवस्थापकों में कहीं कोई तनाव या भागा-भागी नज़र नहीं आई। पर्याप्त कमरे हैं, और उचित संसाधन हैं। रमणीय वातावरण है। प्रशिक्षण या सभाओं के लिए एक हॉल भी है, मगर सभाएं सुबह तो एक लंबी-चौड़ी छत पर होती हैं, और धूप कड़ी होने पर नीचे लंबे-चौड़े बरामदे पर, जो हरे पेड़ों से घिरा हुआ है, इसलिए धूप-छांव का एक सुखद मिश्रण प्रस्तुत करता है। रात आने पर और ठंढ बढ़ने पर हॉल के भीतर सभाएं हो जाती हैं। हॉल में एक रंगमंच भी बना हुआ है, जो आश्रम की सांस्कृतिक रुझान की ओर संकेत करता है। वास्तव में पूरे कार्यक्रम की एक बहुत बड़ी विशेषता रही हर दिन दो नुक्कड़ नाटक। राजेन्द्र सिंह के साथ नजदीकी से जुड़े युवा साथी संजय के पास विलक्षण क्षमता है 10 मिनट में एक नुक्कड़ नाटक का स्क्रिप्ट लिखने की। जिस सामाजिक न्याय या पर्यावरण के मुद्दे पर राजेंद्र भाई ने कोई नाटक दिखाना चाहा, संजय ने न केवल तुरंत स्क्रिप्ट लिखा, बल्कि प्रतिभागी युवाओं और वृद्धों-वयस्कों को तुरत प्रशिक्षित कर नाटक का मंचन भी करा दिया।
राजेन्द्र भाई सुबह 6 से रात्रि 11 बजे तक लगातार कार्यक्रम संचालित करते देखे गए। देश के हर कोने से लोग आए थे, और प्रतिभागियों का स्तर अत्यंत उन्नत था। ज्यादा क्रियावादी पर्यावरण से सम्बद्ध थे, उसमे भी विशेष रूप से जल से जुड़े हुए। मगर अन्य मुद्दों से जुड़े विद्वान और प्रतिभागी भी थे। भाई चंद्रशेखर प्राण , जो पंचायती राज के विशेषज्ञ हैं, ने लगभग पांच घंटे 'तीसरी सरकार' पर भाषण दिया और प्रस्तुति की जो बहुत ही ज्ञानवर्धक थी। ऐसा उन्होंने मेरे सत्र को 'किल' करके किया, जिसका खामियाज़ा भी उन्हें दूसरे रूप में भुगतना पड़ा। महाराष्ट्र की प्रतिभा बहन ने भी कुछ घंटों के लिए शिवाजी की मराठा तलवार के साथ आकर (और चला कर) शिरकत की। पुणे से ज्ञान प्रबोधिनी की टीम भी उपस्थित थी, जिसने काफी प्रबोधित किया। इस पूरे गंभीर माहौल को बीच- बीच में सहज और सरस करने में इब्राहिम भाई की मीठी जुबान और हास्यपरक हस्तक्षेप ने सुन्दर भूमिका निभाई। पूरे कार्यक्रम का संचालित करने का दायित्व सबसे वरीय लोगों में से एक रमेश भाई को दिया गया था। उन्हें कुछ लोगों ने मेरे कान में फुसफुसा कर हिटलर का अवतार बताया। मगर यह ज्यादती थी। उनमें यह क्षमता है कि वे दिए गए समय से अधिक भाषण देने वाले को बेबाक तरीके से रोकते हैं, भले ही भाषण देने वाला बुरा मान जाए; और रमेशजी भाई चंद्रशेखर प्राण के अलावा लगभग सभी मामलों में सफल रहे। प्राण साहब उनके दशकों-पुराने मित्र रहे हैं, इसलिए उनके मामले में वे दूसरी और देखते रहे; उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की। स्पष्ट था कि रमेश भाई लोक सभा के स्पीकर पद के लिये अच्छे उम्मीदवार थे। (क्रमशः)
पी के सिद्धार्थ
14 दिसंबर, 2016
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