मेरा प्रिय छात्र अमरजीत
पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल
सुविधाविहीन बच्चों के इस सम्पूर्ण निर्माण शिविर ने मुझे यह अनुभव दिया कि एक चौथाई बच्चे बेहद मेधावी थे और एक चौथाई बेहद मंदबुद्धि। बाकी औसत बुद्धि के थे। बेहद मेधावी बच्चों में एक था अमरजीत कुमार। इस बच्चे पर शिविर शुरू होने पर मेरी पहली विशेष नज़र तब पड़ी जब मैंने दूसरे ही दिन सुबह शिविर में जाने पर यह पाया कि अमरजीत नाम का एक बच्चा अनुपस्थित था। फिर जब बच्चों के पास दिन के भोजन में शरीक होने आया तो मैंने उसे बुला कर जवाब तलब किया कि वह कहाँ गायब हो गया था। उसने तब मुझे बताया कि वह सुबह 4 बजे से 7 बजे तक अख़बार बांटता था, और अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी जुटाता था। उसके पिता भी यही काम करते थे, यानि पेपर भेंडर थे। बड़ा परिवार था, और माता-पिता के अलावा एक छोटा भाई और चार बहनें थीं। इसलिए अगर महीना भर उसने अख़बार बांटना छोड़ दिया तो घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जा सकता था। इसलिए उसने मुझसे रोज सुबह तीन से साढ़े तीन घंटे अनुपस्थित रहने की छूट मांगी।
मेरे पास उसकी पूरी जुबानी सुनने के बाद इसके सिवा कोई चारा नहीं बचा कि मैं उसे अनुमति दूँ। मगर यह मेरी कल्पना के बाहर था कि इतना छोटा बच्चा पेपर भेन्डिंग का काम कर घर का खर्च चलाने में अपने पिता की मदद करे। लेकिन सच्चाई यही थी। मुझे बाल श्रम क़ानून के सन्दर्भ में हुई न्यायमूर्ति सावंत से वार्ता याद आ गयी कि हम पश्चिमी देशों के विचारों और कानूनों की अंधाधुंध नक़ल बिना अपने देश की जमीनी सच्चाई का आकलन किये करते जा रहे हैं। न्यायमूर्ति सावंत के विचार में भारतीय बाल श्रमिक कानून भी अव्यवहारिक था, क्योंकि बहुतेरे गरीब परिवारों में 14 साल से कम के बच्चे बाल-श्रमिक बन दो शाम की रोटी जुटाने में मदद करते हैं। अमरजीत इसका एक उदहारण था। लेकिन अभी मेरे दिमाग में कानून कम और शिक्षा अधिक सक्रिय थी।
अमरजीत की विशेषता यह थी कि वह 3-4 घंटे अनुपस्थित रह कर भी सबसे आगे चल रहे बच्चों की पंक्ति में था, और अगर उसे पूरा समय बाकी बच्चों की तरह मिला होता तो वह तौसीफ से पीछे नहीं रहता।
इस बच्चे की दूसरी विशेषता यह थी कि उसे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं थी, और वह हमेशा प्रसन्नचित्त रहता था। अपनी साइकिल वह शिविर में ही रखता था, और वहीँ से जाकर अख़बार उठा कर घर-घर बाँट कर ख़ुशी-ख़ुशी शिविर में आकर पढ़ने में लग जाता था। यह उसके जीवन की परिस्थितियों के बीच एक विरल चीज़ थी।
मैंने बाद में दिल्ली में 5 राज्यों के बच्चों का जब 10 दिनों का एक सम्पूर्ण निर्माण शिविर लगाया तो अमरजीत को उसमे भी आमंत्रित किया। वहां उसे अख़बार बेचने के लिए समय बिताने की जरुरत नहीं थी, इसलिए कई राज्यों के लगभग 120 बच्चों के बीच वह प्रथम आया।
मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि शिविर के 4-5 बच्चे इतने मेधावी थे कि अगर वे किसी सुविधासंपन्न घर में पैदा हुए होते तो आई आई टी-जैसी परीक्षाएं आसानी से निकाल लेते। अथवा अगर देश की शिक्षा-व्यवस्था इस प्रकार की होती कि सारे ऐसे मेधावी बच्चों को अलग कर उनके लिए बेहतर शिक्षा की व्यवस्था कर पाती तो भी यह संभव हो पाता।
पी के सिद्धार्थ
8252667070
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