Tuesday, 27 December 2016

सुविधाविहीन बच्चों के प्रथम शिविर के अन्य संमरं (2)

सुविधाविहीन बच्चों के प्रथम सम्पूर्ण निर्माण शिविर (2006-07) के अन्य संस्मरण (2)

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

'एफिल टावर कैसे बनते' नामक बाल-गीत को बाद में मुम्बई के एक ख्यात संगीतकार ने एक धुन प्रदान की, और दिल्ली के एक स्टूडियो ने संगीत से सजाया। इस पर एक वीडियो भी बना जो इस लिंक पर यू-ट्यूब पर देखा जा सकता है :

https://www.youtube.com/watch?v=Ags7CIifI3Y

शिविर को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर रखने के लिए उपाय सोचे गए। सरकार को तो हम  छूना नहीं चाहते थे। वहाँ से कोई सहायता बिना पचास दौड़ लगाये और लिपिकों-अधिकारियों के हाथ गर्म किये  साधारणतः नहीं मिला करती। मेरे मित्र और व्यक्तिगत रूप से ईमानदार माने जाने वाले एक आई ए एस अधिकारी सुखदेव सिंह कल्याण विभाग के जब सचिव हुआ करते थे तो उनसे एक प्रोजेक्ट अनुमोदित कराने का अनुरोध किया था, लेकिन वे असफल रहे थे। असफल होने पर उन्होंने मुझे एक जुमला सुनाया था : "ऊपर मंत्री नीचे क्लर्क, होगा नहीं आपका वर्क"। वे ही सज्जन शिविर लगाते वक्त शिक्षा सचिव थे। अतः उनसे मदद मांगना व्यर्थ लगा। प्राइवेट डोनर एजेंसियां भी सरकार की तरह ब्यूरोक्रेटिक हो गई हैं, और किसी चीज के लिए अनुदान देने में न केवल बहुत समय लगाती हैं, बल्कि उनके भी स्थानीय प्रतिनिधि बिना 'कट' मिले कोई अनुदान नहीं दिलवाना चाहते। भ्रष्टाचार सिर्फ सरकार में है, यह समझना बड़ी भूल है।

अतः मैंने यह निर्णय किया कि बच्चों के अभिभावकों से यह कहा जाय कि वे अपने बच्चों के लिए एक महीने के लिए आवश्यक सूखा राशन और सूखी सब्जियां खुद ही प्रदान करें। जो नहीं प्रदान कर पाएं, वे चिंता न करें, हम अपनी और से व्यवस्था करेंगे।

उन्होंने पूछा कि कौन-कौन-सी चीज़ कितनी-कितनी मात्रा में दें। मैं खुद इस मामले में अनुभव नहीं रखता था। अतः मैंने भारी उद्योग निगम की मजदूरों की कैंटीन के मैनेजर से सहयोग माँगा। उन्होंने एक वयस्क मजदूर के भोजन के आधार पर एक चार्ट प्रस्तुत किया। लेकिन चूँकि इस शिविर में भोजन पकाने वाली टीम के सदस्यों, बच्चों से अपने अनुभव साझा करने के लिए हर दूसरे दिन आने वाले शहर के मुख्य व्यक्तियों, अतिथि शिक्षकों, कंपनी के दो-तीन प्राइवेट गार्डोंआदि को भी भोजन कराना था, इसलिए मैंने भोजन के सूखे राशन को डेढ़गुना करते हुए अभिभावकों को एक सूची उपलब्ध करवा दी।

शिविर में एक भी ऐसा बच्चा नहीं आया जिसके अभिभावक ने सूची के अनुसार सूखा राशन, आलू, न्यूट्रिनगेट की बड़ियाँ, सूखे चने और छोले मटर, बोतल में सीलबंद (खाना पकाने का) तेल आदि उपलब्ध नहीं कराया हो। गैस के सिलिंडरों की व्यवस्था आस-पास ही निवास रखने वाले सांसद श्री सुबोधकांत सहाय ने अनुरोध करने पर करा दी। मकान एच ई सी ने निःशुल्क उपलब्ध कराया। बाकी खुदरा खर्च की जिम्मेवारी मैंने खुद ली। अतः पूरी व्यवस्था से लैस हो कर हमने शिविर की शुरुआत की।

मगर हमें यह देख कर बहुत हैरानी हुई कि एक हफ्ते में सारा राशन ख़त्म हो गया। मैंने तफ्शीश की, रसोइये से पूछा। उसने बताया कि बच्चे छक कर तीनों-चारों समय खा रहे थे, और वह पूड़ियाँ छानते-छानते हैरान था। उसने यह भी बताया कि वह खाने की मात्रा पर नियंत्रण करने की सिफारिश कर चुका था, जैसे एक समय अधिकतम 10 पूड़ियाँ, मगर 'कैम्प मदर' का निर्देश था कि बच्चे ईश्वर का अवतार होते हैं इसलिए बच्चों के खाने पर कोई सीमा नहीं होगी। एच ई सी कैन्टीन के मैनेजर ने बताया कि समूह में खाने पर बच्चे दुगना खा लेते हैं। कभी-कभी तो अधिक खाने की प्रतिस्पर्धा भी हो जाती थी। अब मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं था कि मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँ कि अपने 22 अवतारों और उनके लिए शिविर में काम करने वालों के भोजन की व्यवस्था करने की कृपा करें।

उस समय छठे वेतन आयोग की अनुकम्पा प्राप्त नहीं हुई थी, और महीने की 25 ता: आते-आते हालत खास्ता हो जाती थी। फिर भी मैंने अपनी जेब से राशन और सब्जियां मंगानी शुरू कीं। आने वाले वक्ता अतिथियों में से एक सिंधी मित्र श्री भवनानी ने भी अनाज भिजवाया। ईश्वर की कृपा से काम चल गया।

मैंने यह नियम बना दिया था कि हर एक दिन के अंतराल पर अलग-अलग पृष्ठभूमि वाले विशिष्ट अतिथियों को बुलाया जायेगा जो बच्चों को अपने अनुभव बताएंगे। भारी उद्योग निगम, मेकॉन तथा सी सी एल के चेयरमैन, झारखण्ड के मुख्य हिंदी अख़बार प्रभात खबर के मुख्य संपादक हरिवंश, रांची दूरदर्शन के निदेशक, राज्य के प्रधान शिक्षा सचिव सुखदेव सिंह, झारखण्ड चेंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष अर्जुन जालान, उपाध्यक्ष अरुण बुधिया एवं सचिव प्रदीप जैन आदि उन लोगों में से थे जिन्होंने बच्चों को आकर संबोधित किया, उन्हें बड़ा बनने की प्रेरणा दी, और उनके साथ बैठ कर भोजन भी ग्रहण किया। चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने एक दिन चेंबर भवन में सभी बच्चों को बुला कर 'फाइव-स्टार' लंच भी कराया।

इन महानुभावों के साथ मिल कर, और उनसे यह सुन कर कि वे 'बड़े आदमी' कैसे बने, बच्चों के दिमाग में निश्चित रूप से नए वातायन खुले। (क्रमशः)

पी के सिद्धार्थ
8252667070
28.12.2016
www.pksiddharth.in
www.suraajdal.org
www.bharatiyachetna.org

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