सुविधाविहीन बच्चों के प्रथम सम्पूर्ण निर्माण शिविर (2006-07) के अन्य संस्मरण (1)
पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल
शिविर, जिसके दो बच्चों की चर्चा मैं कर चुका, की शुरुआत चिल्ड्रेन्स एन्थम या बाल गीत से की गयी। वह गीत कुछ इस प्रकार से था :
एफिल टावर कैसे बनते
लोहे से, इस्पात से?
नहीं-नहीं ये बनते हैं
कुछ करने के जज़्बात से।
ताजमहल कैसे बनते संग-
मरमर से पाषाण से?
नहीं-नहीं, नहीं-नहीं,
ये बनते हैं मेहनत से,
कल्पनाशक्ति-संधान से।
गोल्डन टेम्पल कैसे बनते,
सोने से, चट्टान से?
नहीं-नहीं ये बनते हैं,
भावना और बलिदान से।
सैटेलाइट कैसे बनते,
कलपुर्जों की शान से?
नहीं-नहीं ये बनते हैं,
इच्छाशक्ति और ज्ञान से।
इच्छाशक्ति, बुद्धि, कल्पना,
मेहनत और लगन ये,
धन से नहीं खरीदी जातीं,
उठती अंतर्मन से।
इन्हीं शक्तियों से देंगे हम
मोड़ समय की धारा,
जिससे बढ़ कर विश्वजयी हो,
हिंदुस्तान हमारा।
बच्चों को मैंने बताया कि प्रकृति-प्रदत्त बुद्धि या आई-क्यु चाहे जितनी भी हो, उसे बहुत अधिक बढ़ाया नहीं जा सकता। मगर भावना को बहुत बढ़ाया जा सकता है। बुद्धि और भावना को मिला कर ही जीवन में सफलता की मात्रा निर्धारित होती है। प्रकृति ने अगर आई-क्यु 100 में 10 दी है और भावना भी 100 में 10 तो कुल सफलता साधारणतः 20 ही होगी। प्रकृति-प्रदत्त आई-क्यू को 10 से बढ़ा कर 15 किया जा सकता है, मगर शायद उससे अधिक नहीं। मगर भावना को बढ़ा कर 10 दे 90 भी किया जा सकता है। तब सफलता होगी 15 (बुद्धि) plus 90 (भावना) अर्थात 105. इसलिए ऊँचा उठने की भावना विकसित करने पर ध्यान दें। खूब लगन की भावना से पढ़ें, और जादू देखें।
अगर एफिल टावर लोहे और इस्पात से बनते तो सबसे पहले कहाँ बनते, यह प्रश्न बच्चों से पूछा गया।
बच्चे चुप रहे।
मैंने कहा, भारत के झारखण्ड-ओडिसा मे, क्योंकि वैसा बढ़िया इस्पात तो यहीं पाया जाता है, फ़्रांस में नहीं। मगर यह तो एफिल नमक इंजिनियर के जज्बात थे, भावना थी कि वह दुनिया का सबसे ऊँचा टावर बना कर दिखा देगा, जिसने दुनिया का सबसे ऊँचा टावर फ़्रांस में सचमुच खड़ा कर दिया।
गोल्डन टेम्पल जब सिख्खों ने बनाना शुरू किया तो आक्रमणकारियों ने उसे 7 बार तोड़ा और हर बार सिखों का कतल किया। मगर सिक्खों ने बलिदान देकर भी हर बार एक नया बेहतर टेम्पल खड़ा किया। आज सोने से मढ़ा हुआ गोल्डन टेम्पल दुनिया के सुन्दरतम मंदिरों में एक है। यह सिख्खों की भावना और उनके बलिदान का प्रतीक है। बहुत बड़ी उपलब्धियां विरले ही बिना उत्कट भावना और बलिदान के प्राप्त होती हैं।
बच्चों को यह भी बताया गया कि भावनाएं बाजार में नहीं मिलतीं बल्कि हमारे अंतर्मन में रहती हैं। इसलिए उन सभी को सुलभ हैं।
बच्चों ने बड़े ध्यान से इन बातों को सुना और गुना! मुझे नहीं पता था कि आने वाले हफ़्तों में इन बच्चों की भावना भी प्रज्वलित हो कर एक नया रंग दिखलाने वाली थी। (क्रमशः)
पी के सिद्धार्थ
8252667070
www.pksiddharth.in
27 दिसंबर, 2016
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