Monday, 19 December 2016

शंकरन भाग 3

मेरे प्रिय आइ ए एस अधिकारी : एस आर शंकरन (भाग 3)

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

मुख्य सचिव किसी राज्य का सबसे व्यस्त अधिकारी होता है क्योंकि वह पूरे राज्य के प्रशासन का मुखिया होता है, और उसे सभी विभागों को देखना पड़ता है। कहना न होगा कि श्री शंकरन भी, स्वाभाविक रूप से, एक अत्यंत व्यस्त अधिकारी थे। लेकिन अपनी सारी व्यस्तताओं के बीच भी नए आईएएस अधिकारियों को भविष्य के लिए तैयार करना एक ऐसा विषय था जिसकी और उनका ध्यान हमेशा रहता था। वह अपने तरीके से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर उन्हें प्रशिक्षित करते रहते थे। आज के मुख्य सचिवों को न तो इसके लिए समय रहता है ना इसके लिए उनकी कोई प्रवृत्ति बनती है।

मुझे याद है कि एक बार राज्यभर के एसडीओ स्तर के अधिकारियों की एक गोष्ठी उन्होंने बुलाई थी। सुबह तड़के कैलाशहर से निकल कर साढ़े चार घंटे की यात्रा कर नए-नए एस डी ओ बने एक आई ए एस अधिकारी गोष्ठी में अगरतला साढ़े दस बजे दिन में पहुंचे। गोष्ठी से निवृत्त हो दिन का भोजन कर तुरंत  उत्तर त्रिपुरा जिले के मुख्यालय कैलाशहर की और अपनी जीप में लौट पड़े। कैलाशहर का रास्ता पहाड़ियों के बीच से घाटियों, जंगलों और घुमावदार सड़कों से होता हुआ निकलता था। जंगलों में वहां हाथी बहुत हुआ करते थे। कोई 'भला' मुख्य सचिव होता तो युवा अधिकारी को कहता कि थोडा शहर अगरतला में सिनेमा वगैरह देख कर कल सुबह चले जाना। मगर यहाँ तो मुख्य सचिव का फरमान था कि अपने कार्य क्षेत्र से मीटिंग के लिए आइए  और उलटे पांव वापस जाइये। कैलाशहर जाते हुए रास्ते में भूस्खलन के कारण एक पहाड़ ने गिरकर सड़क मार्ग अवरुद्ध कर रखा था, इसलिए एसडीओ साहब वहां से बीच में ही लौटकर अगरतला वापस आ गए। मुख्य सचिव को खबर मिलने पर वे गलत न समझ जाएं, इसलिए उन्हें फोन कर एस डी ओ साहब ने अगरतला में रात्रिविश्राम  की अनुमति मांगी। जवाब में मुख्य सचिव ने उन्हें यह कहा कि तुरंत वापस लौटें और भू-स्खलन की जगह जा कर तब तक खड़े रहें जब तक मिट्टी हटा कर सड़क खोल नहीं दी जाती।  युवा आई ए एस अधिकारी को उल्टे पांव वापस जाना पड़ा, और सड़क अवरोध के स्थल पर लगातार रात भर खड़े रहकर सम्बद्ध एजेंसियों को एकत्र कर उनके माध्यम से उन्हें सड़क का अवरोध दूर करा कर दूसरे दिन दोपहर मर आगे कैलाशहर की ओर बढ़ना पड़ा।अगर एस डी ओ साहब वहां रात भर खड़े होने का कष्ट नहीं करते, और दबाव दे कर रात भर पथ निर्माण विभाग और बोर्डर रोड संगठन आदि पर दबाव डाल कर कार्य नहीं कराते, तो सुबह तक सड़क नहीं खुल पातीं और अगले दो-तीन दिनों तक अगरतला देश से कटा रहता। लेकिन रात में पहड़ियों के बीच उस घने जंगल के मध्य में सड़क पर हाथियों का झुण्ड पहुँच जाता तो इस युवा अधिकारी की जान भी जा सकती थी। मगर शंकरन की यह सोच थी कि जान जोखिम में डालना सिर्फ सरहद पर सेना के जवानों का काम नहीं है, और आई ए एस अधिकारियों का काम सिर्फ मौज करना नहीं है। उन्हें भी लोक सेवा के लिए जोखिम उठाने के जरुरत होती है।

नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद श्री शंकरन ने आंध्रप्रदेश में सामाजिक कार्यों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे उन कुछ अधिकारियों में थे जिन्हें पीपुल्स वार ग्रुप ने बंदी बनाया था, लेकिन उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाया। सफाई कर्मचारियों के एक बड़े आंदोलन का उन्होंने नेतृत्व आंध्र प्रदेश में किया।समूचे आंध्र प्रदेश में वे सभी के द्वारा समादृत रहे। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया लेकिन यह पुरस्कार लेने से उन्होंने मना कर दिया। वे हमेशा एक निस्पृह कर्मयोगी रहे।

वे आंध्र काडर के थे और त्रिपुरा प्रतिनियुक्ति या डेपुटेशन पर आए थे। उनकी ईमानदारी की ख्याति सुनकर नृपेन चक्रवर्ती ने उन्हें त्रिपुरा में बुलाकर मुख्य सचिव बनाया था। इस प्रकार के ईमानदार और निर्भीक व्यक्ति को मुख्य सचिव बनाने का जोखिम सिवाय नृपेन दा के और कोई मुख्यमंत्री नहीं उठा सकता था। आज जब यह देश न केवल राजनेताओं बल्कि वरीय अधिकारियों के भ्रष्टाचार और कार्य संस्कृति के अभाव का पीड़ित है, शंकरन-जैसे आई ए एस अधिकारियों की कमी बहुत खटकती है। अब जब श्री शंकरन नहीं रहे, देश की ब्यूरोक्रेसी का इतिहास यह पूछता रहता है :  'कहां गए वे लोग'?

पी के सिद्धार्थ
20 दिसंबर, 2016
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