Tuesday, 13 December 2016

राजेंद्र सिंह के आश्रम में दो दिन (भाग 2)

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह के तरुण भारत संघ आश्रम में दो दिन। (भाग 2)

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

अपना भाषण समाप्त कर मैं अपनी जगह पर बैठ गया। एक अन्य भाषण शुरू हो गया जो पर्यावरण पर ही था। मगर मैं अभी भी गंगा से इंतना भावाविष्ट और अभिभूत था कि भाषण के शब्द कान में तो पड़ रहे थे, मगर सुनाई नहीं पड़ रहे थे। मुझे वह कविता याद आ रही थी जो हिमालय, गंगा और हिंदुस्तान के अविच्छेद्य सम्बन्ध पर कभी लिखी थी :

अमल हिमालय के आँगन में
गंगा के तट न्यारी,
मनुज सभ्यता की गूंजी
पहली सुन्दर किलकारी।

छंदों और ऋचाओं से
प्रतिध्वनित हुआ जग सारा,
संस्कृति गढ़ता बढ़ा वेग से
हिंदुस्तान हमारा।

मुड़ कर देखो दूर वहां उस
अद्भुत स्वर्णिल पल में,
प्रतिबिम्ब इतिहास का है
उस निर्मल गंगाजल में।

निर्मल थी वह मगर सफ़र में
मलिन हुई जल धारा,
सदियों तक परतंत्र रहा यह
हिंदुस्तान हमारा।

लालकिले पर सन् सैतालिस
में जब उठा तिरंगा,
आशाओं से भरा देश यह
द्रविड़-उल्कल-बंगा!

आशा टूटी, गिरी आस्था,
जन-जन ने स्वीकारा,
अपनों से ही छला गया यह
हिंदुस्तान हमारा!

आगे की पंक्तियाँ  याद नहीं आ रही थीं...मगर इसी बीच एक नुक्कड़ नाटक शुरू हो गया, जिसने मुझे मेरी भावाविष्टता के हिमालय की चोटी से नीचे उतारा। (क्रमशः)

पी के सिद्धार्थ
8252667070
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