विमुद्रीकरण : इरादों पर प्रश्नचिह्न; कार्यान्वयन पर कुप्रबंधन की मुहर।
पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल
राजनीतिक और राजकाज संबंधी क्रियाविधि के आर-पार देख सकने वालों की निगाह में मोदी ने प्रधान मंत्री से अधिक प्रसार मंत्री के रूप में अपनी छवि बनायीं है। वर्तमान विमुद्रीकरण और उसके कार्यान्वन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे राजकाज और प्रशासकीय दक्षता के मामले में में (विदेश भ्रमण और भाषण कला में नहीं) बहुत ही अपरिपक्व हैं। न केवल वे, बल्कि उनके साथी मंत्री भी, जो इस सन्दर्भ में जेटली हैं।
भाजपा की करोड़ों की लागत पर बनायीं गयी सोशल मिडिया की टीम लगातार मोदी के पक्ष में पोस्ट्स बना बना कर यह फ़ैलाने की कोशिश कर रही है कि मोदी का यह कदम राष्ट्रहित में है, काला धन समाप्त करने के लिए है, भ्रष्टाचार रोकने के लिए है। इसलिए आक्रोश के बिना और अपने प्रधानमंत्री के साहस पर गर्व के साथ नागरिकों को लाइन में खड़ा रह कर इस कदम का नैतिक समर्थन करना चाहिए और देश में पहली बार लिए गए इस ऐतिहासिक और साहसिक कदम की तारीफ़ करनी चाहिए। इस प्रोमोशन टीम द्वारा चलाये जा रहे कैम्पेन के भुलावे में एक बड़ी संख्या में लोग आ भी रहे हैं। लेकिन सभी नहीं। अमर्त्य सेन ने अपनी प्रतिकूल प्रतिक्रिया तो जारी भी कर दी है। मगर मोदी का खेल समझने के लिए इतना बड़ा अर्थ शास्त्री होने की जरुरत नहीं।
जब राजनेता घिर जाते हैं तो कई बार व्यक्तिगल लाभ के लिए जंग छेड़ कर जनता को अपने पीछे लाने के लिए राष्ट्र भावना की दुहाई दे कर उन्हें मुर्ख बनाते हैं, और जनता मूर्ख बनती भी है। विमुद्रिकरण के इस कुप्रबंधन को ढकने के लिए मोदी और भाजपा बार-बार राष्ट्रहित की दुहाई दे रहे हैं।
पहले विमुद्रीकरण के इरादों को लेते हैं। कथित रूप से इसका उद्देश्य है कि बाजार में जो काला धन इकट्ठा हो गया है उसका सफाया हो जाय। निश्चित रूप से 500 और 1000 के नोटों को अमान्य कर देने से काले धन का एक हिस्सा नष्ट हो जाएगा लेकिन सारा हिस्सा नहीं। जनधन के खातों में जो पैसे आने लगे हैं उसमें एक बड़ा अंश काले धन का है जो दूसरे लोगों को देकर जमा करवाया जा रहा है। फिरभी तात्कालिक रुप से काले धन के सफाई में थोड़ी सफलता निश्चित रूप से मिलेगी। लेकिन सभी समझदार लोग जानते हैं कि काला धन रखने में और उसे बंडल बनाकर राजनीतिज्ञों को और अफसरों को बड़ी रिश्वत की राशि को छोटे ब्रीफकेस में रख कर पहुंचाने में बड़े नोट रहने से बड़ी सुविधा होती है। 2000 के नोट छाप कर मोदी सरकार ने यह सुविधा और बढ़ा दी है। 500 के भी नोट वापस आ गए हैं। यह बात समझ में नहीं आती है कि अगर काला धन का संग्रह रोकने की और भ्रष्टाचार कम करने की मंशा थी तो 2000 के नोट छापने की क्या जरूरत थी, और फिर ₹500 के नोट लाने की भी क्या जरुरत थी। अधिक से अधिक ₹200 के नोट छपने थे। इसलिए इस कदम से स्थाई तौर पर काले धन का नियंत्रण नहीं होगा बल्कि काले धन का संग्रह आने वाले दिनों में और बढ़ेगा। यह बात सभी पढ़े-लिखे लोग समझ रहे हैं - सिवाय बीजेपी के सोशल मीडिया के प्रोफेशनल्स के जो वेतन लेकर विमुद्रीकरण के पक्ष में लगातार प्रचार कर रहे हैं। फिर भ्रष्टाचार रोकने के लिए दूसरे कारगर कदम क्यों नहीं उठाये जा रहे? लोकपाल को 3 वर्षों से क्यों दबा कर रखा गया है?
अब आते हैं विमुद्रीकरण लागू करने के तरीकों पर। सबसे पहला मुद्दा है शुचिता का। जिस वक्त विमुद्रीकरण की घोषणा हुई उसी वक्त समझदार लोग यह समझ गए कि भाजपा के दानदाता धनकुबेरों को यह खबर पहले से दे दी गई होगी ताकि वे अपना काला धन सफेद कर लें, और साथ ही भाजपा के बड़े नेताओं को भी इसकी इत्तला कर दी गई होगी ताकि वे भी अपना काला धन सफेद कर लें। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश चुनावों के ठीक पहले मायावती और मुलायम जैसे प्रतिद्वंदियों को उनका काला धन नष्ट कर उनकी बढ़त एक प्रकार से समाप्त करने की मंशा साफ दिखी। पहले तो यह बात एक शुद्ध अनुमान के रूप में थी लेकिन क्रमशः जो खुलासे हुए उनसे स्पष्ट हो गया किया यह महज कयास नहीं था बल्कि इसके पीछे सच्चाई थी क्योंकि इस बात के सबूत सामने आने लगे कि पूंजीपतियो और भाजपा के नेताओं को पहले से ही पता था कि ऐसा कुछ होने जा रहा था। इसलिए जब किसी क्रांतिकारी बताये जाने वाले कदम के पीछे मंशा की शुचिता पर प्रश्नचिन्ह रहता है, तब वह कदम क्रांतिकारी नहीं बन पाता, बल्कि आक्रोश, विद्रूप या नीच भाव का पात्र बन जाता है, और नेता की विश्वसनीयता पर और भी बड़े प्रश्न चिह्न खड़े कर देता है।
मैंने पाकिस्तान की सीमा पर हुए तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक पर कुछ दिन पूर्व टिपण्णी की थी कि वह एक मामूली ऑपरेशन था, और उसे सर्जिकल स्ट्राइक कहना बड़बोलापन था। मैंने यह भी कहा था कि लादेन के खात्मे जैसे वास्तविक सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाने और लागू करने का साहस और दक्षता आज के भारतीय नेताओं में नहीं। मोदी ने काले धन के विरुद्ध किये गए अपने नए 'सर्जिकल स्ट्राइक' से यह सिद्ध कर दिया है। बिना प्रचुर छोटे नोट छापे और उन्हें बैंकों को और बाज़ार को अच्छी मात्रा में उपलब्ध कराये 1000 और 500 के पुराने नॉट बंद कर देना, और 2000 के नए नोट छाप देना एक अद्भुत रूप से अदूरदर्शी कदम है। इसके लिए रिज़र्व बैंक के के गवर्नर को इस्तीफा देना चाहिए, और जेटली को भी, अगर वे स्वयं इस पूरी क्रियाविधि के जनक हैं, या यदि मोदी का यह आदेश था और अगर उन्होंने इस कदम का आतंरिक विरोध दर्ज नहीं किया। यह वित्त मंत्री के रूप में उनकी जिम्मेवारी थी।
अगर वित्त नंत्री और रिज़र्व बैंक के गवर्नर पर दबाव डाल कर यह कदम स्वयं प्रधान मंत्री ने जल्दबाजी में उठाया तो स्वयं प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए। लेकिन जिम्मेवारी तय होनी चाहिए। वे दस्तावेज या उनके सम्बद्ध अंश सार्वजनिक किये जाने चाहिए जो यह स्पष्ट करें कि देश के आम नागरिकों को दिन दिन भर लाइन में खड़े रखने और देश भर में अरफा-तरफी मचा देने का जिम्मेवार कौन है।
पी के सिद्धार्थ
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