भारत की संप्रभुता की सुरक्षा में मीडिया की भूमिका (भाग 3)
*चीन प्रसंग*
पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल
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संप्रभुता के कई पहलू होते हैं। इनमें एक है भू-क्षेत्रीय संप्रभुता या टेरिटोरियल सौवेरेंटि। भारत की भू-क्षेत्रीय संप्रभुता पर सबसे बड़ा खतरा चीन की ओर से है, क्योंकि ताकतवर होने के नाते वह अपने इरादों को अंजाम भी दे सकता है, जो कि पाकिस्तान सामान्यतः नहीं कर सकता।
जैसा कि मैंने प्रथम भाग में कहा था, पाकिस्तान और भारत की तरह चीन का भी एक राष्ट्रीय चरित्र है। यह चरित्र भारत से कई मामलों में बहुत ही भिन्न है। आप इसे सिर्फ एक उदहारण से समझें। अभी जब चीनी राष्ट्रपति को नरेंद्र मोदी गुजरात में नदी किनारे झूले पर बिठा कर 'अतिथि देवो भव' के प्राचीन जीवन मूल्य के अनुकूल आतिथ्य परोस रहे थे, ठीक उसी वक्त चीनी सेना भारत के भीतर दूर तक घुस आई। इसे अंग्रेजी में 'रिबफ' कहते हैं। भारत में चूँकि ऐसा करने की कोई परंपरा नहीं रही, इसलिए 'रिबफ' के लिए कोई संस्कृत या हिंदी या गुजरती शब्द ढूंढना कठिन होगा। जाहिर है कि यह चीनी राष्ट्रपति की पूर्वानुमति के बिना तो नहीं हो सकता था। यह चीनी और भारतीय सभ्यताओं के बीच ही नहीं, चीनी और भारतीय कूटनीति के बीच का अंतर भी उजागर करता है। पूर्व में भी जब कभी भारतीय विदेश मंत्री या प्रधानमंत्री चीन गए तो सामान्यतः उसने कोई ऐसी भद्दी सांकेतिक हरकत जरूर की।
चीन में, तिब्बत के परे, बुद्ध का प्रभाव अधिक नहीं हो पाया, और कंफ्यूशियनिज़म या ताओइज़्म भी वहाँ की लोक-संस्कृति पर अधिक विस्तृत प्रभाव नहीं डाल पाये, और इन सबों के वहां की लोक संस्कृति के मिश्रण से जो सभ्यता उत्पन्न हुई वह भारत की सभ्यता के मूल्यों से काफी भिन्न रही। बहुत दिनों से वहां अनीश्वरवादी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है जो अपने सदस्यों को किसी धर्म की सदस्यता से रोकती है, और धर्मों को दबाने का पूरा प्रयास करती है।
चीनी हिंसात्मकता की स्थिति यह है कि पूरे विश्व में थियोक्रेटक या मुल्लावादी इस्लामी राष्ट्र ईरान के बाद चीन में ही सबसे अधिक मृत्युदंड दिए जाते हैं, औसतन लगभग 5000 प्रति वर्ष। सभ्य राष्ट्रों में इसी को बर्बरता कहते हैं। मगर चीन की बर्बरता विकास के एक पूर्वनिर्धारित लक्ष्य को समर्पित है जो, पाकिस्तान से भिन्न, इसे थोड़ी आदराणीयता प्रदान करता है। चीन विकास की एक विशेष आइडियोलॉजी से प्रेरित देश है जो आज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन कर अमेरिका को पीछे छोड़ने में लगा हुआ है, पांचवा सबसे समर्थ नाभिकीय शक्ति-युक्त देश है, और विकास के एक निश्चित दृढ़संकल्पित मकसद से प्रेरित देश है, जो भारत और पाकिस्तान से इसे अलग करता है।
लेकिन इस देश का दिमाग एक अलग सांचे में ढला है। इसकी भू-क्षेत्रीय साम्राज्यवादी प्रवृत्तियाँ बहुत मजबूत हैं, और यह पाकिस्तान की तरह अव्यवस्थित और भावनात्मक या मजहबी उफान में काम करने वाला देश नहीं है। 1962 का इसका भारत पर आक्रमण आकस्मिक नहीं था, बल्कि एक दशक पूर्व से ही योजित था, और लंबी तैयारी के बाद किया गया आक्रमण था, ऐसे प्रमाण काफी सालों पहले अंतर्राष्ट्रीय मिडिया ने उपलब्ध कराये थे। अर्थात युद्ध के बहुत पहले के 'हिंदी चीनी भाई भाई' के नारे एक सुनियोजित रणनीति के अधीन भोले-भाले भारतीय लोगों को और अधिक भोला बनाने, और राम को न मानने वाले तत्कालीन 'राम-भरोसे' भारतीय राजनेताओं को भी और अधिक 'राम-भरोसे' बना कर देश को सामरिक रूप से तैयार न होने देने के लिए गढ़े गए थे। नेहरू ने इसी कारण भारत को सामरिक तैयारी की दृष्टि से बहुत कमजोर रखा, जिसके कारण चीन को 1962 के युद्ध में 'केक-वॉक' मिल गया।
चीन के भू-क्षेत्रीय सीमा-विवाद रूस, जापान और भारत के अलावा कई छोटे राष्ट्रों से भी हैं। 1969 में रूस से इसका 7 महीने लंबा अघोषित युद्ध इसी सीमा-विवाद के कारण चला। साऊथ चाइना सी में फिलिपिन्स से इसके विवाद में 'यू एन कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ़ द सी' ने 2016 में ही चीन के विरुद्ध निर्णय दिया मगर चीन उसे नहीं मानता। 1950 में तिब्बत पर आक्रमण कर इसने उसे पूरा हथिया लिया था। वीरान सोनकाकू द्वीप पर जापान 1895 से काबिज है, मगर जैसे ही वहां तेल के भंडार का पता चला, चीन ने इतिहास की नयी खुदाई कर उस पर काबिज होने की कवायद शुरू कर दी। 1914 में ब्रिटेन, भारत और तिब्बत के बीच शिमला कन्वेंशन के तहत मैकमहोन रेखा के दक्षिण अरुणांचल (तब नेफा) को भारत का हिस्सा माना गया था, लेकिन चीन पूरे अरुणांचल को अपना ही हिस्सा मानता है। पिछले युद्ध में चीन ने भारत के तत्कालीन नेफा के एक बड़े हिस्से को अपने में मिला लिया।
ताज्जुब नहीं कि 1962 के युद्ध की तरह अरुणांचल और भारत के कुछ और हिस्सों को पूरी तरह अपने कब्जे में करने के लिए वह काफी पहले से सुनियोजित तैयारी कर रहा हो, और मौका रच कर भारत पर चढ़ाई कर दे।
कहीं वही मौका तैयार करने के लिए वह पाकिस्तान को तो युद्ध के लिए नहीं प्रेरित कर रहा, यह सोचने की चीज़ है। पाकिस्तान कई बार भारत पर आक्रमण कर चुका है और हर बार शिकस्त भी खा चुका है। फिर भी आज सीमा पर गांवों में भारी गोलाबारी कर उसने युद्ध के पूरे संकेत देने शुरू कर दिए हैं, और भारत को युध्द के लिए बाध्य करने की कोशिश कर रहा है। लगता है वह चीन के मोहरे के रूप में काम कर रहा है। यानि पाकिस्तान से युध्द जब शुरू हो जाये, और भारतीय सेना उस फ्रंट पर बंट जाए, तो इधर से चीन भी भारत पर आक्रमण कर आसानी से अरुणांचल और अन्य दावे वाले इलाकों, जैसे अक्साई चीन, पर पूरी तरह काबिज हो जाये।
इसलिए चीन, जो भारत की भू-क्षेत्रात्मक संप्रभुता को पहले भी नुकसान पहुंचा चुका है, एक बार फिर इसपर खतरा बन कर मंडरा रहा है। इस खतरे से निबटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय जनमत और दबाव बनाने में मीडिया की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
ध्यान रहे कि चीन के चरित्र में अंतर्राष्ट्रीय लोकमत का अधिक आदर करने के गुण पहले भी नहीं देखे गए, और अब भी नहीं पाये जाते। फिर भी आज कोई भी समाज अंतर्राष्ट्रीय लोकमत की शत-प्रतिशत अनदेखी नहीं कर सकता, क्योंकि उसके आर्थिक परिणाम भी हो सकते हैं, और अर्थ तो कम्युनिज़्म के हिसाब से जीवन का आधारभूत तत्व है। लेकिन उसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्रकारिता लगेगी जो वैश्विक स्तर पर चीन के विरुद्ध जनमत बना सके। इसके लिए अमेरिका और यूरोप के पत्रकार विशेष काम आ सकते हैं जो अपनी 'इन्वेस्टिगेटिव' जर्नलिज़्म के मार्फ़त सी आई ए या ऐसे ही अन्य श्रोतों के माध्यम से चीन के षड्यंत्र का कच्चा चिठ्ठा बाहर कर उसे प्रकाशित कर सकें, जैसे 1962 के युद्ध का कच्चा चिठ्ठा (बाद में) प्रकाशित किया था। इसके अलावा अगर देश की मीडिया अभी से पाकिस्तान की वर्तमान युद्धपरस्ती के पीछे चीनी आक्रमण के संभावित षड्यंत्र के मुद्दे को प्रभावी तरीके से मिल कर उछालती है, और ये समाचार अंतराष्ट्रीय सर्कुलेशन में भी आ जाते हैं, तो चीन आक्रमण करने में थोड़ा ठिठक कर मौके को टाल सकता है। अगर भारत पर वह फिर भी आक्रमण करता है तो सोशल मिडिया की धिक्कार उसके खिलाफ दुनिया भर में आर्थिक नाकेबंदी यानि जनता द्वारा चीनी सामानों के बहिष्कार का कारण बन सकती है।
लेकिन इस मामले में कैसे एक जुट हो कर काम किया जाय कि भारत की भू-क्षेत्रीय संप्रभुता चीन के अतिक्रमण से सुरक्षित रहे, यह तो सुधी पत्रकार स्वयं ही बैठ कर निर्णय कर सकते हैं।
पी के सिद्धार्थ
4 नवम्बर, 2016
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