सांप्रदायिकता : भाग - 3
सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र
पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष्, भारतीय सुराज दल
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हमने एक प्रश्न उठाया कि क्या एक राष्ट्र भी सांप्रदायिक हो सकता है। फिर हमने पाँच लक्षण सामने रखे जिनके आधार पर यह निर्णय किया जा सकता है कि कोई राष्ट्र कितना सांप्रदायिक है, अथवा धर्मनिरपेक्ष है। सांप्रदायिक नहीं अर्थात सेक्युलर है; सेक्युलर नहीं अर्थात सांप्रदायिक है। लेकिन एक बात ध्यान में रहे : दुनिया में शतप्रतिशत शुद्धता के साथ चीज़ें कम ही मिलती हैं। घोर रात्रि में भी कुछ प्रकाशित जगहें मिल ही जाती हैं और मध्य दिवस में भी अँधेरी गुफाएं पायी जा सकती हैं। ऐसे में 'प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति' के आधार पर नामकरण किया जाता है। अतः शतप्रतिशत सेक्युलर या शतप्रतिशत सांप्रदायिक या धर्मनिरपेक्ष मॉडल कम ही मिलेंगे।
अब आइये, कुछ देशों को चुन-चुन कर देखते हैं। पहले ब्रिटेन को लेते हैं। ब्रिटेन में ईसाई धर्म राष्ट्र धर्म है, लेकिन दूसरे धर्मों को भी यह देश 'टॉलरेट' करता है, यानि बर्दाश्त करता है। यही नहीं, ब्रिटेन का ईशनिंदा कानून सिर्फ बाइबिल और ईसामसीह के अपमान को दंडनीय मानता रहा है; मोहम्मद या राम का अपमान दंडनीय नहीं रहा। ऐसी हालत में ब्रिटेन को कोई सांप्रदायिक राष्ट्र घोषित कर दे तो ताज्जुब नहीं। लेकिन राष्ट्र सिर्फ संविधान और सरकार नहीं होता। राष्ट्र में उसका पूरा समाज भी होता है। ब्रिटेन का समाज सेक्युलर है, ईसाई धर्म के प्रति अधिक अनुराग रखते हुए भी दूसरे धर्मों के लोगों से वहां के लोग नफरत नहीं करते, प्रताड़ित नहीं करते, उनसे असभ्य व्यवहार नहीं करते। अतः ब्रिटेन को मोटे तौर पर एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र, न कि एक सांप्रदायिक राष्ट्र, की कोटि में ही रखना वाजिब होगा। ब्रिटेन ने 2008 में अपना पुराना ईशनिंदा कानून निरस्त कर दिया, मगर ईसाई धर्म का राष्ट्रधर्म का दर्जा नहीं हटाया। इसलिए आधुनिक अर्थों में उसे शतप्रतिशत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं माना जा सकता।
अमेरिका (यू एस ए) के भी छह राज्यों में अभी तक ईशनिंदा कानून जीवित है जिसमें सिर्फ बाइबिल और ईसा का अपमान ही दंडनीय है, अन्य धर्मों की किताबों और संस्थापकों या पवित्र व्यक्तियों का नहीं। इसलिए यह यू एस ए को पूर्ण धर्मनिरपेक्ष होने से वंचित करता है। ऑस्ट्रेलिया की ससद का हर सत्र ईसाई धर्म की प्रार्थना से शुरू होता है।
आइये पाकिस्तान को देखते हैं। पाकिस्तान की दंडसंहिता की धारा 295 ए में ही ईशनिंदा पर दंड का प्रावधान है। लेकिन सिर्फ कुरान और पैगम्बर मुहम्मद का अपमान दंडनीय है, ईसा या राम का नहीं। इस अपमान के लिए मृत्युदंड तक का प्रावधान है । फिर इस्लाम धर्म पाकिस्तान का राजधर्म है। वहां विभाजन के समय 10 प्रतिशत से अधिक हिन्दू थे, आज डेढ़ प्रतिशत के करीब बचे हैं। पाकिस्तान ने कानून बना कर शांतिप्रिय अहमदी मुसलमानों को मस्जिद बनाने के अधिकार से वंचित कर दिया है, और उनके मस्जिद बुलडोजर से गिरा दिया करता है। यानि न केवल गैर-मुसलमान बल्कि इस्लाम के गैर-सुन्नी सम्प्रदायों की भी जान सांसत में रहती है। अतः पाकिस्तान एक नितांत सांप्रदायिक राष्ट्र है, नॉन सेक्युलर देश है। फिरभी पाकिस्तान को शत प्रतिशत सांप्रदायिक कहना वाजिब नहीं होगा, क्योंकि वहां मंदिर और चर्च बनाने या रखने पर औपचारिक पाबन्दी नहीं, और दूसरे धर्म के लीग भी वोट दे सकते हैं, सरकारी अधिकारी भी बन सकते हैं।
दुनिया में 48 राष्ट्र ऐसे हैं जहाँ 50 प्रतिशत से अधिक मुसलमान आबादी है। उनमें से 24 राष्ट्रों का राजधर्म या 'प्रथम धर्म' इस्लाम है। व्यवहार में वहां के समाज में भी अल्पसंख्यकों के प्रति अनुदार व्यवहार है। ये राष्ट्र सेक्युलर देश नहीं हैं। इनमें साम्प्रदायिकता के अंतिम छोर पर माल्डीव-जैसे राष्ट्र हैं जिनका न केवल राजधर्म इस्लाम है, बल्कि वहां दूसरे धर्म के लोग न तो नागरिक बन सकते हैं, न वोट दे सकते हैं, न कोई सरकारी पद प्राप्त कर सकते हैं, न सार्वजनिक तौर पर आराधना या पूजा-पाठ कर सकते हैं। यह सब कानून से निषिद्ध है और दंडनीय है। व्यक्तिगत रूप से आप घर में आराधना कर लें मगर मुसलमानों को उसमे आमंत्रित नहीं कर सकते।
तुर्की एक ऐसा मुस्लिम-बहुल राष्ट्र है, जहाँ मुस्तफा कमाल पाशा के समय से ही इस्लाम संविधान में घोषित राजधर्म नहीं है। मगर इसके बावजूद, सभी सुन्नी मस्जिदें सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं। दूसरे मस्जिद अपने भरोसे हैं। सुन्नी इमाम सरकार द्वारा वेतन पाते हैं, मगर शिया या अन्य इमाम या पुजारी नहीं। सभी मुसलमान बच्चों को स्कूलों में सुन्नी इस्लाम की शिक्षा दिया जाना अनिवार्य है। अतः व्यवहार में यह एक सांप्रदायिक राष्ट्र ही हो गया।
कई मुस्लिम राष्ट्रों में एयरपोर्ट पर ही जीसस और मेरी की मूर्ति या कृष्ण की मूर्ति आदि रखवा ली जाती जाती है, और उन्हें आप लेकर देश में प्रवेश नहीं कर सकते। कुछ देशों में हिन्दू अपने मृतकों के शरीर को जला नहीं सकते, उन्हें या तो दफ़नाना पड़ेगा या किसी दूसरे देश में ले जाकर जलाना पड़ता है। लेकिन सभी इस्लामिक देशों में ऐसी पाबन्दी नहीं है।
ईसाई-बहुल यूरोपीय देशों में चर्च- टैक्स की एक परंपरा देखी जाती है जो सरकार ईसाई धर्मस्थानों की मदद करने के लिए लेती है, मगर जहाँ तक मेरी नजर गयी है, ईसाई से इतर धर्मों के लोगों से यह टैक्स नहीं लिया जाता। कुछ इस्लामिक देशों में दूसरे धर्मों के अवलम्बियों से जजिया टैक्स लेने की परंपरा हुआ करती थी, जो साम्प्रदायिकता की हद थी, मगर मेरी जानकारी में यह टैक्स दुनिया में अब कहीं पाया नहीं जाता।
साम्प्रदायिकता या धर्मनिरपेक्षता की दृष्टि से भारत और माल्डीव जैसे राष्ट्र दो अलग-अलग छोरों पर पड़ते हैं। भारत में बहुसंख्यकों का धर्म राष्ट्रधर्म के रूप में संविधान में मान्यता प्राप्त नहीं है। कई राज्यों में मस्जिदों और चर्चों को बिजली के बिल में आधी छूट है, मगर हिन्दू मंदिरों को पूरा शुल्क देना होता है। कुछ राज्यों में ऐसे मदरसों, जहाँ वास्तव में सिर्फ दीं की ही पढाई होती है, के हफीजों को सरकार वेतन भी देती है। अल्पसंख्यक धर्म अपने शिक्षा-संस्थानों को अपने तरीके से चला सकते हैं मगर हिन्दू सम्प्रदाय ऐसा नहीं कर सकते। यहाँ अल्पसंख्यकों की जनसंख्या का अनुपात लगातार बढ़ता गया है। इसलिए आधिकारिक स्तर पर भारत न केवल एक असाम्प्रदायिक राष्ट्र है, बल्कि अल्पसंख्यक धर्मों को आगे बढ़ कर अतिरिक्त तवज्जो देने वाला देश है।
जहाँ तक भारतीय समाज की बात है, वह अपनी धार्मिक उदारता के लिए सहस्राब्दियों से जाना जाता रहा है। जब अरब लोगों ने ईरान पर आक्रमण कर उसपर कब्ज़ा कर लिया तब वहां धर्मान्तरण और पारसी धर्म के लोगों को प्रताड़ित करने की मुहीम शुरू की गयी। तब पारसी धर्म को मानने वाले या तो मारे गए या उन्होंने धर्मान्तरण स्वीकार कर लिया या फारस छोड़ कर भाग गए। जो भागे उनमे से अधिकांश भारत ही आये। टाटा का परिवार उन्हें में से एक था, जो आज भारत की अस्मिता का अंग है। अब ईरान में वहां का मूल फारसी धर्म या जरथुष्ट्र धर्म लुप्तप्राय हो गया है, मगर भारत में निर्विघ्न फलता-फूलता रहा है। ईरान में ही जब एक नए शांतिप्रिय धर्म बहाई धर्म का उदय हुआ तो उन्हें भी प्रताड़ित करना शुरू हुआ, और उन्हें भी वहां से भागना पड़ा। भाग कर अधिकांश बहाई भारत ही आये। दिल्ली के ह्रदय में उन्हें जमीन का एक बहुत बड़ा हिस्सा दिया गया जिसपर उनका प्रसिद्ध लोटस टेम्पल है। आज बहाई निश्चिन्त हो कर भारत में फल- फूल रहे हैं। इधर एक संगठन-विशेष और उसके राजनितिक दल के अनुयायियों द्वारा अयोध्या में बाबरी मस्जिद को जब ध्वस्त किया गया तो भारत की असाम्प्रदायिक छवि को ठोस पहुंची। मगर वह भारतीय समाज का सामान्य चरित्र प्रस्तुत नहीं करता, एक संगठन-विशेष या एक दल-विशेष की सांप्रदायिक छवि प्रस्तुत करता है। भारत अभी भी धर्म- निरपेक्षता के मानदंडों पर दुनिया में सर्वाधिक ऊँचा स्थान पाने वाला देश है।
पी के सिद्धार्थ
8252667070
9 नवम्बर, 2016
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