Sunday, 6 November 2016

भारत की संप्रभुता की सुरक्षा में मिडिया की भूमिका (भाग 4)

भारत की संप्रभुता की सुरक्षा में मीडिया की भूमिका (भाग 4)

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल
www.suraajdal.org
www.bharatiyachetna.org
www.pksiddharth.in

संप्रभुता की अवधारणा का जब विश्लेषण करते हैं, तो सहज ही यह प्रश्न उठता है, सम्प्रभु कौन? - विधायिका, कार्यपालिका या न्यायपालिका? उत्तर मिलता है, इनमें से कोई नहीं : सम्प्रभु तो वास्तव में देश की जनता होती है।

लेकिन भारत में यह जनता कौन? वे एक प्रतिशत लोग जो सुइसे ग्लोबल वेल्थ डेटाबुक के अनुसार भारत की 55 प्रतिशत सम्पदा का स्वामित्व रखते हैं? या बाकी 99 प्रतिशत? वे 32.7 प्रतिशत लोग क्या हैं जो 1.9 डॉलर की अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा के नीचे रहते हुए दो शाम की रोटी के लिए तरसते हैं? वे अपने को प्रभु कहें या दास - सम्-प्रभु या सम्-दास? ध्यान रहे, ये गरीब नहीं अतिगरीब लोग हैं जो दो शाम के रोटी के लिए भी आश्वस्त नहीं रहते,  चॉकलेट और आइस क्रीम, अच्छे कपड़े या बिना छेद की छत वाला मकान तो छोड़ दीजिये! ऐसे लोगों को प्रभु या सम्प्रभु कहना उनका मखौल उड़ाना होगा - किसी राजनितिक चिंतक की कल्पना में वे प्रभु हो सकते हैं, मगर वास्विकता में नहीं। और ये ही नहीं, भारत के 70 प्रतिशत लोग ऐसी हालत में रहते हैं कि उन्हें सम्प्रभु कहना उन्हें शर्मिंदा करना होगा। वैसे ही, जैसे पत्रकारिता के क्षेत्र में कोई सम्प्रभु है तो वह है अख़बार का मालिक पूंजीपति। पत्रकार तो बस उसका दास है। उसे प्रभु कहेंगे तो वह आप पर हंसेगा। पत्रकार को जब चाहे मॉयल निकाल दे। पहले अखबार के संपादक अपने अख़बार पर मालिक के साथ पचास से नब्बे प्रतिशत संप्रभुता साझा करते थे, अब उन्हें भी मालिक ने अपना दास बना लिया है। अब संपादक को वही लिखना है जो मालिक का निर्देश है। कई पत्रों में मालिक स्वयं संपादक बन गए हैं। उनमे कुछ अंग्रेजी के राष्ट्रीय अख़बार भी हैं। संपादकों की वैचारिक सम्प्रभुता, उनकी संपादकीय स्वतंत्रता खत्म हो गयी है।  अब सम्प्रभु कोई वास्तव में है तो वे हैं शीर्ष के एक प्रतिशत लोग जो देश की 55 प्रतिशत सम्पदा के स्वामी हैं। ये उद्योगपति हैं, नेता हैं, और अफसरशाह हैं। ये जैसा चाहते हैं वैसा कानून बनाते हैं, या बनवाते हैं, नीतियां बनाते हैं या बनवाते हैं, और देश की 99 प्रतिशत जनता को अपना दास बना कर रखते हैं।

देश की 99 प्रतिशत जनता की संप्रभुता को नष्ट करने वाले ये लोग आज भारत की संप्रभुता के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। इनसे देश की सुरक्षा करने में देश की मिडिया की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है। मगर उसके लिए मीडिया के स्वामित्व का स्थापत्य बदलना होगा। रामनाथ गोयनका जैसे धनाढ्यों को इसके लिए सामने आना होगा जो अख़बार का शुद्ध व्यापार के लिए इस्तेमाल नहीं करें। इसके लिए मिडिया के स्वतंत्रचेता पत्रकारों को सामने आकर वित्तीय संस्थानों की मदद से स्वतंत्र मिडिया घरानों की रचना करनी होगी। इसके लिए सरकार पर दबाव बना कर ऐसे स्वायत्त मिडिया संस्थानों के लिए आधारभूत संरचना की व्यवस्था बनाने वाले कानून पास कराने होंगे जिससे स्वतंत्र मिडीया की अवधारणा जमीन पर आकार ले सके। जैसे सेना देश की भू-क्षेत्रीय संप्रभुता की सुरक्षा  के लिए जरुरी है, वैसे ही पूंजीपतियों और सरकार से स्वतंत्र प्रेस और मिडिया देश की  बहुसंख्यक जनता की संप्रभुता को अर्थ प्रदान करने और वास्तविकता का जामा पहनाने के लिए जरुरी है।

पी के सिद्धार्थ
8252667070

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