अप्लायड स्पिरिचुऐलिटी या अध्यात्म-व्यवहार-में
पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल
'स्पिरिचुऐलिटी इन ऐक्शन' या 'अध्यात्म-व्यवहार-में' एक गंभीर विचार है। इस अवधारणा को समझना हमारे अपने जीवन और जगत को बदलने में बहुत सहायक हो सकता है। मगर इस अवधारणा को समझने के लिए पहले यह समझना होगा कि 'अध्यात्म' शब्द का क्या अर्थ होता है, और 'आध्यात्मिकता' से क्या अभिप्राय है। इसके बाद ही आध्यात्मिकता को व्यवहार में लागू करने का सवाल उठेगा।
'अध्यात्म' शब्द 'अधि' और 'आत्म' - इन दो शब्दों से बना है। इसी प्रकार 'स्पिरिचुऐलिटी' शब्द 'स्पिरिट' शब्द से बना है जिसका भी अर्थ आत्मा ही होता है। अतः आध्यात्मिकता का सबंध अपनी आत्मा को जगाने और परमात्मा से जुड़ने से है।
आध्यात्मिक साधना का अर्थ पारंपरिक तौर पर किसी गुफा में या एकांत में, दुनिया से कट कर, ईश्वर या आत्मतत्व का ध्यान करने से लिया जाता रहा है। विवेकानंद ने जब रामकृष्ण मिशन की स्थापना जगत की सेवा के लिए करनी चाही तो रामकृष्ण परामहंस के अन्य शिष्यों ने, जो उनके गुरुभाई थे, उनसे यही कहा था कि वे तो आध्यात्मिक लोग थे, और उनका काम ईश्वर का नाम जपना था, न कि स्कूल और हस्पताल खोलना और जागतिक सेवा का कार्य करना। उन्होंने यह भी कहा की उनके गुरु श्री रामकृष्ण ने तो कभी उन्हें ऐसा करने को नहीं कहा। तब उन्हें अध्यात्म का रहस्य समझाने के लिए विवेकानंद ने यह याद दिलाया था कि ग्रुरुजी हमेशा कहते थे कि शिव का अर्थ सेवा है, लोगों का कल्याण है। बस, इसी सिद्धांत को एक मूर्त रूप देने के लिए, 'अप्लाई' करने के लिए, वे रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर रहे थे। अतः विवेकानंद ने जो किया, वह 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' थी, 'व्यवहार-में-अध्यात्म' था।
राम एक परम आध्यात्मिक पुरुष थे। मगर यदि आप उनके जीवन को देखेंगे तो किशोरावस्था से ही उनका जीवन लोक-कल्याण के लिए पूरी तरह समर्पित रहा। उन्होंने कहा : 'परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई', अर्थात दूसरों के हित के सामान धर्म नहीं, और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से अधिक बड़ी कोई अधमता नहीं। उनके द्वारा साधु जनों और सज्जनों की रक्षा धनुष-वाण के प्रयोग से किया जाना 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' थी, 'व्यवहार-में-अध्यात्म' था। राम-राज्य 'व्यवहार-में-अध्यात्म' था आध्यात्मिकता के शीर्ष बिंदु पर खड़े श्रीकृष्ण कभी राजनीति और युद्ध से नहीं भागे। यह 'व्यवहार-में-अध्यात्म' था। इन्हीं श्रीकृष्ण की गीता का अध्यात्म का मर्म समझने के लिए सभी पंथों और सम्प्रदायों के आध्यात्मिक साधकों की मुख्य मार्गदर्शिका के रूप में आदर किया जाता रहा है। इन साधकों में वे 'सांख्य योगी' भी हैं जो संसार से संन्यास लेकर एकांत साधना करते हैं। इन्हीं में बनारस के लाहिड़ी महाशय भी थे जो नित्य गीता-असेम्बली किया करते थे। ऐसे संन्यासियों-योगियों के लिए भी श्रीकृष्ण गीता में सांख्ययोग के ही सन्दर्भ में यह सन्देश देना नहीं भूले कि 'ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूत हिते रताः', यानि 'वे मुझे ही प्राप्त करते हैं जो सभी जीवों के हित के लिए कार्य करते हैं।'
कहने की जरूरत नहीं कि गांधीजी मुख्य रूप से एक राजनीतिक-सामाजिक व्यक्ति नहीं थे बल्कि एक आध्यात्मिक पुरुष थे, जिनके जीवन का उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना ही था। लेकिन ईश्वरप्राप्ति के लिए उन्होंने सेवा और राजनीति का मार्ग चुना। एक ओर निरंतर मन-ही-मन राम नाम का जाप, ध्यान, यम-नियम की साधना, गीता और रामचरित मानस का अध्ययन-अनुशीलन, और दूसरी और कोढ़ियों की सेवा, सूत कात कर मैनचेस्टर की कपड़ा मिलों पर प्रहार, और सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य के साथ संघर्ष! यह थी 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' या 'व्यवहार-में-अध्यात्म'।
मदर टेरेसा ने दीन-दुखियों के लिए, गरीब-अनाथ बच्चों की सेवा के लिए जीवन समर्पित किया, यह 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' हुई। श्री श्री रवि शंकर कोलंबिया के दुर्द्धर्ष गृह युद्ध में शांति लाने के लिए मध्यस्थता कर रहे हैं, यह 'व्यवहार-में-अध्यात्म' हुआ। स्वामी अग्निवेश बंधुआ मजदूरों की मुक्ति के लिए लड़ते रहे हैं, यह भी 'व्यवहार-में-अध्यात्म' माना जायेगा।
भारत ने विश्व को एक अनूठा सिद्धान्त दिया, अद्वैत का सिद्धांत। 'सभी जीवों में एक ही परमात्मा आत्मा के रूप में विद्यमान है', यह उसी अद्वैत-सिद्धांत का अंश है। हम अलग-अलग लोग हैं, यह सच्चाई नहीं, मिथ्या आभास है। अगर ऐसा है, तो हम हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, काले-गोरे-भूरे, शिया-सुन्नी-अहमदिया, प्रोटेस्टेंट-कैथोलिक, हिंदुस्तान-पाकिस्तान-चीन जैसे अलगाववादी सिद्धांतों के आधार पर कैसे एक दूसरे को क्षति पहुंचा सकते हैं? भारतीय आध्यात्मिकता का एकमात्र निहितार्थ 'वसुधैव कुटुम्बकम्' ही हो सकता है, जिसकी ऊँचे स्वर में घोषणा उपनिषदों ने की। इसलिए हम सभी कृत्रिम विभाजन-रेखाओं को मिटा कर मानव-मात्र की भलाई के लिए कार्य करें, यही 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' है, 'व्यवहार-में-अध्यात्म' है। अपने जीवन को जीव-मात्र की सेवा और कल्याण में लगा दें, यही 'व्यवहार-में-अध्यात्म' है।
इसीलिए भारतीय सुराज दल ने गरीबी-निवारण को अपना सर्वोच्च कार्यक्रम बनाया है। इसकी कोशिश सत्ता में आने के बाद नहीं, अभी से शुरू हो जाय, यह नीति अपनाई है। यह 'व्यवहार-में-अध्यात्म' के विचार से ही प्रेरित सिद्धांत है। भारतीय चेतना केंद्र द्वारा गीता-धाम, इस्लामिक स्पिरिचुऐलिटी सेंटर, क्रिस्चियन स्पिरचुऐलिटी सेंटर और बुद्धिस्ट स्पिरिचुऐलिटी सेंटर बनाने का विचार 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' की भावना से ही प्रेरित है, चूँकि इन केंद्रों पर व्यक्तिगत आध्यात्मिक साधना के साथ-साथ अनिवार्य रूप से गरीबी निवारण, सम्पूर्ण शिक्षा, और स्वास्थ्य के कार्यक्रम लागू होंगे। विवेकानंद ने सही कहा था : एक भूखे मनुष्य से ईश्वर और अध्यात्म की बात करना उसका मजाक उड़ाना है। इसलिए आइये, हम 'विचार-में-अध्यात्म' से आगे बढ़ कर 'व्यवहार-में-अध्यात्म' की ओर बढ़ें! आज देश के पुनर्निर्माण के लिए, गरीबी हटाने और भ्रष्टाचार मिटाने के लिए राजनीति में आना 'व्यवहार-में-अध्यात्म' होगा।
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