Wednesday, 9 November 2016

साम्प्रदायिकता : भाग 4

साम्प्रदायिकता : भाग 4
व्यक्तियों और संगठनों की साम्प्रदायिकता मापने के पैमाने।

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

इधर हाल के वर्षों में दो चीज़ें घटित हुई हैं, जो पहले नहीं थीं। एक तो यह कि सामने वाले के बारे में अगर पता चलता है कि वह मुसलमान है तो एकदम से कान खड़क जाते हैं, मानों कोई वास्तविक या 'पोटेंशियल' आतंकवादी खड़ा हो। यह इसलिए क्योंकि भारत में और दुनिया के अनेक देशों में होने वाले लगभग हर अतंकवादी नरसंहार के पीछे मुसलमानों का हाथ मिला है, या स्वयं मुस्लिम आतंकी संगठनों ने इसकी जिम्मेवारी कबूली है। हालाँकि उन आतंकवादी घटनाओं में हिंदुस्तानी मुसलमानों की शिरकत विरले ही निकली है, फिर भी हिंदुस्तान में किसी मुसलमान के संपर्क में आने पर कान क्यों खड़क जाते हैं? इसे ही 'स्टिरियोटापिंग' कहते हैं। हमारे अवचेतन मन ने लगातार होने वाली आतंकी घटनाओं के आधार पर दिमाग में मुसलमान की एक स्टिरियोटाइप छवि खड़ी कर ली है, जो गलत है। दुनिया भर में मजहबी और आतंकवादी नरसंहारों  में जरूर ज्यदातर मुसलमान पाये जाते रहे हैं, मगर वे कुल कितने होंगे? इस्लामिक स्टेट की सेना इधर हाल में खड़ी नहीं हुई होती यो मेरे ख्याल में लाख भी नहीं, कुछ हज़ार में संख्या होती सक्रिय मुस्लिम आतंकवादियों की, जबकि दुनिया में डेढ़ सौ करोड़ के करीब मुसलमान हैं। इन मुठ्ठी भर आतंकी मुसलमानों के कारण हर मुसलमान को देख कर कान खड़े कर लेना क्या वाज़िब है, यह एक प्रश्न है!

दूसरी अनोखी चीज़ यह हुई है कि जबसे भाजपा नेताओं के नेतृत्व में अयोध्या में बाबरी मस्जिद को राम मंदिर के नाम पर ध्वस्त किया गया है, तब से अगर किसी हिन्दू ने राम का नाम ले लिया, या गीता-रामायण की बात कर दी, तो उसे  न केवल ईसाइयों और मुसलमानों बल्कि पढ़े-लिखे हिंदुओं द्वारा भी ऐसी नजर से देखा जाने लगता है मानो वह एक सांप्रदायिक व्यक्ति हो, या 'भाजपाइट' हो। यह भी उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण है जितना हर मुसलमान  को आतंकी समझना। इसलिए इसकी जरुरत है कि हम उन मानकों की चर्चा करें जिनके आधार पर यह निर्णय किया जाय कि कोई व्यक्ति या संगठन सांप्रदायिक माना जाय या नहीं, और माना जाय तो कितना।

ज्यादातर व्यक्ति, कम-से-कम भारत में, किसी-न-किसी धर्म का अनुयायी होता है। क्या उसके द्वारा गीता या रामायण पढ़ा जाना, उस पर लिखना, या उस पर भाषण देना, या उनके जीवन मूल्यों को अपनाने के लिए लोगों को, विशेष कर हिंदुओं को, प्रोत्साहित करना, इस बात का सबूत हो सकता है कि वह एक 'सांप्रदायिक' व्यक्ति है? यही बात एक ईसाई द्वारा बाइबिल और एक मुसलमान द्वारा कुरान पढ़ने, उसपर लिखने, और उनपर बोलने पर भी लागू होती है।

मेरे विचार से एक धार्मिक व्यक्ति होना, अपने धर्म के अराधनालयों में जाना, या अपने धर्म की पुस्तकों पर लिखना-पढ़ना-बोलना अनिवार्य रूप से सांप्रदायिक होने का लक्षण नहीं हो सकता। गांधी ये कार्य लगातार करते थे, अपने को 'प्राउड' हिन्दू कहते थे, मगर मुसलमानों और ईसाइयों के लिए उनके-जैसा कौन खड़ा रहा? वे कतई सांप्रदायिक नहीं थे।

लेकिन अगर कोई व्यक्ति या संगठन अपने धर्म के प्रति वफादार होने के अतिरिक्त दूसरे धर्मों के विरुद्ध नफरत पैदा करता है, या उनके धर्मवलम्बियों के विरुद्ध नफरत पैदा कर उनके विरुद्ध हिंसा उकसाता है तो वह व्यक्ति या संगठन सांप्रदायिक ही माना जायेगा । ध्यान रहे कि किसी दूसरे धर्म की कुरीतियों को दूर करने के लिए अगर उन कुरीतियों का निस्संगता के साथ एक रचनात्मक भावना से विश्लेषण किया जाता है, तो यह सांप्रदायिक भावना का प्रमाण नहीं होगा, बशर्ते वह व्यक्ति अपने धर्म या मजहब की कुरीतियों का विश्लेषण भी उसी निस्संगता के साथ करता हो।

किसी व्यक्ति या संगठन के धर्मनिरपेक्ष होने, और सांप्रदायिक नहीं होने, का एक बड़ा प्रमाण यह है कि वह यह मानता हो कि देश चलाने में किसी धर्मविशेष की किताब और नियमों को आधार न बनाया जाय, और सरकार धर्मों के बीच भेद-भाव न बरते। वह व्यक्ति या संगठन अगर मुस्लिम है, और भारत में धर्म- निरपेक्षता का समर्थन करता है तथा साम्प्रदायिकता का विरोध करता है, और हिन्दू-राष्ट्र की मांग का विरोधी है, तो जिन मुस्लिम-बहुल देशों में इस्लाम को राष्ट्रधर्म बनाया गया है या बनाया जा रहा है उनका इस बिंदु पर विरोध करने में पीछे न हटे। जहाँ हम बहुमत में हैं वहां हमें इस्लामिक राष्ट्र चाहिए और जहाँ हम कम संख्या में हैं, वहां हमें एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र चाहिए और अल्पसंख्यक के रूप में विशेष सुविधाएं चाहिए, यह तो धर्म-निरपेक्षता नहीं, चतुराई हुई। इस भेद को गंभीरता से समझने की जरुरत है।
यह बात ईसाइयों और बौद्धों पर लागू नहीं होगी क्योंकि दुनिया में कहीं ईसाई राष्ट्र या बौद्ध राष्ट्र बनाने की कोई प्रवृत्ति परिलक्षित नहीं होती।

पी के सिद्धार्थ
8252667070
10 नवम्बर, 2016

No comments:

Post a Comment