Monday, 21 November 2016

रामजी बाबू बहेल्पा आश्रम में : भाग 2

डॉ रामजी सिंह के बहेल्पा आश्रम में बिताये गए क्षणों के संस्मरण : भाग 2

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

दिन भर के कार्यक्रम के बाद रात्रि विश्राम के लिए रामजी बाबू को मेरे ही लकड़ी-और-बांस के कॉटेज में एक बिस्तर प्रदान किया गया। कमरे में स्वामी अग्निवेश भी आ गए और डेढ़-दो बजे रात तक शास्त्रार्थ चलता रहा। स्वामी जी के जाने के बाद दो-ढाई बजे हम लोग सोए।

उस रात स्वामी जी से कुछ सैद्धांतिक बिंदुओं पर गंभीर द्वन्द युद्ध हुआ। युद्ध के बाद मुझे गंभीर और संतुष्ट नींद आती है, जबकि दूसरा पक्ष अक्सर सो नहीं पाता। इसलिए मैं गंभीर नींद सोया। मगर घंटे-डेढ़ घंटे के अंदर ही नींद टूट भी गयी क्योंकि कुछ धब-धब की आवाज़ें कमरे में आ रही थीं। मैंने रात्रि के धूमिल प्रकाश में देखा कि रामजी बाबू अपने दोनों पैरों से साढ़े तीन बने सुबह हवा में तेजी से सायकिल चला रहे थे। जाहिर है कि वे नींद में नहीं बल्कि जाग्रत अवस्था में ही व्यायाम के लिए साईकिल चलाने जैसी कवायद कर रहे होंगे। लेकिन उतनी तेज साईकिल मैं तो नहीं चला सकता। बीच-बीच में उनके पांव बिस्तर पर भी आघात कर देते थे जिससे धब-धब की आवाज़ भी उत्पन्न हो रही थी, जिसने मेरी नींद तोड़ दी थी।

कोई चारा न देख कर मैं उठा, कई दिनों से नींद पूरी नहीं करने देने के लिए ईश्वर को भला-बुरा कहा, और बेसिन में हाँथ-मुह धो कर बत्ती जलायी और रामजी बाबू के पास पहुंचा जो अब तक अपना व्यायाम पूरा कर चुके थे। मैंने कुर्सी खींची और उनके निकट बैठ गया।

मैंने कहा, बाबा अब जरा वेदों और उपनिषदों पर चर्चा करते हैं। उपनिषद  का अर्थ होता है 'निकट बैठना', सो आज निकट बैठ कर सीखता हूँ। रामजी बाबू से फिर व्यापक ज्ञानात्मक चर्चाएं हुईं।

सुबह जब लोग-बाग़ जगे तो  थोड़ी हंसी-मजाक भी हुई। तब मैं भी खड़ा था और वे भी खड़े थे। कमलेश और शायद  मनोहर मानव भी उपस्थित थे। उसी वक्त रामजी बाबू ने मुझे मजाक में हलके से एक हाथ से 'पुश' किया। इस पुश से जीवन में पहली बार मेरा शारीरिक संतुलन बिगड़ गया और संभालने की कोशिश करते-करते मैं धराशायी हो गया। लेकिन ईश्वर की कृपा से नीचे डनलप के गद्दे बिछे थे जिन्होंने मेरी रक्षा की। मैं जानता हूँ कि पाठक इसे अतिशयोक्ति या मिथ्या आरोप के रूप में ले सकते हैं, क्योंकि मिथ्या आरोप लगाने के लिए राजनीतिज्ञ आज भारत में सर्वत्र जाने जाते हैं। मगर वहां कई विश्वसनीय गवाह भी थे। मामले को न्यायलय में ले जाने से भी कोई लाभ नहीं क्योंकि कोई न्यायाधीश यह नहीं मानेगा कि महज 40 किलो वजन वाले एक 94 वर्ष के गांधीवादी अहिंसक व्यक्ति के पुश से एक 92 किलो का सुदृढ़ और हिंसक व्यक्ति व्यक्ति धराशायी हो सकता है। गवाह पेश करने से भी लाभ नहीं क्योँकि मिथ्या गवाह पेश करने के लिए और गवाहों को प्रभावित करने के लिए भारतीय पुलिस कुख्यात है।

अतः मुझे सभी पक्षों पर विचार करने के बाद यही बेहतर विकल्प लगा कि बाबा से यह रहस्य पता करूँ कि आखिर वे क्या खाते-पीते हैं, कैसे रहते हैं, और मैं भी 94 साल तक क्रियाशीलता और वाक् युद्ध के साथ साथ मल्ल युद्ध की अपनी क्षमता बनाये रखूं। (क्रमशः)

पी के सिद्धार्थ
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