Thursday, 3 November 2016

मोदी सरकार की ताज़ा झलक

मोदी सरकार की कुछ ताज़ा झलकियाँ

पी के सिद्धार्थ
www.suraajdal.org
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केंद्र सरकार के कार्यों का जायका लेने  आज कुछ पुराने परिचित आई ए एस अधिकारियों  के पास सेन्ट्रल सेक्रेटेरियट में पहुंचता हूँ। उनमें से एक आइ ए एस अधिकारी से संवाद का एक अंश उद्धृत करता हूँ। इससे केंद्र सरकार की हालत की एक झलक मिलेगी, और एक बार फिर यह पाठकों को स्पष्ट होगा कि एक सुविचारित रोड मैप जब किसी पार्टी के पास नहीं होता, और मंत्रियों के पास प्रशासनिक दक्षता या कर्तव्यनिष्ठा नहीं होती, तो शासन और सरकार का क्या हाल होता है।

मैं : सरकार कैसी चल रही है?

अधिकारी : वैसी ही, जैसी पहले चलती थी।

मैं थोड़े आश्चर्य की मुद्रा में उन्हें देखता हूँ।

अधिकारी  (मुस्कुरा कर) : जैसा आप टी वी पर देखते हैं, वैसा कुछ भी वास्तव में नहीं हो रहा।

मैं : कोई नयी नीतियां दृष्टिगोचर नहीं हो रहीं जो जल्द ही या भविष्य में किसी परिवर्तन को आकार दे पाएं।

अधिकारी : कुछ भी नहीं। ज्यादातर पुरानी चीजों को ही नए नाम से मार्किट करते रहने की परंपरा है।

मैं : लेन-देन?

अधिकारी : मोदी जी ईमानदार हैं।

मैं : मनमोहन भी ईमानदार थे, मगर सारी बेईमानी उनकी नाक के नीचे बड़े स्तर पर हो रही थी। उनकी जानकारी में हो रही थी।

अधिकारी : (मुस्कुरा कर) अभी भी चल ही रहा है, मगर जरा दब दब के। एक आदमी का थोडा भय तो रहता है।

मैं : मंत्री जी क्या कभी अपने अधीनस्थ कार्यालयों में जाते हैं, यह पता करने कि वे कार्यालय ठीक से काम क्यों नहीं कर पा रहे? उनकी क्या दिक्कते हैं? उनकी क्या मदद करें? मैं कभी बी पी आर डी में था। कोई मंत्री कभी उस कार्यालय में नहीं आया वहां बैठ कर अधिकारीयों से पता करने कि कार्यालय का आउट पुट क्या है, क्या कार्य संस्कृति है, आदि। मेरे समय इंद्रजीत गुप्ता होम मिनिस्टर थे। कुछ भी नया सोच या कर नहीं पाये। कभी अधीनस्थ कार्यालयों में सीधे जा कर पूछ ताछ तक नहीं की। सारा कुछ पूर्ववत ही चलता रहा। उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी का कोई प्रभाव नहीं दिखा। कोई नए विचार नहीं थे, कोई प्रशासनिक दक्षता नहीं दिखी।

अधिकारी : भला मंत्री भी कभी ये सब काम करता है? राजनीतिज्ञों को देशसेवा के भाव से तो कभी काम करते देखा नहीं। सभी राजनीति में ही लगे रहते हैं।

मैं : नयी आइडियाज़ निकलने के लिए कुछ हो रहा? कोई विशेष उद्यम?

अधिकारी : प्रधान मंत्री ने वरीय अधिकारियों के कई ग्रुप्स बना रखे हैं। मगर एक भी नया आइडिया मुझे तो निकलता नहीं दीखता। अलबत्ता कॉमन मैन से पूछा जाय तो कुछ नयी आइडियाज़ मिलें।

मैं वहां से निकल कर सेन्ट्रल सेक्रेटेरियट में एक अन्य मंत्रालय में  मंत्री के पी एस के कक्ष में जाता हूँ। एक छोटा अंश उद्धृत है:

मैं : आपके मंत्री जी को कुछ नया और बेहतर करने की उत्सुकता है? सबसे बेहतर मंत्रियों में माने जाते हैं। टी वी डिबेट्स में देखता आया हूँ। अच्छी बहस करते हैं।

पी एस : (थोडा चुप रह कर) उत्सुकता तो है, मगर समय कहाँ है। कोई भी नयी चीज़ करने के लिए, बदलाव लाने के लिए, कॉन्सेंट्रेट करना होता है, समय देना होता है। मगर समय कहाँ है? रोज या तो कांस्टिचुएंसी में या दिल्ली में या और कहीं कोई न कोई कार्यक्रम रहते हैं। आज भी देखिये, अभी दिन में कांस्टिचुएंसी से लौटे हैं, फिर एक बड़े  कार्यक्रम में जाना है, फिर ये लोग भी यहाँ बैठे हुए है कार्यक्रम लेने के लिए। आखिर वे क्या करें। लगातार काम करते रहते हैं, व्यस्त रहते हैं।

इन सारी परिस्थितियों को वर्षों देखने समझने के बाद सुराज दल ने कुछ राजनितिक और प्रशासनिक सुधारों के लिए उपाय विक्सित किये हैं। इनमें एक है अत्यंत उच्चस्तरीय पॉलिटिकल स्टैंडर्ड्स कमीशन की स्थापना, जो राजनीतिज्ञों और राजनीति के लिए मानक विक्सित करे। यह भी कि एक मंत्री को महीने में औसतन कितने घंटे कार्यालय में बैठना ही होगा और कितने घंटों से अधिक वह कांस्टिचुएंसी एवं अन्य डेकोरेटिव फंक्शन्स में शरीक नहीं हो सकेगा।

अन्य बहुत से समाधान निकाले हैं दल ने जिन पर क्रमशः चर्चा होती रहेगी। भाजपा और मोदी की वही समस्या है जो कांग्रेस की थी : किसी भी डोमेन के लिए कोई पूर्व विचारित कार्य योजना नहीं, व्यवस्था परिवर्तन का कोई सुविचारित रोड मैप नहीं जिसका जिक्र मैंने गोविंदाचार्य जी से अपनी 1974 की पहली मुलाकात के प्रसंग में किया था।

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