Monday, 28 November 2016

विमुद्रीकरण : इरादों पर प्रश्न चिह्न; कार्यान्वन पर कुप्रबंधन की मुहर।

विमुद्रीकरण : इरादों पर प्रश्नचिह्न; कार्यान्वयन पर कुप्रबंधन की मुहर।

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

राजनीतिक और राजकाज संबंधी क्रियाविधि के आर-पार देख सकने वालों की निगाह में मोदी ने प्रधान मंत्री से अधिक प्रसार मंत्री के रूप में अपनी छवि बनायीं है। वर्तमान विमुद्रीकरण और उसके कार्यान्वन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे राजकाज और प्रशासकीय दक्षता के मामले में में (विदेश भ्रमण और भाषण कला में नहीं) बहुत ही अपरिपक्व हैं। न केवल वे, बल्कि उनके साथी मंत्री भी, जो इस सन्दर्भ में जेटली हैं।

भाजपा की करोड़ों की लागत पर बनायीं गयी सोशल मिडिया की टीम लगातार मोदी के पक्ष में पोस्ट्स बना बना कर यह फ़ैलाने की कोशिश कर रही है कि मोदी का यह कदम राष्ट्रहित में है, काला धन समाप्त करने के लिए है, भ्रष्टाचार रोकने के लिए है। इसलिए आक्रोश के बिना और अपने प्रधानमंत्री के साहस पर गर्व के साथ नागरिकों को लाइन में खड़ा रह कर इस कदम का नैतिक समर्थन करना चाहिए और देश में पहली बार लिए गए इस ऐतिहासिक और साहसिक कदम की तारीफ़ करनी चाहिए। इस  प्रोमोशन टीम द्वारा चलाये जा रहे कैम्पेन के भुलावे में एक बड़ी संख्या में लोग आ भी रहे हैं। लेकिन सभी नहीं। अमर्त्य सेन ने अपनी प्रतिकूल प्रतिक्रिया तो जारी भी कर दी है। मगर मोदी का खेल समझने के लिए इतना बड़ा अर्थ शास्त्री होने की जरुरत नहीं।

जब राजनेता घिर जाते हैं तो कई बार व्यक्तिगल लाभ के लिए जंग छेड़ कर जनता को अपने पीछे  लाने के लिए राष्ट्र भावना की दुहाई दे कर उन्हें मुर्ख बनाते हैं, और जनता मूर्ख बनती भी है। विमुद्रिकरण के इस कुप्रबंधन को ढकने के लिए मोदी और भाजपा बार-बार राष्ट्रहित की दुहाई दे रहे हैं।

पहले विमुद्रीकरण के इरादों को लेते हैं। कथित रूप से इसका उद्देश्य है कि बाजार में जो काला धन इकट्ठा हो गया है उसका सफाया हो जाय। निश्चित रूप से 500 और 1000 के नोटों को अमान्य कर देने से काले धन का एक हिस्सा नष्ट हो जाएगा लेकिन सारा हिस्सा नहीं। जनधन के खातों में जो पैसे आने लगे हैं उसमें एक बड़ा अंश काले धन का है जो दूसरे लोगों को देकर जमा करवाया जा रहा है। फिरभी तात्कालिक रुप से काले धन के सफाई में थोड़ी सफलता निश्चित रूप से मिलेगी। लेकिन सभी समझदार लोग जानते हैं कि काला धन रखने में और उसे बंडल बनाकर राजनीतिज्ञों को और अफसरों को बड़ी रिश्वत की राशि को छोटे ब्रीफकेस में  रख कर पहुंचाने में बड़े नोट रहने से बड़ी सुविधा होती है। 2000 के नोट छाप कर मोदी सरकार ने यह सुविधा और बढ़ा दी है। 500 के भी नोट वापस आ गए हैं। यह बात समझ में नहीं आती है कि अगर काला धन का संग्रह रोकने की और भ्रष्टाचार कम करने की मंशा थी तो 2000 के नोट छापने की क्या जरूरत थी, और फिर ₹500 के नोट लाने की भी क्या जरुरत थी। अधिक से अधिक ₹200 के नोट छपने थे। इसलिए इस कदम से स्थाई तौर पर काले धन का नियंत्रण नहीं होगा बल्कि काले धन का संग्रह आने वाले दिनों में और  बढ़ेगा। यह बात सभी पढ़े-लिखे लोग समझ रहे हैं - सिवाय बीजेपी के सोशल मीडिया के प्रोफेशनल्स के जो वेतन लेकर विमुद्रीकरण के पक्ष में लगातार प्रचार कर रहे हैं। फिर भ्रष्टाचार रोकने के लिए दूसरे कारगर कदम क्यों नहीं उठाये जा रहे? लोकपाल को 3 वर्षों से क्यों दबा कर रखा गया है?

अब आते हैं विमुद्रीकरण लागू करने के तरीकों पर। सबसे पहला मुद्दा है शुचिता का। जिस वक्त विमुद्रीकरण की घोषणा हुई उसी वक्त समझदार लोग यह समझ गए कि भाजपा के दानदाता धनकुबेरों को यह खबर पहले से दे दी गई होगी ताकि वे अपना काला धन सफेद कर लें, और साथ ही भाजपा के बड़े नेताओं को भी इसकी इत्तला कर दी गई होगी ताकि वे भी अपना काला धन सफेद कर लें। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश चुनावों के ठीक पहले मायावती और मुलायम जैसे प्रतिद्वंदियों को उनका काला धन नष्ट कर उनकी बढ़त एक प्रकार से समाप्त करने की मंशा साफ दिखी।  पहले तो यह बात एक शुद्ध अनुमान के रूप में थी लेकिन क्रमशः जो खुलासे हुए उनसे स्पष्ट हो गया किया यह  महज कयास नहीं था बल्कि इसके पीछे सच्चाई थी क्योंकि इस बात के सबूत सामने आने लगे कि पूंजीपतियो और भाजपा के नेताओं को पहले से ही पता था कि ऐसा कुछ होने जा रहा था।  इसलिए जब किसी क्रांतिकारी बताये जाने वाले कदम के पीछे मंशा की शुचिता पर प्रश्नचिन्ह रहता है, तब वह कदम क्रांतिकारी नहीं बन पाता, बल्कि आक्रोश, विद्रूप या नीच भाव का पात्र बन जाता है, और नेता की विश्वसनीयता पर और भी बड़े प्रश्न चिह्न खड़े कर देता है।

मैंने पाकिस्तान की सीमा पर हुए तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक पर कुछ दिन पूर्व टिपण्णी की थी कि वह एक मामूली ऑपरेशन था, और उसे सर्जिकल स्ट्राइक कहना बड़बोलापन था। मैंने यह भी कहा था कि लादेन के खात्मे जैसे वास्तविक सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाने और लागू करने का साहस और दक्षता आज के भारतीय नेताओं में नहीं। मोदी ने काले धन के विरुद्ध किये गए अपने नए 'सर्जिकल स्ट्राइक' से यह सिद्ध कर दिया है। बिना प्रचुर छोटे नोट छापे और उन्हें बैंकों को और बाज़ार को अच्छी मात्रा में उपलब्ध कराये 1000 और 500 के पुराने नॉट बंद कर देना, और 2000 के नए नोट छाप देना एक अद्भुत रूप से अदूरदर्शी कदम है। इसके लिए रिज़र्व बैंक के के गवर्नर को इस्तीफा देना चाहिए, और जेटली को भी, अगर वे स्वयं इस पूरी क्रियाविधि के जनक हैं, या यदि मोदी का यह आदेश था और अगर उन्होंने इस कदम का आतंरिक विरोध दर्ज नहीं किया। यह वित्त मंत्री के रूप में उनकी जिम्मेवारी थी।

अगर वित्त नंत्री और रिज़र्व बैंक के गवर्नर पर दबाव डाल कर यह कदम स्वयं प्रधान मंत्री ने जल्दबाजी में उठाया तो स्वयं प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए। लेकिन जिम्मेवारी तय होनी चाहिए। वे दस्तावेज या उनके सम्बद्ध अंश सार्वजनिक किये जाने चाहिए जो यह स्पष्ट करें कि देश के आम नागरिकों को दिन दिन भर लाइन में खड़े रखने और देश भर में अरफा-तरफी मचा देने का जिम्मेवार कौन है।

पी के सिद्धार्थ
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At Leadership Development conclave Agnivesh speaks

https://youtu.be/hlejiTDLbiI

At Political Leadership Development Conclave. Vasudhaiv Kutumbkam or One World Family has to be there in our feelings and not only in our speech..._

Wednesday, 23 November 2016

Applied Spirituality या 'व्यव्हार-में-अध्यात्म'

अप्लायड स्पिरिचुऐलिटी या अध्यात्म-व्यवहार-में

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

'स्पिरिचुऐलिटी इन ऐक्शन' या 'अध्यात्म-व्यवहार-में' एक गंभीर विचार है। इस अवधारणा को समझना हमारे अपने जीवन और जगत को बदलने में बहुत सहायक हो सकता है। मगर इस अवधारणा को समझने के लिए पहले यह समझना होगा कि 'अध्यात्म' शब्द का क्या अर्थ होता है, और 'आध्यात्मिकता' से क्या अभिप्राय है। इसके बाद ही आध्यात्मिकता को व्यवहार में लागू करने का सवाल उठेगा।

'अध्यात्म' शब्द 'अधि' और 'आत्म' - इन दो शब्दों से बना है। इसी प्रकार 'स्पिरिचुऐलिटी' शब्द 'स्पिरिट' शब्द से बना है जिसका भी अर्थ आत्मा ही होता है। अतः आध्यात्मिकता का सबंध अपनी आत्मा को जगाने और परमात्मा से जुड़ने से है।

आध्यात्मिक साधना का अर्थ पारंपरिक तौर पर किसी गुफा में या एकांत में, दुनिया से कट कर, ईश्वर या आत्मतत्व का ध्यान करने से लिया जाता रहा है। विवेकानंद ने जब रामकृष्ण मिशन की स्थापना जगत की सेवा के लिए करनी चाही तो रामकृष्ण परामहंस के अन्य शिष्यों ने, जो उनके गुरुभाई थे, उनसे यही कहा था कि वे तो आध्यात्मिक लोग थे, और उनका काम ईश्वर का नाम जपना था, न कि स्कूल और हस्पताल खोलना और जागतिक सेवा का कार्य करना। उन्होंने यह भी कहा की उनके गुरु श्री रामकृष्ण ने तो कभी उन्हें ऐसा करने को नहीं कहा। तब उन्हें अध्यात्म का रहस्य समझाने के लिए विवेकानंद ने यह याद दिलाया था कि ग्रुरुजी हमेशा कहते थे कि शिव का अर्थ सेवा है, लोगों का कल्याण है। बस, इसी सिद्धांत को एक मूर्त रूप देने के लिए, 'अप्लाई' करने के लिए, वे रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर रहे थे। अतः विवेकानंद ने जो किया, वह 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' थी, 'व्यवहार-में-अध्यात्म' था।

राम एक परम आध्यात्मिक पुरुष थे। मगर यदि आप उनके जीवन को देखेंगे तो किशोरावस्था से ही उनका जीवन लोक-कल्याण के लिए पूरी तरह समर्पित रहा। उन्होंने कहा : 'परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई', अर्थात दूसरों के हित के सामान धर्म नहीं, और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से अधिक बड़ी कोई अधमता नहीं। उनके द्वारा साधु जनों और सज्जनों  की रक्षा धनुष-वाण के प्रयोग से किया जाना 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' थी, 'व्यवहार-में-अध्यात्म' था। राम-राज्य 'व्यवहार-में-अध्यात्म' था आध्यात्मिकता के शीर्ष बिंदु पर खड़े श्रीकृष्ण कभी राजनीति और युद्ध से नहीं भागे। यह 'व्यवहार-में-अध्यात्म' था। इन्हीं श्रीकृष्ण की गीता का अध्यात्म का मर्म समझने के लिए सभी पंथों और सम्प्रदायों के आध्यात्मिक साधकों की मुख्य मार्गदर्शिका के रूप में आदर किया जाता रहा है। इन साधकों में वे 'सांख्य योगी' भी हैं जो संसार से संन्यास लेकर एकांत साधना करते हैं। इन्हीं में बनारस के लाहिड़ी महाशय भी थे जो नित्य गीता-असेम्बली किया करते थे। ऐसे संन्यासियों-योगियों के लिए भी श्रीकृष्ण गीता में  सांख्ययोग के ही सन्दर्भ में यह सन्देश देना नहीं भूले कि 'ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूत हिते रताः', यानि 'वे मुझे ही प्राप्त करते हैं जो सभी जीवों के हित के लिए कार्य करते हैं।'

कहने की जरूरत नहीं कि गांधीजी मुख्य रूप से एक राजनीतिक-सामाजिक व्यक्ति नहीं थे बल्कि एक आध्यात्मिक पुरुष थे, जिनके जीवन का उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना ही था। लेकिन ईश्वरप्राप्ति के लिए उन्होंने सेवा और राजनीति का मार्ग चुना। एक ओर निरंतर मन-ही-मन राम नाम का जाप, ध्यान, यम-नियम की साधना, गीता और रामचरित मानस का अध्ययन-अनुशीलन, और दूसरी और कोढ़ियों की सेवा, सूत कात कर मैनचेस्टर की कपड़ा मिलों पर प्रहार, और सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य के साथ संघर्ष! यह थी 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' या 'व्यवहार-में-अध्यात्म'।

मदर टेरेसा ने दीन-दुखियों के लिए, गरीब-अनाथ बच्चों की सेवा के लिए जीवन समर्पित किया, यह 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' हुई। श्री श्री रवि शंकर कोलंबिया के दुर्द्धर्ष गृह युद्ध में शांति लाने के लिए मध्यस्थता कर रहे हैं, यह 'व्यवहार-में-अध्यात्म' हुआ। स्वामी अग्निवेश बंधुआ मजदूरों की मुक्ति के लिए लड़ते रहे हैं, यह भी 'व्यवहार-में-अध्यात्म' माना जायेगा।

भारत ने विश्व को एक अनूठा सिद्धान्त दिया, अद्वैत का सिद्धांत। 'सभी जीवों में एक ही परमात्मा आत्मा के रूप में विद्यमान है', यह उसी अद्वैत-सिद्धांत का अंश है। हम अलग-अलग लोग हैं, यह सच्चाई नहीं, मिथ्या आभास है। अगर ऐसा है, तो हम हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, काले-गोरे-भूरे, शिया-सुन्नी-अहमदिया, प्रोटेस्टेंट-कैथोलिक, हिंदुस्तान-पाकिस्तान-चीन जैसे अलगाववादी सिद्धांतों के आधार पर कैसे एक दूसरे को क्षति पहुंचा सकते हैं? भारतीय आध्यात्मिकता का एकमात्र निहितार्थ 'वसुधैव कुटुम्बकम्' ही हो सकता है, जिसकी ऊँचे स्वर में घोषणा उपनिषदों ने की। इसलिए हम सभी कृत्रिम विभाजन-रेखाओं को मिटा कर मानव-मात्र की भलाई के लिए कार्य करें, यही 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' है, 'व्यवहार-में-अध्यात्म' है। अपने जीवन को जीव-मात्र की सेवा और कल्याण में लगा दें, यही 'व्यवहार-में-अध्यात्म' है।

इसीलिए भारतीय सुराज दल ने गरीबी-निवारण को अपना सर्वोच्च कार्यक्रम बनाया है। इसकी कोशिश सत्ता में आने के बाद नहीं, अभी से शुरू हो जाय, यह नीति अपनाई है। यह 'व्यवहार-में-अध्यात्म' के विचार से ही प्रेरित सिद्धांत है। भारतीय चेतना केंद्र द्वारा गीता-धाम, इस्लामिक स्पिरिचुऐलिटी सेंटर, क्रिस्चियन स्पिरचुऐलिटी सेंटर और बुद्धिस्ट स्पिरिचुऐलिटी सेंटर बनाने का विचार 'अप्लाइड स्पिरिचुऐलिटी' की भावना से ही प्रेरित है, चूँकि इन केंद्रों पर व्यक्तिगत आध्यात्मिक साधना के साथ-साथ अनिवार्य रूप से गरीबी निवारण, सम्पूर्ण शिक्षा, और स्वास्थ्य के कार्यक्रम लागू होंगे। विवेकानंद ने सही कहा था : एक भूखे मनुष्य से ईश्वर और अध्यात्म की बात करना उसका मजाक उड़ाना है। इसलिए आइये, हम 'विचार-में-अध्यात्म' से आगे बढ़ कर 'व्यवहार-में-अध्यात्म' की ओर बढ़ें! आज देश के पुनर्निर्माण के लिए, गरीबी हटाने और भ्रष्टाचार मिटाने के लिए राजनीति में आना 'व्यवहार-में-अध्यात्म' होगा।

Introduction to Bharatiya Suraaj Dal at Bahalpa Ashram

https://youtu.be/B0xCjVK-9YQ

_*At the first camp for training in political leadership at Bahalpa ashram in Haryana, Bharatiya Suraaj Dal's Founder President Mr PK Siddharth introduces the party to the participants, clarifying why a new party is needed even though nearly two thousand parties still exist in the country.*_

Tuesday, 22 November 2016

Video on fusion of politics and spirituality

https://youtu.be/Q6pbNMyNtLs

Bharatiya Suraaj Dal, a political party, and School of Applied Spirituality of Swami Agnivesh have come together to produce a new breed of political leaders with spiritual foundations. On this occasion the party President speaks to the participants on 16 November, 2016.

Monday, 21 November 2016

रामजी बाबू बहेल्पा आश्रम में : भाग 2

डॉ रामजी सिंह के बहेल्पा आश्रम में बिताये गए क्षणों के संस्मरण : भाग 2

पी के सिद्धार्थ
अध्यक्ष, भारतीय सुराज दल

दिन भर के कार्यक्रम के बाद रात्रि विश्राम के लिए रामजी बाबू को मेरे ही लकड़ी-और-बांस के कॉटेज में एक बिस्तर प्रदान किया गया। कमरे में स्वामी अग्निवेश भी आ गए और डेढ़-दो बजे रात तक शास्त्रार्थ चलता रहा। स्वामी जी के जाने के बाद दो-ढाई बजे हम लोग सोए।

उस रात स्वामी जी से कुछ सैद्धांतिक बिंदुओं पर गंभीर द्वन्द युद्ध हुआ। युद्ध के बाद मुझे गंभीर और संतुष्ट नींद आती है, जबकि दूसरा पक्ष अक्सर सो नहीं पाता। इसलिए मैं गंभीर नींद सोया। मगर घंटे-डेढ़ घंटे के अंदर ही नींद टूट भी गयी क्योंकि कुछ धब-धब की आवाज़ें कमरे में आ रही थीं। मैंने रात्रि के धूमिल प्रकाश में देखा कि रामजी बाबू अपने दोनों पैरों से साढ़े तीन बने सुबह हवा में तेजी से सायकिल चला रहे थे। जाहिर है कि वे नींद में नहीं बल्कि जाग्रत अवस्था में ही व्यायाम के लिए साईकिल चलाने जैसी कवायद कर रहे होंगे। लेकिन उतनी तेज साईकिल मैं तो नहीं चला सकता। बीच-बीच में उनके पांव बिस्तर पर भी आघात कर देते थे जिससे धब-धब की आवाज़ भी उत्पन्न हो रही थी, जिसने मेरी नींद तोड़ दी थी।

कोई चारा न देख कर मैं उठा, कई दिनों से नींद पूरी नहीं करने देने के लिए ईश्वर को भला-बुरा कहा, और बेसिन में हाँथ-मुह धो कर बत्ती जलायी और रामजी बाबू के पास पहुंचा जो अब तक अपना व्यायाम पूरा कर चुके थे। मैंने कुर्सी खींची और उनके निकट बैठ गया।

मैंने कहा, बाबा अब जरा वेदों और उपनिषदों पर चर्चा करते हैं। उपनिषद  का अर्थ होता है 'निकट बैठना', सो आज निकट बैठ कर सीखता हूँ। रामजी बाबू से फिर व्यापक ज्ञानात्मक चर्चाएं हुईं।

सुबह जब लोग-बाग़ जगे तो  थोड़ी हंसी-मजाक भी हुई। तब मैं भी खड़ा था और वे भी खड़े थे। कमलेश और शायद  मनोहर मानव भी उपस्थित थे। उसी वक्त रामजी बाबू ने मुझे मजाक में हलके से एक हाथ से 'पुश' किया। इस पुश से जीवन में पहली बार मेरा शारीरिक संतुलन बिगड़ गया और संभालने की कोशिश करते-करते मैं धराशायी हो गया। लेकिन ईश्वर की कृपा से नीचे डनलप के गद्दे बिछे थे जिन्होंने मेरी रक्षा की। मैं जानता हूँ कि पाठक इसे अतिशयोक्ति या मिथ्या आरोप के रूप में ले सकते हैं, क्योंकि मिथ्या आरोप लगाने के लिए राजनीतिज्ञ आज भारत में सर्वत्र जाने जाते हैं। मगर वहां कई विश्वसनीय गवाह भी थे। मामले को न्यायलय में ले जाने से भी कोई लाभ नहीं क्योंकि कोई न्यायाधीश यह नहीं मानेगा कि महज 40 किलो वजन वाले एक 94 वर्ष के गांधीवादी अहिंसक व्यक्ति के पुश से एक 92 किलो का सुदृढ़ और हिंसक व्यक्ति व्यक्ति धराशायी हो सकता है। गवाह पेश करने से भी लाभ नहीं क्योँकि मिथ्या गवाह पेश करने के लिए और गवाहों को प्रभावित करने के लिए भारतीय पुलिस कुख्यात है।

अतः मुझे सभी पक्षों पर विचार करने के बाद यही बेहतर विकल्प लगा कि बाबा से यह रहस्य पता करूँ कि आखिर वे क्या खाते-पीते हैं, कैसे रहते हैं, और मैं भी 94 साल तक क्रियाशीलता और वाक् युद्ध के साथ साथ मल्ल युद्ध की अपनी क्षमता बनाये रखूं। (क्रमशः)

पी के सिद्धार्थ
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Sunday, 20 November 2016

सुराज दल का संक्षिप्त परिचय

एक नए राजनीतिक दल की क्या जरुरत? : भारतीय सुराज दल के विषय एक संक्षिप्त प्रस्तुति।

भारतीय सुराज दल का भारत के चुनाव आयोग द्वारा औपचारिक रूप से एक राजनीतिक दल के रूप में निबंधन या रेजिस्ट्रेशन 29 अगस्त, 2014 को हुआ।

श्री पी के सिद्धार्थ इसके संस्थापक अध्यक्ष हैं, और दो अन्य संस्थापक सदस्य श्री कमलेश कुमार गुप्ता और श्री बी एल वोहरा क्रमशः इसके राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय कोषपाल हैं।

श्री सिद्धार्थ एक भूतपूर्व आई पी एस अधिकारी हैं, जिन्होंने 2010 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर पूर्णकालिक रूप से अपने-आप को सामजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।

उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, और सुविधाविहीन बच्चों के बीच शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने कई नए प्रयोग किये हैं। किसानों की गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने 'खेती से लखपति' नाम की एक फ़िल्म-श्रृंखला का निर्माण किया है, जिससे लाखों किसान लाभान्वित हुए। तीन-चार वर्षों के भीतर ही चयनित क्षेत्रों में आत्यंतिक गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने एक नया मॉडल भी विकसित किया है।

महासचिव श्री कमलेश कुमार गुप्ता एक दशक से अधिक से झारखण्ड के सुदूर गांवों में निर्धन लोगों के बीच हर जाड़े में बड़ी संख्या में कम्बल और गरम वस्त्र बांटते रहे हैं। श्री बी एल वोहरा एक भूतपूर्व पुलिस महानिदेशक हैं, जिन्होंने अपनी संस्था 'वस्त्रदान' की और से लाखों वस्त्र गरीबों के बीच अबतक वितरित किये हैं।

भारतीय सुराज दल का मुख्य उद्देश्य देश में *सुराज* लाना है। सुराज का अर्थ होता है सुन्दर राज या गुड गवर्नेंस। 1947 में भारत में स्वराज या अपना राज तो आ गया मगर सुराज नहीं आ पाया। 72वें और 73वें संविधान संशोधनों के बाद पंचायतों के स्तर तक भी चुनी हुई सरकारें आ गयीं, अर्थात कथित रूप से ग्राम-स्वराज भी आ गया, मगर सुराज फिर भी नहीं आ पाया। इसीलिए दल ने अपना लक्ष्य सुराज को बनाया है।

किसी भी देश की अधिकांश समस्याओं का सबसे त्वरित और प्रभावी समाधान एक सरकार ही प्रदान कर सकती है। एक लोकतंत्र में दुनिया भर में यह सरकार राजनीतिक पार्टियां ही बनाती हैं। इसलिए एक सरकार कितनी अच्छी और प्रभावी होगी यह ज्यादातर इसी पर निर्भर करेगा कि जो राजनीतिक पार्टी सरकार बना रही है वह कितनी अच्छी और प्रभावी है।

एक राजनीतिक पार्टी कितनी अच्छी है और प्रभावी है, यह कई अन्य बातों के अलावा मुख्य रूप से इन बातों पर निर्भर करता है :

1) *व्यवस्था परिवर्तन का स्पष्ट मानचित्र* : पार्टी के पास देश या राज्य की प्रमुख समस्याओं के समाधान के लिए  सुचिंतित रोडमैप तैयार है या नहीं, देश की विकृत व्यवस्था या उसकी उपव्यवस्थाओं के परिवर्तन का नक्शा विकसित किया गया है या नहीं;

2) *नेतृत्व*:  : पार्टी के नेतृत्व की ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा का पूर्व इतिहास या ट्रैक रेकॉर्ड कैसा है; पार्टी के पास दक्ष और ईमानदार नेतृत्वकर्ताओं की अच्छी संख्या में उपलब्धता है या नहीं, जो सत्ता में आने पर विभिन्न मंत्रालयों को अच्छी तरह संभाल सकें; पार्टी के पास योग्य नेतृत्वकर्ताओं को तैयार करने की रणनीति और कार्यक्रम हैं या नहीं; पार्टी के संविधान में नेतृत्व-चयन की उचित, निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था है या नहीं।

3) *संघर्षात्मक कार्यक्रम*: पार्टी के पास जनहित के मुद्दों पर संघर्ष करने की ताकत और इतिहास है या नहीं।

4) *रचनात्मक कार्यक्रम*:  सत्ता में नहीं होने पर कार्यकर्ताओं और नेतृत्वकर्ताओं के चरित्र को आकार देने और समाज के निर्माण के लिए उपयुक्त रचनात्मक कार्यक्रम हैं या नहीं; और ये कार्यक्रम निरंतरता के साथ जमीनी स्तर पर चलाये जाते हैं या नहीं।

5) *सत्ता में पहुंचने के पहले दल की क्या उपलब्धियां रहीं?*: पार्टियां हमेशा बड़े-बड़े दावे प्रस्तुत करती हैं कि सत्ता में आने के बाद वे क्या करेंगी - गरीबी हटा देंगी, अच्छे दिन ला देंगी, आदि आदि। सत्ता में पहुँचने के बाद कोई पार्टी क्या करेगी, यह तो कहना बहुत ही कठिन है, खास कर एक नयी पार्टी के विषय में; मगर क्या इस सवाल का संतोषजनक जवाब पार्टी दे पाती है कि सत्ता में आने के पहले, या सत्ता में आये बिना, वह क्या कर सकती है, या क्या कर सकी? अगर वह इस सवाल का संतोषजनक जवाब दे सकी तो इस बात की संभावना बहुत बढ़ जएगी कि सत्ता में आने के बाद वह वाकई कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कर पायेगी।

लोग अक्सर पूछते हैं कि जब देश में पहले से ही लगभग 2000 के करीब निबंधित राजनितिक पार्टियां हैं, तो फिर एक नई पार्टी की जरुरत क्यों? हम आपसे यह पूछना चाहेंगे कि ऐसी कितनी पार्टियां इस देश में हैं जो उपर्युक्त पाँच मानदंडों पर खरी उतर सकें? अगर ऐसी पार्टियां खोजने में समय लगता है तो फिर एक नयी पार्टी की जरुरत है। और इसी लिए यह नई पार्टी!

जो पाँच महत्वपूर्ण सवाल पूछे गए, उनका क्या जवाब भारतीय सुराज दल के पास है? यहाँ हम यही बताना चाहेंगे।

1) *वैकल्पिक व्यवस्थाओं का ब्लूप्रिंट*: भारतीय सुराज दल की स्थापना 2014 में करने से पूर्व ही कई वर्षों तक के शोध, चिंतन-मनन और विमर्श के बाद 11 क्षेत्रों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया गया था।

2) *दल का नेतृत्व*: पार्टी नेतृत्व की ईमानदारी और दक्षता के पूर्व इतिहास का पता स्वयं करना उचित होगा। उनके विषय में विशेष जानकारी www.pksiddharth.in से ली जा सकती है। पार्टी बड़ी संख्या में वेल-इंफॉर्मड, ज्ञानवान, चरित्रवान और सेवाधर्मी नेतृत्वकर्ता तैयार करने के लिए उच्चस्तरीय राजनीतिक नेतृत्व-विकास शिविर कर रही है। पार्टी में नेतृत्व के चयन के लिए उचित और पारदर्शी प्रक्रिया पार्टी के संविधान में अपनाई गयी है, जिसे पार्टी के संविधान को पढ़ कर जाना जा सकता है। सदस्यों की प्रोन्नति की पारदर्शी और सम्यक व्यवस्था पार्टी के संविधान में है, जो www.suraajdal.org पर उपलब्ध है। दल में आप्त प्रथम से ले कर आप्त पंचम तक पांच प्रकार के सदस्य होते हैं, और प्रथम से पंचम स्तर तक प्रोन्नति के पारदर्शी मानदंड इस दल का संविधान प्रदान करता है, ताकि शीर्ष नेतृत्व छन कर ऊपर आये।  ऐसी पारदर्शी व्यवस्था किसी दूसरे दल के संविधान में नहीं।

3) *जन मुद्दों के लिए संघर्षशीलता*: पार्टी अपनी स्थापना के बाद से लगातार जन-मुद्दों पर जमीनी आंदोलन और न्यायालयों में जनहित याचिकाओं के माध्यम से लड़ती आ रही है। इसकी कुछ मिसालें देखिये:

2015 के अक्टूबर-नवम्बर में झारखण्ड लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में फैले अकूत भ्रष्टाचार से पीड़ित छात्र आमरण अनशन पर बैठे। बाकी दल अनशन स्थल पर चित्र खिंचवा कर चले गए। मगर भारतीय सुराज दल का नेतृत्व उनके साथ 3 दिनों तक अनशन पर बैठा, उनके पास उपलब्ध भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का संकेत देने वाले सारे दस्तावेज देखे, और संतुष्ट होने पर  तुरंत झारखण्ड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की। दल के अध्यक्ष ने खुद 4 महीने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष बहस की। उधर झारझण्ड विधान सभा में विपक्ष को संगठित कर विधानसभा की कारर्वाई 4 दिनों तक बाधित करवा के रखा। अंततः सरकार झुकी और विपक्ष के नेता के माध्यम से भारतीय सुराज दल द्वारा दी गयी सभी सुधारों की अनुशंशा को अगली जी पी एस सी परीक्षा से लागू करने का निर्णय सरकार द्वारा लिया गया।

उपर्युक्त आंदोलन न केवल अनशन और न्यायालयों तक सीमित रहा, बल्कि सडकों तक फैला। लेकिन दल ने आंदोलनकारी छात्रों को नियंत्रण में रखा, और हिंसा और लोक-सम्पति की हानि नहीं होने दी। सर्फ पुराने टायर जलाये गए।

झारखंड प्रदेश के हज़ारीबाग़ जिले के बड़कागांव पंचायत में कोयला उत्खनन के लिए भूमि-अधिग्रहण की प्रक्रिया वर्षों से चल रही है। मगर 2013 में भूमि अधिग्रहण के नए कानून के आने के बाद 70 प्रतिशत किसानों की सहमति जरूरी हो गयी। मगर प्रशासन और सरकार अभी भी पुराने कानून के तहत, अर्थात गैरकानूनी तरीके से जमीन अधिग्रहण करना चाह रही। ध्यान रहे कि कोयला उत्खनन सरकार या एन टी पी सी खुद नहीं कर रही, बल्कि एक प्राइवेट कंपनी के माध्यम से करवाने का विधान किया गया। इस प्रोजेक्ट से साठ हज़ार लोग विस्थापित होंगे। सरकार ने फारेस्ट राइट्स ऐक्ट का उल्लंघन करते हुए बिना ग्रामसभा की अनुमति के जंगल की 2500 एकड़ जमीन को भी  गैर वनीय प्रयोग यानि कोयला उत्खनन के लिए डाइबर्ट कर दिया। इस मामले का संज्ञान लेते हुए दल के प्रतिनिधिओं ने वहां गांवों में जाकर जन-सुनवाई की और कुछ दलों के साथ मिल कर आंदोलन किया और गिरफ़्तारी दी। फिर झारखण्ड उच्च न्यायलय में लोकहित याचिका दाखिल की और दल के अध्यक्ष ने खुद ही मुख्य न्यायाधीश के कोर्ट में केस की बहस की।

4) *रचनात्मक कार्यक्रम*: दल ने 23 सूत्री रचनात्मक कार्यक्रम विकसित किया है, जिसमें प्रमुख हैं बिना सरकार का मुखापेक्षी हुए खेती से लखपति बनाना, गरीबी निवारण करना और गांव-गांव में शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन लाना; सार्वजानिक टॉयलेट्स को साफ़ करते रहना; नशाबंदी; पंचामृत कार्यक्रम के तहत जरूरतमंदों के लिए अन्न, पुस्तकें, वस्त्र, कम्बल आदि का संग्रह करना इत्यादि।

5) अंततः, अंतिम और सबसे कठिन प्रश्न का उत्तर कि *सत्ता में आने के पहले दल क्या कर सकता है, और क्या किया?*

दल ने किसानों के गरीबी-निवारण के लिए 'खेती से लखपति' नामक एक फ़िल्म श्रृंखला प्रस्तुत की है जो किसानों को समृद्ध बनने के उपाय सिखाती है। इस श्रृंखला की डी वी डी सदस्यों को नाम-मात्र दर पर उपलब्ध करायी जाती है। लाखों किसान इस प्रशिक्षण  फ़िल्म-श्रंखला से लाभान्वित हुए हैं।

दल ने लिखने और बोलने वाली हिंदी और अंग्रेजी भाषा बच्चों और युवकों को सहजता से सिखाने के लिए डी वी डी की पूरी सीरीज़ तैयार की है ताकि गांव-गांव में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ा कर बच्चों का भविष्य-निर्माण बिना सरकार या प्राइवेट स्कूलों के भी किया जा सके। इसी प्रकार सम्पूर्ण शिक्षा का पूरा पाठ्यक्रम विकसित कर बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण के लिए गांव-गांव में बच्चों के भविष्य-निर्माण की कोशिश दल द्वारा की जा रही है। दल विस्तृत तौर पर युवाओं में नेतृत्व विकास कार्यक्रम भी चला रहा है।

जैसा कि पहले बताया गया, दल ने कई जनमुद्दों पर सड़क पर आन्दोलनों के माध्यम से, और न्यायलय में लोक हित याचिकाओं के माध्यम से, संघर्ष किया है और कर रहा है।