झारखण्ड क्या पुलिस-स्टेट में तब्दील होता हुआ एक राज्य है?
पी के सिद्धार्थ
www.pksiddharth.in
www.suraajdal.org
8252667070
झारखण्ड राज्य में पुलिस बलों का बढ़ता दुष्प्रयोग एक चिंता का विषय बनता जा रहा है, और ये सवाल उठने लगे हैं की क्या झारखण्ड एक पुलिस-स्टेट में तबदील हो जायेगा?
हज़ारीबाग़ के बड़का गांव क्षेत्र में गत 2 और 17 मई को सैकड़ों की संख्या में पुलिसकर्मियों ने आधा दर्जन गांवों में उतर कर घरों में घुस-घुस कर सैकड़ों लोगों को मारा-पीटा जिसमें गर्भवती महिलाएं, गोद के बच्चे और 90 साल के बुजुर्ग तक शामिल थे। मार-पीट कर और 'सबक' सिखा कर वे लौट गए। ध्यान रहे कि बड़कागांव क्षेत्र में त्रिवेणी सैनिक कंपनी-एनटीपीसी और सरकार प्रयास कर रहे हैं कि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के विरुद्ध जाकर बिना रैयतों की सहमति के जमीन का अधिग्रहण कर लिया जाए और उस पर कोयले का खनन किया जाए। रैयत जमीन देने को तैयार नहीं हैं, इसलिए उन्हें आतंकित कर उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए पुलिस-बलों के द्वारा प्राइवेट कंपनी के द्वारा यह कार्य कराया गया, इसके स्पष्ट संकेत हैं। पुलिस बल के दुरुपयोग के इक्का-दुक्का उदाहरण तो हमेशा आते रहे हैं लेकिन इस स्तर पर प्राइवेट आर्मी के तौर पर पुलिस का प्रयोग एक अभूतपूर्व घटना है। यह माना जा सकता था कि यह निचले स्तर के पुलिस अधिकारियों द्वारा चलाई गई एक साजिश थी, मगर अब ऐसा नहीं माना जा सकता क्योंकि प्रशासन ने पहले तो घटना की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश पारित करने में देर की, और उसके बाद दबाव पड़ने पर जब आदेश पारित किया, तो उसके बाद जाँच ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है। इसका अर्थ स्पष्ट रूप से यही है कि पुलिस को सरकार के उच्चतम स्तरों के निर्देश पर बेलगाम छोड़ा गया था और उसकी ज्यादती को कंपनी के पक्ष में सरकार की शह प्राप्त थी।
इस बीच एक वरीय आई पी एस और ए डी जी स्तर के अधिकारी का शुद्ध राजनितिक कार्य के लिए स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा प्रयोग एक ऑडियो के प्रकाशित होने से खुले में आ गया है। अर्थात पुलिस के दुष्प्रयोग से सरकार के मुखिया को ही कोई परहेज नहीं। ऐसे में सरकार के चरित्र पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
फिर इधर 29 अगस्त को रामगढ के गोला क्षेत्र में जो पुलिस फायरिंग हुई उसे टाला जा सकता था। निश्चय ही यह विस्थापन-विरोधी जन-आंदोलन नहीं था, बल्कि कंपनी से रंगदारी नहीं मिलने पर कुछ राजनितिक तत्त्वों द्वारा प्रायोजित आंदोलन था, और भीड़ ने पथराव कर बी. डी. ओ. की आँख फोड़ दी। मगर पुलिस की 'आत्मरक्षात्मक' फायरिंग में ' रंगदार' तो नहीं मारे गए। मारे गए दो अत्यंत गरीब और निर्दोष लोग। संयम नहीं खोना पुलिस के कार्य में शामिल होता है, मगर जब पुलिस और प्रशासन आपा खो कर बदले की भावना से काम करते हैं, तो यही होता है। सरकार ने घटना की न्यायिक जाँच नहीं करा कर प्रशासनिक जाँच की पहल कर फिर यह सन्देश भेजा है कि वह न्याय नहीं कर पुलिस और प्रशासन को बचाना चाहती है क्योंकि वह उनके साथ है। फिर सरकार पेलेट गन आदि का प्रयोग न कर घातक राइफलों का प्रयोग अभी भी भीड़- नियंत्रण के लिए क्यों कर रही है? क्या लोगों के जान की कीमत सिर्फ कश्मीर में है, झारखण्ड में नहीं?
बिना कड़ाई किये शासन नहीं चल सकता। मगर कड़ाई कब करें, कितनी करें, किस प्रकार करें, और किसके साथ करें, इसे ही शासन की दक्षता कहते हैं। कड़ाई का अर्थ पुलिस का गैरकानूनी प्रयोग और उसे बेलगाम छोड़ देना नहीं है। पुलिस और प्रशासन तो घोड़े की तरह होते हैं : उन्हें कानून की लगाम में रख कर सही दिशा में सरपट दौड़ाना सरकार का काम है; उन्हें बेलगाम छोड़ देना नहीं। अगर सरकार ने अपना रुख नहीं बदला तो राज्य जल्द ही पुलिस-स्टेट
में तब्दील हो जायेगा, ऐसा खतरा है।
पी के सिद्धार्थ
1 सितम्बर, 2016
No comments:
Post a Comment