मेरे मित्र
श्याम बेनेगल -2
पी के सिद्धार्थ
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श्याम बाबू के ऑफिस में फिल्मों के बड़े-बड़े स्पूल जरूर अव्यवस्थित पड़े हुए थे, मगर मैंने पाया कि एक व्यक्ति के तौर पर वे बहुत व्यवस्थित थे। सिटिजंस कमीशन फॉर नैशनल इश्यूज, जिसके वे सदस्य बने, की वार्षिक सदस्यता राशि 1000 रुपये थी। डॉ वाइ पी आनंद के अलावा वे एकमात्र सदस्य थे जो एक बार रूटीन बार्षिक रिमाइंडर जाने पर, बिना दूसरी बार याद दिलाये, अपना चेक भेज दिया करते थे।
लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण बात मैंने उनमें लक्ष्य की वह थी कुछ जीवन- मूल्यों में विश्वास और उन मूल्यों को जीवन में बास्तव में जीना। सरल और बिना दिखावे का जीवन जीने वाले श्याम बाबू के जुबान की कीमत रही है। आज कल झूठ बोलना व्यस्त और बड़े लोगों के चरित्र का अंग बन गया है। मगर श्याम ने जब जो कहा वह किया।
मैंने उन्हें एक बार एक स्कूल के उद्घाटन के लिए एक बड़े अभिनेता को भेजने अनुरोध किया। उद्घाटन में दो-चार दिन ही बचे थे। नसीरुद्दीन शाह के नाम पर सहमति बनी। मुझे दूसरे ही दिन नसीरुद्दीन ने फोन किया। उन्होंने कहा कि श्याम बाबू का फोन आया था कि अमुक तारीख़ को मुझे पटना आना है। लेकिन उस दिन तो मेरा बड़ा कार्यक्रम जयपुर में फाइनल हो चूका है। किसी दूसरे दिन स्कूल की ओपनिंग संभव नहीं है? अब श्याम बाबू ने कहा है तो मुझे तो पटना किसी भी हालत में आना ही होगा, चाहे जयपुर का कार्यक्रम रद्द क्यों का करना पड़े। श्याम बाबू को मैं न नहीं कर सकता। मैंने उनसे कहा, अगर आप अयोजकों को जयपुर में वचन दे चुके हैं तो बिलकुल जयपुर जाएं और अपने वचन का पालन करें। जनता को भी कैंसिलेशन से बहुत असुविधा हो जायेगी। आप चिंता न करें, मैं श्याम बाबू को बता दूंगा। उद्घाटन की तिथि तो बदल नहीं सकती। मगर मैं दूसरी व्यवस्था कर लूंगा। मेरे सबसे प्रिय मित्र एक प्रयोग के लिए वह स्कूल खोल रहे थे। सो मैंने वैकल्पिक व्यवस्था कर दी। लेकिन श्याम बाबू का जो आदर मैंने फ़िल्म कलाकारों के बीच उस समय और बाद में देखा, उससे उनके प्रति मेरी इज्ज़त और बढ़ गयी।
2007 में दिल्ली में मैंने 5 राज्यों के बच्चों का सम्पूर्ण निर्माण का एक 10 दिवसीय आवासीय कैम्प आयोजित किया। मित्र आदित्य आर्य, जो दिल्ली में मेरे आइ पी एस मित्र थे ने इसकी व्यवस्था में अच्छा सहयोग किया। इसमें बच्चों को संबोधित करने के लिए मैंने श्याम को भी आमंत्रित किया। वे मुम्बई से आये, और एक स्मरणीय सम्बोधन दिया जो मैं कभी यथावत नेट पर डालना चाहूँगा। उन्होंने बताया कि कैसे अपने परिवार के असहयोग के बावजूद अपने सपनों को जमीन पर उतारने के लिए हैदराबाद से मुम्बई आये, और कैसे पहले 'ऑल इन वन' बन कर काम शुरू किया : कैमरामैन, लाइटमैन, कोरियोग्राफर, डाइरेक्टर सभी कुछ वे शुरू में खुद बने!
उनकी कुछ और बातें बच्चों को बहुत प्रभावित कर गयीं। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि आमिर खान एक और तो आदर्शों की बात करते हैं, दूसरी ओर पैसों के लिए कोक-पेप्सी जैसे हानिकारक पेय का प्रोमोशन करने में लगे हैं। श्याम ने यह भी बताया कि उन्होंने कभी एक भी कोक या पेप्सी को हाथ नहीं लगाया।
अंत में श्याम बाबू ने बच्चों को गांधी जी की उस प्रसिद्ध उक्ति की याद दिलाई : 'Be the change that you wish to see in the world.'
(क्रमशः)
पी के सिद्धार्थ
6 सितम्बर, 2016
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