स्त्री-पुरुष संबंधों में गंभीर परिवर्तन सभ्यता के परिवर्तन के इस मुकाम पर दृष्टिगोचर हो रहे हैं। वैवाहिक संबधों की sanctity धूमिल होती जा रही है। 'बड़े' घरों में शादी दो वर्षों के ही अंदर अलगाव की भावना आने लगती है। एक कारण है पुरुष का अहंकार जिसे पढ़ी-लिखी लड़की 'बर्दाश्त' नहीं करना चाहती। अब वह भी समानता और समान 'अहम' के विचारों के साथ प्रत्युत्तर देने को सज्ज है। अहंकार का सबसे बड़ा तोड़ है प्रेम और स्नेह की भावना, जो बौद्धिकता के विकास के साथ कमती जा रही है। जिस सभ्यता ने 'यस्य नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' (जहाँ नारियों का आदर होता है, वहां देवता रमण करते है) का आदर्श रखा वह आज 'ब्राइड बर्निंग' और चित्कार करनी 'निर्भयाओं' का देश हो गया है। जो उस सीमा तक नहीं जाते वे भी अक्सर पत्नी के प्रति विनम्र भाषा और आचरण का प्रयोग नहीं करते। प्रेम में अहंकार कहाँ होता? श्री कृष्ण राधा के पैरों में आलता लगाते कई चित्रों में दीखते रहे हैं। यह प्रेम की बेदी पर पुरुष के अहंकार की बलि का प्रतीक है। आईये हम सब पुरुष इसका अनुकरण करें।
स्त्रियां भी अब 'स्त्री-सुलभ' भावनाओं आचरण को तरहीज़ नहीं देती नज़र आती। उन्हें भी सीता की कथाएं सुनने की जरूरत है।
आईये एक बार फिर अपने घरों में रामायण के साथ राम सीता को स्थापित करें, और अहंकार की जगह प्रेम और विनम्रता को।
स्त्रियां भी अब 'स्त्री-सुलभ' भावनाओं आचरण को तरहीज़ नहीं देती नज़र आती। उन्हें भी सीता की कथाएं सुनने की जरूरत है।
आईये एक बार फिर अपने घरों में रामायण के साथ राम सीता को स्थापित करें, और अहंकार की जगह प्रेम और विनम्रता को।
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