पी के सिद्धार्थ
www.pksiddharth.in
www.suraajdal.org
जब मैंने त्रिपुरा राज्य में 1983 में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी के रूप में योगदान दिया तब नृपेन बाबू 78 साल के थे। 88 वर्ष की उम्र तक वे मुख्य मंत्री रहे। लेकिन उम्र का कोई प्रभाव उनकी कार्यक्षमता पर नहीं दिखा। किसी ने कभी उनकी ईमानदारी पर ऊँगली नहीं उठाई। उनके किसी मंत्री ने कभी कोई रिश्वत ली हो, ऐसा सुनने में नहीं आया। उनके एक विधायक ने एक जीप खरीदी, मगर उसे नृपेन दा से छिपा कर, ढक कर रखता था, ऐसा सुनने में आया।
मगर समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए जो वास्तविक संवेदना नृपेन दा के अंदर थी, उसका कोई समानांतर उदाहरण मुझे किसी मुख्य मंत्री के जीवन में नहीं मिला।
मैंने एस पी का पहला चार्ज त्रिपुरा नॉर्थ जिले में ग्रहण किया। कुछ दिनों बाद मुझे देर शाम एक थाना-प्रभारी का फोन मिला। थाना प्रभारी ने बताया कि एक 'घटना' हो गयी है। एक इंटीरियर क्षेत्र में स्थित सी आर पी एफ कैम्प में एक डी एस पी ने एक ट्राइबल की बकरी जबरन ले ली और उसे आधी कीमत ही दी। फिर बकरी खा ली गयी।
इस घटना ने मुझे लज्जित किया। मैंने थानेदार को यह घटना मेरी दृष्टि में लाने के लिए धन्यवाद दिया, और उन्हें यह निर्देश दिया कि वे कैम्प में जा कर डी एस पी से मिलें, और उस ट्राइबल को पूरे पैसे दिलवा दें। कहें, एस पी साहब का आग्रह है। न मानें तो उनके खिलाफ एफ आइ आर दायर कर कानूनी कार्रवाई करें। कल कार्रवाई पूरी कर मुझे इत्तला करें।
अगले दिन थानेदार ने यह पुष्टि की कि उस ट्राइबल की शिनाख्त कर उसे पूरे पैसे दिलवा दिए गए हैं, और उसे कोई असंतोष नहीं है। मैंने थानेदार को फिर धन्यवाद दिया और दूसरे कार्यों में लग गया।
चार या पाँच दिनों बाद मैं जब अपने कार्यालय में सुबह-सुबह अपनी डाक-फोल्डर देख रहा था, तब मैंने मुख्य मंत्री कार्यालय का एक लिफाफा देखा। मैंने लिफाफा आश्चर्य और उत्सुकता के साथ खोला, क्योंकि गंभीर-से-गंभीर विषय पर एस पी के साथ डी जी पी या मुख्य सचिव ही पत्राचार करते हैं। लिफाफे में मेरे नाम से मुख्यमंत्री की एक व्यक्तिगत डेमी-ऑफिशल चिट्ठी मिली। यह चिठ्ठी मेरी किसी व्यक्तिगत फाइल में अभी भी सुरक्षित है। चिठ्ठी में अंग्रेजी में लिखा था कि उन्हें पता चला है कि मेरे जिले में फलाँ गांव में एक गरीब ट्राइबल से उसकी बकरी जबरदस्ती पुलिस वालों ने ले ली और उसे पूरे पैसे भी नहीं दिए। मेरी आँखें इस व्यक्ति के खुफिया तंत्र, जो उनके पार्टी-नेटवर्क पर आधारित था, की पहुँच और तेज गति पर फटी रह गयीं, और दूसरी ओर इस बात पर भी कि एक मुख्य मंत्री के पास इतना समय था कि वह इस मामूली-सी लगने वाली घटना पर एस पी को एक पूरी चिठ्ठी डिक्टेट करे, और स्वयं हस्ताक्षर कर भेजे। मगर हैरानी ख़त्म होते ही ह्रदय इस महापुरुष के प्रति श्रद्धा-भाव से भर गया। फिर यह भी संतोष हुआ कि मैंने यह पत्र प्राप्त होने से पूर्व ही उचित कार्रवाई कर डाली थी। जाहिर था कि यह चिट्ठी घटना के दिन ही लिखी गयी थी, क्योंकि समाधान तो दूसरे ही दिन करा दिया गया था। मैंने तुरंत पत्र का उत्तर लिख कर मुख्यमंत्री कार्यालय विशेष दूत से भेजा, और ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उन्होंने मुझ तक भी घटना की खबर सही समय पर पहुंचाई, और तत्काल समाधान करने की प्रेरणा भी दी।
काश किसी गरीब और असहाय नागरिक की पीड़ा हमारे अन्य मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के दिल में नृपेन दा की तरह थोड़ी भी सच्ची संवेदना उत्पन्न कर पाती!
पी के सिद्धार्थ