Saturday, 2 April 2016

Why there is no single prophet in Hinduism.

हिन्दू धर्म का कोई एक प्रवर्तक क्यों नहीं?

लोग अक्सर पूछते हैं कि जैसे ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं ईसा मसीह, बौद्ध धर्म के प्रवर्तक हैं महात्मा बुद्ध, इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हैं पैगम्बर मोहम्मद, वैसे हिन्दू धर्म का कोई एक प्रवर्तक क्यों नहीं है?
इसका जवाब हमें जानने और समझने की बहुत जरुरत है।
इस सवाल के सही जवाब तक पहुँचने के लिए हमें पहले एक और सवाल पूछना होगा : विज्ञान का एक प्रवर्तक कौन है - कोपरनिकस, गैलीलियो, न्यूटन या आइंस्टीन? या कोई और?
आप कहेंगे, शायद इनमें से कोई नहीं।
मगर क्यों?
विज्ञान उस प्रकृति के नियमों की खोज है जो प्रकृति या दुनिया आँखों से देखी जा सकती है, कानों से सुनी जा सकती है और अक्सर हाथों से स्पर्श की जा सकती है, यानी जो दुनिया इंद्रियगम्य है। जीव-विज्ञान यानी बाइऔलोजि, रसायनशास्त्र यानी केमिस्ट्री, भौतिकशास्त्र यानी फिज़िक्स, खगोलशास्त्र यानी ऐस्ट्रोनोमी आदि सभी विज्ञान के ही अंग हैं। विज्ञान ने ज्ञानेन्द्रियों से देखी-बूझी जा सकने वाली दुनिया के सैकड़ों-हजारों नियमों की तलाश की, और इन नियमों का प्रयोग कर हमारे लिए तरह-तरह की उपयोगी चीजों और भौतिक सुख-सुविधा प्रदान करने वाली वस्तुओं का निर्माण किया, जैसे बिजली से चलने वाले उपकरणों का, हमारी ख़राब किडनी और लीवर बदल कर हमें जिन्दा रखने वाले औजारों का, और हमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने वाले वायुयानों का। इस विज्ञान को नैचुरल साइंस या प्राकृतिक विज्ञान कहते हैं। कोपरनिकस, गैलीलियो, न्यूटन, आइंस्टीन इन सभी ने इस विज्ञान के कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण सत्यों का पता किया, मगर विज्ञान के सभी सत्यों और नियमों का नहीं। आज का महान विज्ञान तो ऐसे सैकड़ों-हज़ारों नियमों और सत्यों का संग्रह है जो हमें हमारे भौतिक कष्टों और असुविधाओं से मुक्ति प्रदान करते हैं। दो-चार नहीं बल्कि हज़ारों वैज्ञानिकों ने इस विज्ञान का विकास क्रमशः किया, सैकड़ों सालों में। हाँ, ऐसे कुछ महान वैज्ञानिक भी हुए, जैसे न्यूटन और आइंस्टीन, जिन्होंने विज्ञान के कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण सत्यों का पता किया और उन्हें सामने रखा, जिसके लिए उन्हें अभी भी विशेष रूप से याद किया जाता है।
इसी प्रकार अध्यात्म विज्ञान या स्पिरिचुअल साइंस भी हुआ करता है, जो उस दूसरी दुनिया के नियमों, सत्यों, शक्तियों और विभूतियों की तलाश करता है, जो सामान्यतः मनुष्य की शारीरिक ज्ञानेन्द्रियों, यानी कि आँख-कान या माइक्रोस्कोप या टेलिस्कोप आदि की पकड़ में नहीं आ सकतीं, जैसे आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग, नरक, पुनर्जन्म, मुक्ति आदि का स्वरुप और उनके नियम। जिस तरह दिखाई देनेवाली दुनिया कुछ नियमों से चलती है, उसी तरह उस न दिखाई देनेवाली दुनिया की भी बहुत सारी सच्चाइयाँ और नियम हैं, जिनकी तलाश अध्यात्म विज्ञान या साइंस ऑफ़ स्पिरिचुऐलिटी द्वारा की गयी है। हिन्दू धर्म वही महान साइंस ऑफ़ स्पिरिचुऐलिटी है, मगर दुर्भाग्य से लोग इसके बाहरी कर्मकाण्ड और पर्व-त्योहारों तक ही सिमट कर रह जाते हैं।
सैकड़ों ऋषियों और द्रष्टाओं ने हजारों सालों में उस न दिखाई देने वाली अदृश्य दुनिया की सच्चाइयों, शक्तियों और नियमों को ध्यान में, समाधि में, ईश्वर की तथा देवी-देवताओं की आराधना कर उनसे सीखा और प्राप्त किया। उन सत्यों का बार-बार अलग-अलग संतों और ऋषियों ने दर्शन किया, अनुभव किया, और अलग-अलग शब्दों में, अलग-अलग तरीकों से बयान किया। किसी भी एक ऋषि या एक द्रष्टा को सम्पूर्ण ज्ञान नहीं मिला, बल्कि उन्हें आंशिक आध्यात्मिक सत्यों का साक्षात्कार हुआ, ऐसा ही लगता है।
हिन्दू धर्म ने आध्यात्मिक सत्यों का इतना गहरा अनुसन्धान किया – आध्यात्मिक शक्तियों और ईश्वर की प्राप्ति के, तथा दुखों से अंतिम मुक्ति के इतने अलग-अलग साधन ढूंढे - कि आपको इतने मार्ग अन्यत्र कहीं नहीं मिलेंगे। 
हिन्दू धर्म इसीलिए किसी एक व्यक्ति की देन नहीं है, ठीक उसी तरह जैसे विज्ञान किसी एक वैज्ञानिक की देन नहीं है। जैसे विज्ञान की कई शाखाएं हैं, वैसे ही अध्यात्म-विज्ञान की भी कई शाखाएं है- तंत्र, मन्त्र, भक्तियोग, ज्ञानयोग, अष्टांगयोग, कर्मयोग आदि, जो अलग-अलग आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त करने तथा ईश्वर तक पहुँचने के अलग-अलग साधन बताती हैं। श्रीराम और श्रीकृष्ण इस हिन्दू या सनातन अध्यात्म-विज्ञान को सामने रखने वालों में सबसे अग्रणी हैं।
हिन्दू धर्म एक विकासमान धर्म है, क्योंकि विज्ञान हमेशा विकासमान होता है। सम्पूर्ण सत्य कभी किसी को ज्ञात हुआ, या हुआ भी तो कभी किसी ने सम्पूर्ण रूप से सामने रखा, ऐसा नहीं लगता। अगर ऐसा होता तो इतने अवतार और इतने पैगम्बर बार-बार प्रकट नहीं होते, और बार-बार कुछ भिन्न ज्ञान नहीं देते।
एक पैगम्बर तक सीमित हो जाना तो सत्य की अनंत गहराइयों में गोता लगाने की संभावनाओं को समाप्त कर देता है, और ईश्वर तक पहुँचने या मुक्ति प्राप्त करने के कई उपलब्ध रास्तों में से अपने सर्वाधिक पसंद का रास्ता चुनने की स्वतंत्रता भी सीमित कर देता है! इसीलिए सनातन धर्म या हिन्दू धर्म का कोई एक प्रवर्तक नहीं है।