Can you imagine that thousands of years back India gave an immensely developed concept of governance by presenting the outlines of Ram Rajya. This concept was reiterated by Tulasidas in his Ramcharitmanas over five hundred years back. Have a look at this marvel.
आज जब सुराज या सुशासन के अभाव में शासकों से जनता त्रस्त
है, शासकों के कदाचार, भ्रष्टाचार और जनविरोधी नीतियों और कृत्यों के कारण जनता के
लिए सुखी जीवन स्वप्न होता जा रहा है, विषमता और आपसी लड़ाई-झगड़ों से सामाजिक जीवन
नरक हो गया है, रामराज्य की परिकल्पना शासक और शासित दोनों को फिर से सुराज के
स्वरुप पर सोचने को प्रेरित करती है. इस देश में पुराने समय में, अन्य देशों से बहुत
अलग, बड़ी संख्या में राजाओं द्वारा अपना जीवन प्रजा के सुख और कल्याण को समर्पित करने
की एक मजबूत परम्परा रही है जिसकी श्रृंखला में राजा राम ने भी योगदान दिया और
जनतांत्रिक और जनमुखी शासन का एक अतुल्य उदाहरण प्रस्तुत किया. रामराज्य कैसा था
इसका जो वर्णन रामचरितमानस में है वह पाठकों की जानकारी के लिए उद्धृत किया जाता
है. रामराज्य का अर्थ राजतंत्र लाना नहीं है. यानी पाठक नीचे के उद्धरणों की भावना
पर जायें न कि केवल शब्दों पर. यह भी ध्याम में रहे कि यह वर्णन कविता में है;
इसलिए अर्थ लगाने में गद्य-जैसा प्रयास न करें. पाठकों में से अनेक श्रीराम को
भगवान का अवतार मानते हैं; मगर यहाँ उन्हें एक राजा के रूप में ही देखें तो अधिक
न्याय होगा; यानी शासक हों तो राम जैसे, और राज जो तो रामराज जैसा.
(तुलसीदास
के रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड के दोहा संख्या १९ और दोहा संख्या २३ के बीच से कुछ
अंश - )
राम राज
बैठें त्रैलोका | हर्षित भये गए सब सोका ||
बैर न कर
काहू सन कोई | राम प्रताप बिषमता खोई ||
साधारण
अर्थ : श्री राजचन्द्र के राज्य पर
प्रतिष्ठित होने पर तीनों लोक हर्षित हो गए, उनके सारे शोक
जाते रहे. कोई किसी से वैर नहीं करता. श्रीराम के प्रताप से विषमता ख़तम हो गयी.
विशेष टिपण्णी : श्री राम ने विषमता ख़तम की;
समतामूलक समाज स्थापित किया. निषादराज केवट और शबरी से उनके व्यवहार
भी इसी प्रयास के व्यक्तिगत उदाहरण थे. समाजवाद का मुख्य विचार होता है समता - वर्णन के शुरुआत में ही 'समता' वाले पक्ष पर जोर हम देख सकते हैं. समता पर और
भी अंश आगे हैं. एक और बात ध्यान देने योग्य है - कोई किसी से दुश्मनी नहीं
करता - जनता इस प्रकार की
है. क्या कोई राजा या शासक ऐसा कर सकता है कि सभी नागरिक ऐसे स्वभाव वाले हो
जायें? ऐसा समाज सिर्फ राजा का योगदान नहीं हो सकता. इसमें
और भी सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक
नेताओं की भूमिका बनती है; मगर राजा इसके लिए वातावरण तैयार
कर सकता है. 'वैर' एक भावना है,
और प्रत्येक नागरिक के भावना-परिष्करण या 'इमोशन
कल्चरिंग' के लिए शिक्षा व्यव्वस्था में उपाय करने पड़ते हैं,
जो आज नहीं हो रहे हैं. करिक्युलम में 'इमोशनल
लिट्रेसी' कहीं भी कभी भी नहीं सिखाई जाती. फिर राजा
का अपना स्वभाव और चरित्र भी जनता का चरित्र प्रभावित और निर्धारित करता है.
राम का स्वभाव स्वयं भी निर्वैर है.
बरनाश्रम
निज निज धरम निरत बेद पथ लोग |
चलही सदा
पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग ||
साधारण
अर्थ : सभी वर्णों के लोग (ज्ञान प्राप्त
करने और ज्ञान बाँटने वाला वर्ग, शासक वर्ग, कृषक और व्यवसायी वर्ग, और सेवा-क्षेत्र में काम
करने वाला वर्ग) अपना-अपना धर्म (कर्त्तव्य) उचित प्रकार से निर्वाह करते हैं और
वेद के बताये मार्ग पर चलते हुए सुख पाते हैं. जनता को न किसी बात का भय है,
न कोई रोग न शोक.
विशेष
टिपण्णी : जनता को किसी प्रकार का भय नहीं
इसका अर्थ है कि कहीं अपराध नहीं और कोई अपराधी नहीं, राज्य
के अधिकारियों की प्रतारणा का भय नहीं; आत्मानुशासन
है, राज्य के नियम भंग नहीं करते इसलिए इसलिए क़ानून का भय भी
नहीं; स्वस्थ जीवन शैली के कारण और राजकीय स्वास्थ्य
व्यवस्था के कारण लोग रोगमुक्त हैं; लोग सब प्रकार से
प्रसन्न हैं इसलिए कोई शोक नहीं. सभी ‘वर्ण’ (ज्ञानी-पंडित-पुरोहित, शासक और योद्धा, व्यवसायी, तथा सेवा क्षेत्र के लोग) अपना अपना धर्म
उत्कृष्टा से निबाहते थे – एक्सेलेंट तरीके से अपना काम करते
थे जैसा कि हम आज भी चाहते हैं. मगर यहाँ ध्यान
रहे कि ‘वर्ण’ ‘जाति’ से अलग चीज़ है. ‘वर्ण’ को आज कामकाजी वर्ग (occupational classes) के
रूप में समझा जा सकता है. हर औक्यूपेशनल वर्ग को आज भी
अपना धर्म उत्तम तरीके से निबाहना चाहिए, तभी तो राष्ट्र उत्कर्ष की ओर जाएगा!
दैहिक दैविक भौतिक तापा | राम राज नहिं काहुहि ब्यापा ||
सब नर
करहिं परस्पर प्रीती | चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ||
साधारण
अर्थ : राम राज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप (कष्ट) किसी
को भीई नहीं व्यापते. सब मनुष्य परस्पर
प्रेम करते हैं, और वेदों में बताई हुई नीति के अनुकूल स्वधर्म का पालन करते हैं.
विशेष
टिपण्णी : उस समय वेद ही प्रधान
थे; गीता का प्रणयन नहीं हुआ था. वेद विशद हैं – बहुत बड़े हैं, और अनेक हैं. उनमें
से काम की चीज़ें निकालना कठिन है; अब महज ७०० श्लोकों की गीता ही अधिक उपयुक्त है
जो वेदों और उपनिषदों का निचोड़ है. आज के सन्दर्भ में कहें तो हिन्दू, शिया,
सुन्नी और अहमदिया मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी, बहाई, बौद्ध-जैन आपस में प्रेम से
मिल जुल कर रहें, और अपने-अपने धर्म की अच्छी बातों का पालन करें, यह अभिप्राय होगा.
चारिउ चरन धर्म जग माहीं | पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं ||
राम भगति
रत नर अरु नारी | सकल परम गति के अधिकारी ||
साधारण
अर्थ : धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच , दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो
रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है. पुरुष और स्त्री सभी राम भक्ति के परायण
हैं और सभी परम गति के अधिकारी हैं.
विशेष
टिपण्णी : जनता में से किसी का भी सपने में भी पाप (अघ) नहीं करना यह संकेत करता
है कि शिक्षा की ऎसी विकसित व्यवस्था होगी जो सभी को ऊंचे जीवनमूल्य (वैल्यूज़)
सिखाती होगी. इसके अलावा जब राजा स्वयं ही निष्पाप (बिना अघ का) होगा तभी उसका
उदाहरण देख कर जनता भी निष्पाप आचरण करेगी. आज राजा यानी शासक और जन प्रतिनिधि
भ्रष्ट हैं तो जनता भी देखा-देखी भ्रष्ट हो गयी है. सिर्फ शिक्षा देने से लोग
निष्पाप नहीं हो सकते. राम स्वयं एक निष्पाप व्यक्ति – निष्पाप राजा – थे. इसीलिए
जनाता भी इतनी निष्पाप थी कि प्रायः सभी परम गति यानी मोक्ष के अधिकारी हो गए थे.
एक शासक की इससे बड़ी उपलब्धि क्या हो सकती है!
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा | सब सुन्दर सब बिरुज सरीरा ||
नहिं
दरिद्र कोऊ दुखी न दीना | नहीं कोऊ अबुध न लच्छन हीना ||
साधारण
अर्थ : छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती, न किसी
को कोई पीड़ा होती है. सभी के शरीर
सुन्दर और निरोग हैं. न कोई दरिद्र हैं न दुखी है और न दीन ही है. न कोई मूर्ख है
न कोई शुभ लक्षणों से हीन ही है. अर्थात स्वास्थय और शिक्षा में अद्भुत विकास हुआ
है.
विशेष
टिपण्णी : जब स्वस्थ जीवन शैली
होगी और रोग के उपचार की उचित व्यवस्था होगी तो लोग सामान्यतः अल्पायु नहीं होंगे.
राम के राज्य में गरीबी हटाओं का नारा नहीं दिया जाता था, बल्कि सचमुच गरीबी हटा
दी गयी थी. इस लिए रामराज्य का अर्थ होता है गरीबी से मुक्त समाज. आज के सन्दर्भ
में कहें तो हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी, बहाई, बौद्ध-जैन आदि सभी न केवल
गरीबी से मुक्त हों बल्कि खुश भी रहें. यह कितना हो पाया है यह सामने लाने के लिए
एस.एस.ओ. और सेंसस द्वारा हर राज्य और
पूरे देश के लिए सुख के स्तर का सर्वेक्षण किया जाय और पूरे देश के लिए तथा एक
ख़ुशी-सूचकांक या हैपीनेस-इंडेक्स भी विकसित किया जाय ताकि सभी की ख़ुशी बनाए रखने
के लिए उचित प्रयास किये जाएँ.
सब निर्दंभ धर्मरत पुनी | नर अरु नारि चतुर सब गुनी ||
सब गुनग्य
पंडित सब ग्यानी | सब कृतज्ञ नहिं कपट सयानी ||
साधारण अर्थ : सभी दंभ रहित हैं, धर्म परायण हैं और पुण्यात्मा हैं.
पुरुष और स्त्री सभी चतुर और गुणवान हैं. सभी गुणों का आदर करने वाले और पंडित हैं
तथा सभी ग्यानी हैं. सभी कृतज्ञ हैं; कपट चतुराई (धूर्तता) किसी में नहीं है.
विशेष
टिपण्णी : सभी निर्दंभ यानी
घमंड-रहित थे यह इस बात का संकेत करता है कि शिक्षा- व्यवस्था में ‘भावनात्मक
साक्षरता’ (इमोशनल लिट्रेसी) और ‘भावना
परिष्करण’ (इमोशन कल्चारिंग) एवं ‘भावना
प्रबंधन’ (इमोशन मैनेजमेंट) की विशेष व्यवस्था थी. अन्य उद्दृत दोहों- चौपाईयों
में वर्णित जब्व्यापी स्तर पर अच्छी भावनाओं को देख कर भी यही अनुमान लगाया जा
सकता है, और यह तथ्य आने वाले समय में शिक्षाज-व्यवस्था में भावना-प्रबंधन को
हमारी शिक्षा व्यवस्था का अंग बनाने की जरूरत को रेखांकित करता है.
राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं |
काल कर्म
सुभाव गुन कृत दुःख काहुहि नाहिं ||
साधारण
अर्थ : (काक भुशुण्डी कहते हैं) हे पक्षी राज गरुड़ जी सुनिए.
श्री राम के राज्य में जड़, चेतन सारे जगत में काल, कर्म, स्वभाव और गुणों से
उत्पन्न हुए दुःख किसी को भी नहीं होते (अर्थात इसके बंधन में कोई नहीं है).
राम राज कर सुख संपदा | बरनि न सकइ फनीस सारदा |
साधारण
अर्थ : राम राज्य की
सुख संपत्ति का वर्णन शेषजी और सरस्वती जी भी नहीं कर सकते.
विशेष
टिपण्णी : रामराज्य ने न केवल
गरीबी को हटा दिया था बल्कि समृद्धि ला दी थी. हमें भी सुराज ला कर यही करना
है.
सब उदार सब पर उपकारी | बिप्र चरन सेवक नर नारी |
एकनारि
ब्रत रत सब झारी | ते मन बाख क्रम पति हितकारी ||
साधारण
अर्थ : सभी नर नारी उदार हैं,
सभी परोपकारी हैं और सभी ब्राह्मणों के चारों के सेवक हैं. सभी पुसुढ़ मात्र एक
पत्नी व्रती हैं. इस प्रकार स्त्रियाँ भी मन वचन और कर्म से पति का हित करने वाली
हैं.
विशेष
टिपण्णी : सभी उदार हैं और सभी
परोपकारी हैं यह भी यही संकेत करता है कि जीवन मूल्यों (वैल्यूज़) की व्यापक शिक्षा
की व्यवस्था की गयी थी और उचित ‘भावना परिष्करण’ (इमोशन कल्चरिंग) भी चल चल रहा
था. लोग सिर्फ क़ानून के कारण नहीं बल्कि स्वयं भी एकपत्नीव्रत थे, और स्त्रियाँ भी
एक ही पुरुष के प्रति मन और भावना से समर्पित थीं. रामराज्य में बहुपत्नीवाद नहीं चलता.
दंड जतिंह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज |
जीतहु मनहि
सुनिअ अस रामचंद्र के राज ||
साधारण
अर्थ : श्री रामचन्द्र जी के
राज्य में दंड केवल सन्यासियों के हाथ में
है और भेद नाचने वालों के नृत्य समाज में है और ‘जीतो’ शब्द केवल मन के जितने के लिए
ही सुनाई पड़ता है.
विशेष
टिपण्णी : आर्थात राजनीति में
शत्रुओं को जीतने तथा चोर डाकुओं आदि को दमन करने के लिए साम, दाम, दंड और भेद ये
चार उपाय किये जाते हैं. राम राज्य में कोई शत्रु है ही नहीं, इसलिए ‘जीतो’ शब्द
केवल मन के जीतने के लिए कहा जाता है. कोई अपराध करता ही नहीं, इसलिए दंड किसी को
नहीं होता; ‘दंड’ शब्द केवल संन्यासियों के हाथ में रहने वाले दंड के लिए ही रह
गया है तथा सभी अनुकूल होने के कारण भेद नीति की आवश्यकता ही नहीं रह गयी; ‘भेद’
शब्द केवल सुर-ताल के भेद के लिए ही काम में आता है. अर्थात ‘स्टेट विल विदर अवे’
जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है जिसे सामाजिक-राजनीतिक विकास का अंतिम चरण माना
जाता है.
फूलहिं फरहि सदा तरु कानन | रहहिं एक सँग गज पंचानन |
खग मृग सहज
बयरु बिसराई | सबन्हि परस्पर प्रीती बढ़ाई ||साधारण अर्थ :
वन में वृक्ष सदा फ्फलाते और फूलते हैं. हाथही और सिंह वैर भूल कर एक साथ रहते
हैं. पक्षी और पशु सभी ने स्वाभाविक वैर भुला कर आपस में प्रेम बढ़ा लिया है.
विशेष
टिपण्णी : वृक्ष जंगल और उद्यान
सुरक्षित हैं तभी तो फूलते-फलते हैं. उन्हें कोई काट कर रामराज में नष्ट नहीं
करता, नुकसान नहीं पहुँचाता – ‘फौरेस्ट प्रोटेक्शन’ कारगर है.
कूजहिं खग मृग नाना बृंदा | अभय चरहिं बन चरहिं अनंदा ||
सीतल सुरभि
पवन बह मंदा |गुंजत अलि लै चलि मकरंदा ||
साधारण
अर्थ : पक्षी कूजते हैं, भांति-भांति के पशुओं के समूह वन
में निर्भय विचरते और आनंद करते हैं. शीतल मंद सुगन्धित पवन चलता रहता है. भंवरे
पुष्पों का रस ले कर चलते हुए गुंजार कर्राते जाते हैं.
विशेष
टिपण्णी : अहिंसा का सिद्धांत
सिर्फ मनुष्यों पर लागू नहीं है, दया सिर्फ मनुष्यों तक सीमित नहीं, बल्कि
पशु-पक्षियों पर भी लागू है; तभी तो पशु बिना भय के जंगलों में विचरते हैं! यानी
पशुओं को मनुष्यों से कूई भय नहीं है. हर जगह सुगन्धित फूलों के पेड़ लगे हुए हैं
तभी तो हवाएं सुगंध ले कर चलती हैं और भंवरे गुंजार करते रहते हैं!
लता बिटप मागें मधु चवहीं | मनभावतो धेनु पय श्रवहीं ||
ससी संपन्न
सदा रह धरणी | त्रेता भइ कृतजुग कै करनी ||
साधारण
अर्थ : बेलें और वृक्ष
माँगने से ही मधु टपका देते हैं. गौएं मनचाहा दूध देती हैं. धरती सदा खेती से भरी
रहती है. त्रेता में सतयुग की करनी (स्थिति) हो गयी.
विशेष
टिपण्णी : ‘ससी संपन्न
सदा रह धरणी’ से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि हरितक्रान्ति हो चुकी है, और खेतों
में कई फसलें ली जाती हैं – तभी तो धरती हमेशा फसलों से भरी रहती है! ‘गायें
मनचाहा दूध देती हैं’ श्वेत क्रान्ति की और संकेत करता है! ‘लता बिटप मागें मधु
चवहीं’ यह संकेत करता है कि मधुमक्खियों का पालन हर दूसरे वृक्ष पर हो रहा है,
आर्थात लधु और गृह-उद्योगों का जाल रामराज्य में बिछा हुआ है. कृषि, पशुपालन और
लघु उद्योग में ही अभी भी भारत की समृद्धि के सूत्र छिपे हुए हैं.
प्रगटीं गिरिन्ह बिबिध मनि खानी | जगदातमा भूप जग जानी ||
सरिता सकल
बहहिं बार बारी | सीतल अमल स्वाद सुखकारी ||
साधारण
अर्थ : समस्त जगत के आत्मा भगवान् को जगत का राजा जान कर पर्वतों ने अनेक प्रकार
के मणियों कीई खानें प्रकट कर दीं. सब नदियाँ श्रेष्ठ, शीतल, निर्मल और सुखप्रद
स्वादिष्ट जल बहाने लगीं.
विशेष
टिपण्णी : नदियों में ‘अमल’ और
स्वाद भरा जल बह रहा है अर्थात रामराज में नदियों को प्रदूषित नहीं किया जा रहा
है.